Bihar Politics: हिंदी पट्टी बिहार पर कांग्रेस का फोकस, बदलती रणनीति से साधेगी नया समीकरण
इस साल बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटी है। इसके लिए पार्टी बिहार में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की विस्तारित बैठक करने जा रही है। कांग्रेस परंपरागत वोट बैंक के साथ युवाओं महिलाओं और पिछड़े वर्गों को जोड़ने पर जोर दे रही है। राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के माध्यम से कांग्रेस ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है।

सुनील राज, पटना। इस वर्ष विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस युद्धस्तर पर बिहार में अपनी स्थिति को मजबूत करने में जुटी है। उसका सर्वाधिक फोकस हिंदी पट्टी के राज्यों में शुमार बिहार पर है। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व का मानना है कि अगर पार्टी बिहार में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा लेती है तो पूरे उत्तर भारत की राजनीति में उसकी वापसी की राह आसान हो सकती है।
यही कारण है कि केंद्रीय नेतृत्व रणनीतिक तौर पर यहां संगठन और प्रचार-प्रसार पर विशेष ध्यान दे रहा है। इसी कड़ी में आजादी के बाद बिहार में पहली बार कांग्रेस वर्किंग कमेटी की विस्तारित बैठक राजधानी पटना में करने की घोषणा कर अपने इरादे भी साफ कर दिए हैं।
असल में इस चुनाव की तैयारियां शुरू होने के पूर्व ही उसने अपने परंपरागत वोट बैंक के साथ-साथ युवाओं, महिलाओं और पिछड़े वर्गों को जोडऩे पर जोर लगाया। पार्टी जानती है कि बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण की बड़ी भूमिका होती है, लेकिन इसके साथ ही विकास और रोजगार जैसे मुद्दे भी तेजी से उभर रहे हैं। जिन्हें देखते हुए उसने युवा और महिला कल्याण को सर्वाधिक प्राथमिकता दी।
चुनाव के काफी पहले ही राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के हवाले रणनीति रूप से भी कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने जहां केंद्र की मोदी सरकार को निशाने पर रखा तो इसी बहाने बिहार में जिला और प्रखंड स्तर नेताओं कार्यकर्ताओं को सक्रिय भी कर दिया।
अब पटना में सीडब्ल्यूसी की विस्तारित बैठक बुलाकर कांग्रेस नेतृत्व ने एक साथ कई मोर्चो को साध दिया है। पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि वह खुद को मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करने के लिए मैदान में है। कांग्रेस के इस कदम से इससे राजद और अन्य सहयोगी दलों को भी संकेत जाएगा कि कांग्रेस अपनी भूमिका को हल्के में लेने को तैयार नहीं।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड के साथ बिहार जैसे राज्यों में बीते दो दशकों में पार्टी का ग्राफ नीचे गया है। इसके कई कारण रहे हैं। नेतृत्व का अभाव, नेताओं-कार्यकर्ताओं के साथ संवादहीनता, गठबंधन पर निर्भरता, परंपरागत वोट बैंक का क्षरण, युवाओं से दूरी और मुख्य दल न रहकर सहयोगी दलों वाली सीमित भूमिका।
सीडब्ल्यूसी से बिहार में शुरुआत करके वह यह दिखाना चाहती है कि जड़ों तक पहुंचकर अपनी खोई जमीन वापस हासिल करने का उसने रोडमैप बना लिया है।
विश्लेषक मानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसका असर होगा। भाजपा जैसे दल को भी कांग्रेस यह बता देना चाहती है कि वह उत्तर भारत के राज्यों की उपेक्षा के मूड में नहीं। राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य बिहार में बैठक का मतलब है कि बीती बातें भूल कांग्रेस नए सिरे से अपनी शुरुआत कर राजनीति में नई कहानी लिखने को पूरी तरह से तैयार है।
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