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Lok Sabha Election 2024: बिहार की इन 7 लोकसभा सीटों पर भाजपा को सबसे अधिक भरोसा, खुद नीतीश कुमार भी पड़ जाते हैं नरम

Bihar Politics बिहार की 7 लोकसभा सीट पर भाजपा सबसे अधिक जोर लगा रही है। ये सभी सीटें भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। यह क्षेत्र 2015 में सबसे कठिन समय में भी भाजपा के साथ रहा। यहां से 1989 में ही लोकसभा में कमल खिला। कला-कौशल वाले इस परिक्षेत्र की मिट्टी इतनी उर्वर है कि एक वर्ष में तीन फसलें काट ली जाएं।

By Vikash Chandra Pandey Edited By: Sanjeev Kumar Published: Thu, 07 Mar 2024 08:46 AM (IST)Updated: Thu, 07 Mar 2024 12:17 PM (IST)
अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (जागरण)

विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। Bihar Political News Hindi: बिहार में 7 लोकसभा सीट RJD के लिए हमेशा से मुश्किल रही है। यहां MY समीकरण भी काम नहीं कर पाता है। लेकिन बीजेपी का दबदबा हमेशा से बना रहता है। लालू और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) जोर तो पूरी लगा रहे हैं लेकिन अब देखने वाली बात होगी कि कैसे इन 7 सीटों में एक भी सीट निकाल पाते हैं। बीजेपी की बादशाहत यहां 1989 से ही कायम है।

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 इन सीटों पर भाजपा की बादशाहत 

बिहार में पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण समेत 7 लोकसभा सीट बीजेपी ( BJP) के लिए बिहार में संजीवनी की तरह है।  विधानसभा ही नहीं, संसदीय क्षेत्रों की गिनती की शुरुआत जिस चंपारण से होती है, वह लोकसभा के पिछले तीन चुनावों से राजग, विशेषकर भाजपा, पर मुग्ध है। विधानसभा में भाजपा के संख्या-बल में सर्वाधिक योगदान करने वाले जिलों में भी पश्चिमी और पूर्वी चंपारण अग्रणी हैं।

तिरहुत प्रमंडल के सात लोकसभा क्षेत्रों में दबदबा

जीत के इस क्रम को आगे बढ़ाने के दृढ़ निश्चय के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को बेतिया पहुंचे थे। यहां से दिया उनका संदेश तिरहुत प्रमंडल के सात लोकसभा क्षेत्रों (वाल्मीकिनगर, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, वैशाली) तक जाएगा, जो राजग के गढ़ जैसे बनते जा रहे। बिहार अगर देश में राजनीतिक परिवर्तन का स्रोत है तो चंपारण उसका मार्ग-निर्देशक।

यह क्षेत्र 2015 में सबसे कठिन समय में भी भाजपा के साथ रहा। यहां से 1989 में ही लोकसभा में कमल खिला। विपरीत परिस्थितियों में भी लक्ष्य को साधने की कला-कौशल वाले इस परिक्षेत्र की मिट्टी इतनी उर्वर है कि एक वर्ष में तीन फसलें काट ली जाएं। बिहार में लहलहाती भाजपा इसी माटी-पानी की पाली-पोसी है। उसके 75 में से 15 विधायक तो मात्र दो जिलों (पश्चिमी चंपारण और पूर्वी चंपारण) से विजयी रहे।

शिवहर के आसपास का लोकसभा सीट भी महत्वपूर्ण

भाजपा (BJP) के लिए चंपारण की यह महत्ता है। इनके साथ शिवहर को भी जोड़ दें तो इन तीन जिलों से लगभग चार लोकसभा क्षेत्रों (वाल्मीकिनगर, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर) की संरचना होती है। पिछले तीन चुनावों से ये लगातार राजग के पाले में हैं। नीतीश कुमार को साथ लेकर वह वाल्मीकिनगर के लिए आश्वस्त हो गई है, जहां से सुनील कुमार जदयू के सांसद हैं।

2014 में जदयू को भाजपा परास्त कर चुकी 

2014 के विलगाव में यहां जदयू को भाजपा परास्त कर चुकी है। जड़ें इस तरह फैली हुई हैं। अंदरुनी उठापटक वाले पूर्वी चंपारण और शिवहर में उसके सांसद क्रमश: राधामोहन सिंह और रमा देवी हैं। दोनों भले ही सेवानिवृत्ति की उम्र तक पहुंच गए हैं, लेकिन उन क्षेत्रों में भाजपा रची-बसी हुई है। एक छोटे अंतराल को छोड़ दें तो पिछले 30 वर्षों से पश्चिम चंपारण जायसवाल परिवार के पाले में है। पहले डा. मदन प्रसाद जायसवाल सांसद हुआ करते थे और अब उनके पुत्र डा. संजय जायसवाल।

भाजपा को ये सीटें फिर चाहिए और हर विधानसभा क्षेत्र में अच्छी बढ़त भी, क्योंकि अगले वर्ष विधानसभा का चुनाव भी है। तब उस बढ़त को जीत में बदलने की चुनौती होगी, क्योंकि 2019 में इन चारों लोकसभा क्षेत्रों के सभी 24 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाने के बावजूद राजग विधानसभा चुनाव में छह सीटों पर मात खा गया था। विधानसभा के पिछले चुनाव में पश्चिमी चंपारण और पूर्वी चंपारण में राजग को 21 में 17 सीटें मिलीं। इनमें से 15 सीटें तो अकेले भाजपा की हैं, जबकि दो जदयू की।

तिरहुत में 31 विधानसभा सीटों पर 25 पर अकेले भाजपा

तिरहुत में राजग 31 सीटों में से 25 पर अकेले भाजपा है। 2015 में भी तिरहुत में भाजपा 18 सीटों पर विजयी रही थी। वह उसके लिए कठिन चुनावों में से एक था। तब साथ लड़कर जदयू-राजद को 23 सीटों पर सफलता मिली थी। पूरे बिहार में भाजपा को मात्र 53 सीटें ही मिलीं और उसका एक तिहाई इसी क्षेत्र से। 2010 में इस प्रमंडल में राजग को अभूतपूर्व रूप से 49 में से 45 सीटें मिली थीं।

इससे स्पष्ट हो जाता है कि चंपारण के कारण ही तिरहुत भाजपा का गढ़ रहा है। यही कारण है कि लोकसभा के हर चुनाव में इस क्षेत्र में मोदी की जनसभा होती है। पिछले तीन चुनावों से यह क्रम अनवरत है और यह संयोग ही है कि 1964 में जवाहर लाल नेहरू और 1985 में राजीव गांधी के बाद मोदी चंपारण आने वाले तीसरे प्रधानमंत्री हैं।

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