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    ECI बिहार में क्यों कर रहा Voter List Revision? इससे पहले कब हुए संशोधन; यहां पढ़ें सवालों के जवाब

    Updated: Mon, 28 Jul 2025 06:51 PM (IST)

    बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग वोटर लिस्ट को दुरुस्त करने में लगा है जिसे विशेष गहन पुनरीक्षण कहते हैं। इसका उद्देश्य वोटर लिस्ट को साफ-सुथरा बनाना और अवैध वोटरों की पहचान करना है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस प्रक्रिया को रोकने से इनकार कर दिया है। विपक्ष इस प्रक्रिया का विरोध कर रहा है क्योंकि पंजीकरण के लिए जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं।

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    एसआईआर को लेकर यहां पढ़ें डिटेल। (फोटो जागरण)

    डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले एक बेहद अहम प्रक्रिया इन दिनों चल रही है। चुनाव आयोग की ओर से वोटर लिस्ट दुरुस्त करने के लिए शुरू की गई इस प्रक्रिया को विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision या SIR) कहते हैं।

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    इसे लेकर काफी विवाद और विरोध भी हो रहा है। बीते हफ्ते विधानसभा सत्र में भी विपक्ष ने सदन के अंदर और बाहर जमकर हंगामा और विरोध प्रदर्शन किया था। आइए सवाल-जवाब के माध्यम से जानते हैं इसके बारे में और इससे पहले यह कब-कब हुआ है।

    1. चुनाव आयोग बिहार में मतदाता सूची में संशोधन क्यों कर रहा है?

    चुनाव आयोग की ओर से बिहार में मतदाता सूची में संशोधन की यह पूरी प्रक्रिया प्रदेश में वोटर लिस्ट को साफ-सुथरा बनाने के लिए की जा रही है। इसका एक उद्देश्य चुनाव को पारदर्शी बनाना और अवैध या फर्जी वोटर की पहचान करना भी है।

    2. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में हो रहे SIR पर क्या कहा?

    बता दें कि बिहार में वोटर लिस्ट के रिवीजन का मुद्दा काफी गरमाया हुआ है। यहां तक कि यह सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है। बीती 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में अदालत ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया को रोकने से इनकार कर दिया था।

    हालांकि, कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह जरूर कहा कि वह मतदाता सूची को अपडेट करते समय लोगों से लिए जाने वाले डाक्युमेंट में आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को वैध माने।

    3. ECI की इस प्रक्रिया की आवश्यकता को लेकर क्यों उठा विवाद?

    बिहार में आने वाले महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में इससे पहले चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट दुरुस्त करने की प्रक्रिया अपनाने को लेकर विवाद भी उठा है। विपक्षी दलों ने इसका कड़ा विरोध किया है।

    इसकी वजह यह है कि इस प्रक्रिया में शामिल हो रहे बिहार के निवासियों से उनके पंजीकरण के लिए जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। यदि किसी वोटर का पंजीकरण साल 2003 के बाद हुआ है तो उसे भी अपना बर्थ सर्टिफिकेट सबूत के तौर पर जमा करने के लिए कहा जा रहा है।

    इस दस्तावेज का उपयोग नागरिकता तय करने में होगा, ऐसे में डर है कि इसकी वजह कई लोग अपने वोट देने के अधिकार से वंचित हो जाएंगे। हालांकि, इन चिंताओं को आयोग की ओर से नकारा गया है। चुनाव आयोग ने इस संबंध में ताजा आंकड़े भी जारी किए हैं। 

    बिहार के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान से पता चला है कि लगभग 35 लाख मतदाता या तो लापता हैं या अपने पंजीकृत पते से स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं।

    4. क्या है वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण?

    अब समझते हैं कि वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण क्या होता है? दरअसल, इसमें चुनाव कर्मी मसलन बीएलओ आदि घर-घर जाकर जानकारी जुटाते हैं।

    यह जानकारी बिल्कुल नए सिरे से जुटाई जाती है। इसमें घर में मौजूद वैध वोटरों की नई लिस्ट बनाई जाती है। इस प्रक्रिया में पुरानी सूची को नहीं देखा जाता है।

    यह तब किया जाता है जब चुनाव आयोग को लगता है कि मतदाता सूची पुरानी और त्रुटिपूर्ण है या यूं कहें कि पूरी तरह से दुरुस्त नहीं है।

    ऐसे में इसे फिर से बनाने की जरूरत होती है। ऐसा विशेष तौर पर चुनावों से पहले या फिर लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के बाद किया जाता है।

    5. क्या कोई अन्य प्रकार के संशोधन या रिवीजन भी होते हैं?

    चुनाव आयोग दूसरी तरह से रिवीजन (संशोधन) भी करता है। इनमें से एक समरी रिवीजन (Summary Revision) है। यह एक तरह से रूटीन का सालान अपडेशन है। इसमें मौजूदा मतदाताओं के नामों को ड्राफ्ट के रूप में प्रकाशित किया जाता है।

    इसके साथ ही नए मतदाताओं के नाम जोड़ने, किसी मतदाता का नाम हटाने या सुधारने के लिए दावे मांगे जाते हैं। इसमें आयोग की ओर से कोई भी कर्मचारी मतदाताओं के घर नहीं जाता है। इसके अलावा एक और विशेष संशोधन या रिवीजन होता है।

    यह अपवाद वाले मामलों में होता है, जैसे कि कोई क्षेत्र छूट गया हो, बड़े पैमाने पर गलतियां या त्रुटियां सामने आई हों या फिर कोई कानून अथवा राजनीतिक जरूरत महसूस हो रही हो। सेक्शन 21(3) के तहत मिले अधिकारों के माध्यम से चुनाव आयोग जरूरत के अनुरूप इनमें से कोई भी प्रक्रिया अपनाकर वोटर लिस्ट का रिवीजन कर सकता है।

    6. बिहार में चल रहे SIR को विशेष गहन पुनरीक्षण क्यों कहा जा रहा?

    बिहार में इन दिनों चल रहे संशोधन को विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision या SIR) क्यों कहा जा रहा है? यह सवाल उठना भी लाजिमी है।

    दरअसल, चुनाव आयोग ने इसके लिए साल 1950 के कानून के सेक्शन 21(3) के तहत मिले विवेकाधिकार का इस्तेमाल किया है। इसमें आयोग 'जिस तरीके से वो (आयोग) ठीक समझे' प्रक्रिया आगे बढ़ाने को लेकर अनुमति प्रदान कर सकता है।

    बिहार में चल रही प्रक्रिया में आयोग ने घर-घर जाने के साथ पुरानी सूची से मिलान और गणना प्रपत्र वितरित करने की प्रक्रिया को जोड़ा है।

    इसे बाकियों से अलग बनाने वाली जो बात है वो ये कि इसमें गणना के दौरान ही सबूत के तौर पर दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। यह इस प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव है।

    7. SIR बिहार में ही क्यों?

    अब यहां सवाल ये है कि चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया के लिए बिहार को ही क्यों चुना है? इसका जवाब यह है कि ये SIR सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है।

    आयोग ने बीती 24 जून को जो घोषणा की थी, उसमें कहा था कि इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा। चूंकि, निकट भविष्य में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में इसे यहां से शुरू किया गया है।

    आपको बता दें कि बीते 2 दशक में यह पहली बार है कि इतने बड़े स्तर पर कोई आयोग किसी प्रक्रिया को पूरा कर रहा है। आयोग का कहना है कि पिछली बार हुई इस प्रक्रिया के बाद से मतदाताओं में काफी अहम बदलाव आया है।

    इसके पीछे शहरीकरण का बढ़ना, शिक्षा व रोजगार के लिए पलायन, मतदाताओं के पते बदल जाना और पुराने पते से अपना नाम नहीं हटवाना, फर्जी मतदाताओं का होना जैसे कारण हैं।

    9. SIR की चुनौतियां?

    आजादी के बाद पहले दशक में 1951-52 के लोकसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची को दुरुस्त किया गया था। कारण कि इससे पहले तैयार सूची में बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपने नाम को पत्नी या पुत्री के तौर पर दर्ज कराया था।

    सियासी दल भी शुरू में अधिकारियों से कम सहयोग करते थे। यही नहीं, चुनाव से जुड़े कानून और केंद्रीय प्राधिकार की स्थापना में देरी ने भी स्थिति को बिगाड़ा था।

    10. क्यों और कैसे बदलती गई संशोधन की रणनीति?

    आयोग को मतदाता सूची मिली खामियों को दुरुस्त करना था। इसके लिए चरणबद्ध प्रक्रिया अपनाई गई। इसमें राज्यों के अलग-अलग हिस्सों को कवर किया गया। राज्यों पुनर्गठन (1956) और 1960 में परिसीमन जैसे प्रशासनिक बदलावों ने भी मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया को जरूरी बनाया।

    साल 1980 तक अवैध वोटर और विदेशों में रह रहे मतदाताओं को चुनाव में शामिल होने से रोकने पर ध्यान दिया गया। आयोग ने यह भी तय किया कि यदि किसी का नाम सूची से हटाना है तो आपत्ति जताने वाला शख्स इसके लिए सबूत देगा, ना कि वह मतदाता।

    11. Summary Revision से गहन पुनरीक्षण की ओर क्यों आया आयोग?

    1993 और 1995 में चुनाव आयोग ने पूरे देश में मतदाता सूची संशोधन की अनुमति दी थी। 1993 में तो मतदाता पहचान पत्र यानि वोटर आईडी कार्ड पर तस्वीरें लगाने की भी शुरूआत की गई थी।

    समय के साथ मतदाता सूची पहले की अपेक्षा अधिक दुरुस्त हुई। इसके साथ ही इस प्रक्रिया में प्रशासनिक लागत बढ़ने के कारण आयोग समरी रिवीजन (Summary Revision/सारांश संशोधन) की तरफ बढ़ गया।

    हालांकि, इसके बावजूद भी मतदाता सूची की शुद्धता बनाए रखने की चिंता बनी रही। ऐसे में गाहे-बगाहे आयोग को सूची का पुनरीक्षण कराने की जरूरत पड़ती रही।

    12. कैसे होती है चुनावी पारदर्शिता सुनिश्चित?

    देश में होने वाले चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए रखने के मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया बेहद जरूरी है। इसके माध्यम से आयोग सफल और बिना धांधली, साफ-सुथरे चुनाव कराने में सक्षम हो पाता है।

    किसी भी चुनाव को कराने के लिए सबसे पहले वोटर लिस्ट की जांच सबसे अहम होती है। इसके बाद ही अन्य प्रक्रियाओं से गुजरा जाता है। ऐसे में बड़े लोकतांत्रिक देश में यह बहुत जरूरी और बड़ी जिम्मेदारी का काम हो जाता है।

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