Bihar Reservation: एक सप्ताह से हो रही थी सुनवाई, आरक्षण संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर पटना HC का निर्णय सुरक्षित
पटना हाई कोर्ट ने सोमवार को राज्य सरकार द्वारा आरक्षण कानून में किए गए हालिया संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया जिसके तहत सार्वजनिक रोजगार एवं उच्च शिक्षा में प्रवेश हेतु आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया है। इस मामले पर एक सप्ताह से सुनवाई हो रही थी।
राज्य ब्यूरो, पटना। पटना हाई कोर्ट ने सोमवार को राज्य सरकार द्वारा आरक्षण कानून में किए गए हालिया संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसके तहत सार्वजनिक रोजगार एवं उच्च शिक्षा में प्रवेश हेतु आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन एवं न्यायाधीश हरीश कुमार की खंडपीठ ने गौरव कुमार एवं अन्य की याचिकाओं पर लंबी सुनवाई पूरी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले पर एक सप्ताह से सुनवाई हो रही थी।
याचिका में राज्य सरकार द्वारा 21 नवंबर, 2023 को पारित कानून को चुनौती दी गई है, जिसमें एससी, एसटी, ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को 65 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, जबकि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए मात्र 35 प्रतिशत पद बचते हैं, जिसमें ईडल्ब्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण भी शामिल है।
राज्य सरकार ने दिया ये तक
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने अपने बहस में कोर्ट को बताया कि सरकार यह आरक्षण इन वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण किया गया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने तर्क दिया था कि राज्य आरक्षण की सीमा नहीं बढ़ा सकती है।
वरीय अधिवक्ता मृगांक मौली एवं समीर कुमार ने सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा पारित फैसलों के आलोक में कहा था कि आरक्षण सीमा किसी भी हालत में 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं बढ़ाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामलें में आरक्षण की सीमा पर 50 प्रतिशत का प्रतिबंध लगाया था।
अधिवक्ता दीनू कुमार ने अपने बहस में कोर्ट को बताया था कि सामान्य वर्ग में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 फीसदी आरक्षण रद्द करना भारतीय संविधान की धारा 14 और धारा 15(6)(b) के विरुद्ध है।
उन्होंने दलील दी थी कि जाति आधारित सर्वेक्षण के बाद जातियों के आनुपातिक आधार पर आरक्षण का ये निर्णय लिया, न कि सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर ये निर्णय लिया।
अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव ने तर्क दिया था कि सरकार द्वारा किए गए जाति सर्वेक्षण से पता चलता है कि कई पिछड़ी जातियों को सरकारी सेवाओं में अधिक प्रतिनिधित्व मिला है।
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