Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Bihar Assembly Election: जेपी से पहले नरेंद्र थे लालू के गुरु? क्लर्क की नौकरी; राबड़ी-राजनीति और रोचक किस्सा

    बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने में कुछ महीने बाकी हैं। ऐसे में देशभर की नजरें इस राज्य पर आ टिकी हैं। यहां चुनाव हो और लालू यादव की चर्चा ना हो तो लगेगा जैसे चाय में चीनी नहीं या फिर नारियल में पानी नहीं। प्रदेश की राजनीति का ये दिलचस्प किरदार आज भी गाहे-बगाहे सुर्खियों में बना ही रहता है। यहां पेश है लालू से जुड़ी दिलचस्प कहानी।

    By Ajay Singh Edited By: Ajay Singh Updated: Tue, 01 Apr 2025 06:04 PM (IST)
    Hero Image
    बिहार विधानसभा चुनाव और लालू यादव की कहानी

    अजय सिंह, नई दिल्ली/ पटना । "हम सब में से वह अकेला था, जो परिवार के नाम 'राय' का उपयोग नहीं करता था। वह हमेशा लालू राय के स्थान पर लालू यादव लिखता था। यह सब उसके स्कूल के शुरुआती दिनों की बात है। हमारा इस ओर ध्यान भी नहीं गया, जब तक कि उसने राजनीति में नाम कमाना शुरू कर दिया, लेकिन वह जाति का नाम यादव हमेशा अपने नाम के आगे लगाता था।"

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर अपनी किताब 'द ब्रदर्स बिहारी' में लालू यादव के बड़े भाई महावीर यादव के हवाले से लिखते हैं " लालू यादव हम सब भाई-बहनों में वह शुरू से ही खास था। हम सब शुरू से जानते थे कि उसमें कोई ऐसी बात थी, जो हममें से किसी के पास नहीं थी।

    दरअसल, लालू यादव जिस इलाके से आते हैं वहां यादव समुदाय के लोग अपना सरनेम राय लिखा करते हैं। लालू यादव के पिता का नाम भी कुंदन राय है। लेकिन बचपन से चालाक लालू अपना सरनेम राय नहीं लिखते हैं। इसके पीछे भी दिलचस्प वाकया है।

    फुलवारिया से पटना कैसे पहुंचे लालू यादव?

    लालू यादव छोटे से आंगन में एक छोटे से ईंट के टुकड़े से अपनी स्लेट पर कुछ चित्रकारी कर रहे थे कि तभी वहां से फुलवारिया के एक जमींदार गुजरे और लालू पर नजर पड़ते ही कहा- ओहो, देखा एही कलयुग है। अब ई ग्वार का बच्चा भी पढ़ाई-लिखाई करी। बैरिस्टर बनाबे के बा का...

    (फोटो: लालू यादव फेसबुक पेज)

    लालू यादव के चाचा यदुनंद राय, जो उस समय पटना पशु चिकित्सा महाविद्यालय में ग्वाला का काम करते थे, इस टिप्पणी से इतने तिलमिला गए कि उन्होंने अपने भतीजे को तुरंत पटना ले जाकर पढ़ाई-लिखाई का प्रबंध करने का निर्णय ले लिया।

    और यहीं से कुंदन राय के बेटे लालू यादव की सियासी कहानी की शुरुआत होती है। लालू यादव फुलवारिया (गोपालगंज) से पटना आते हैं। वेटनरी कॉलेज में लालू यादव का ठिकाना मिलता है। मिलर स्कूल में स्कूलिंग करते हैं। उसके बाद पटना विश्वविद्यालय के बीएन कॉलेज में दाखिला कराते हैं।

    कौन हैं नरेंद्र सिंह जो लालू को छात्र राजनीति में लाए?

     बिहार में उस समय साइंस कॉलेज और बीएन कॉलेज पटना विश्वविद्यालय के बेहतर कॉलेजों में से एक थे। जब तक लालू यादव को बी.एन कॉलेज में प्रवेश मिला, वह विश्वविद्यालय राजनीति का एक गढ़ भी बन चुका था। राममनोहर लोहिया की लीडरशिप में समाजवादी आंदोलन उत्तर भारत के स्कूल-कॉलेजों में तूफान लाने के लिए आतुर था। गैर-कांग्रेसवाद की लहर युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करने लगी थी।

    ऐसे में लालू यादव के लिए बीएन कॉलेज में रहकर राजनीति से दूर रह पाना आसान नहीं था। पढ़ाई में कमजोर लालू यादव के लिए राजनीति का ककहरा सीखना आसान था।

    इसी बीच, लालू यादव को एक नामी-गिरामी साथी मिलता है। नाम था नरेंद्र सिंह जो कि सोशलिस्ट नेता श्रीकृष्ण सिंह के पुत्र थे। लालू यादव जिस समय पटना यूनिवर्सिटी में पहुंचे थे उस समय नरेंद्र सिंह समाजवादी छात्र कार्यकर्ता के रूप में फेमस हो चुके थे।

    कहा जाता है कि वह नरेंद्र सिंह ही थे , जो लालू यादव को राजनीति में लाए। 'नरेंद्र सिंह बताते हैं कि पिछड़ी जाति के छात्रों को राजनीति में लाना चाहता था और उस समय लालू यादव सबसे मुफीद लगे।' लालू यादव का एक किस्सा संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब में नरेंद्र सिंह के हवाले से लिखा है:

    मुझे याद है, वे कॉलेज के गलियारे की रेलिंग पर चढ़ गए और अपना गमछा हिला-हिलाकर कुछ ही मिनटों में सैकड़ों छात्रों को इकट्ठा कर लिया।

    लालू यादव को क्लर्क की नौकरी कैसे मिली?

    लालू यादव के परिवार की आर्थिक हालत बहुत ही बुरी थी। लालू जानते थे कि गांव से पटना पहुंचकर राजनीति करूंगा तो परिवार का खर्च कौन और कैसे चलाएगा? इसलिए एक बार वो पुलिस में बहाल होने की नाकाम कोशिश भी कर चुके थे।

    'नरेंद्र सिंह कहते हैं कि एक बार छात्र नेताओं की बैठक थी, लेकिन उस बैठक में लालू यादव नहीं आए। दूसरे दिन जब हमने पूछा कि बैठक में शामिल क्यों नहीं हुए। पहले तो लालू यादव ने छिपाने की कोशिश की लेकिन फिर बताया कि वो पुलिस में भर्ती होना चाहते हैं, लेकिन दौड़ (फिजकल टेस्ट) नहीं निकाल पाए।'

    इसी बीच, लालू यादव 1968 और 1969 में पटना विश्वविद्यालय में छात्र महासचिव के पद पर निर्वाचित हुए। लेकिन 1970 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष पद के चुनाव में उनकी करारी हार हो गई। पराजय के बाद लालू यादव टूट चुके थे और छात्र राजनीति को तिलांजलि देने का मन बना चुके थे।

    लालू एक बार फिर नौकरी की तलाश में निकल गए। इस बार उन्हें सफलता भी मिल गई और पटना पशु चिकित्सा महाविद्यालय में क्लर्क के पद पर तैनाती हो गई। लालू यादव के परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

    अब्दुल गफूर की सरकार और छात्र राजनीति

    नौकरी मिलने के बाद लालू यादव के जीवन में राबड़ी देवी का पदार्पण हुआ। साल 1973 में लालू यादव और राबड़ी देवी परिणय सूत्र में बंध गए। लेकिन कहा जाता है कि इंसान का नेचर और सिग्नेचर नहीं बदलता। लालू यादव के साथ भी वही हुआ। हिसाब-किताब में कमजोर लालू को क्लर्क की नौकरी नहीं भायी और एक बार फिर छात्र राजनीति में कूद गए।

    1973 में लालू यादव पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए। भाजपा के दिवंगत नेता सुशील कुमार मोदी उस वक्त महासचिव चुने गए थे। हालांकि, लालू यादव छात्र राजनीति में कोई खास करिश्मा नहीं दिखा पाए। 1974 में अब्दुल गफूर की सरकार ने राज्य के सभी कॉलेजों में छात्र संगठनों की गतिविधियों पर रोक लगा दी। इस घटना के बाद छात्रों में उबाल आ गया।

    लालू यादव कैसे और क्यों हुए लापता?

    बिहार विधानसभा के घेराव में पुलिस ने छात्रों पर जमकर गोलियां बरसाईं। पटना में कर्फ्यू लगा और कई छात्रों की गिरफ्तारी हुई। हालांकि, लालू यादव पुलिस की गिरफ्त से बच निकले।

    संकर्षण ठाकुर अपनी किताब में लिखते हैं कि नरेंद्र सिंह और नीतीश कुमार को चिंता हो रही थी कि लालू यादव को कुछ हो तो नहीं गया? क्योंकि पटना में पुलिस ने जमकर गोलियां बरसाई थीं। लालू यादव गोलीबारी से पहले ही रेलवे ट्रैक पार कर अपने भाई के घर पहुंच गए थे। लालू यादव के भाई वेटनरी कॉलेज में रहते थे।

    अंधेरा होने के बाद नीतीश और नरेंद्र जब लालू यादव के भाई के घर पहुंचे तो लालू खाना बनाने में मशगूल थे। दोनों नेताओं को देखते ही लालू यादव बोले

    हम त भाग अइली (हम तो भाग निकले)। बहुत बढ़िया मीट बनइले हई, आवा, आवा खा ल (बहुत बढ़िया मीट बनाया है, आप लोग भी खा लो)।

    1977 में लालू कैसे पहुंचे छपरा?

    पटना में हुई गोलीबारी के बाद छात्रों की क्रांति पूरे राज्य में फैल गई। गफूर सरकार को बर्खास्त करने की मांग उठने लगी। लालू यादव ने जयप्रकाश नारायण से छात्रों के आंदोलन की अगुआई करने की गुहार लगाई। इसी बीच, गया में भी पुलिस ने छात्रों पर बर्बरतापूर्ण ढंग से गोलियां बरसाईं जिसमें आठ लोगों की जान चली गई।

    इसके बाद पटना के गांधी मैदान में विशाल रैली हुई। जेपी की अगुआई में पटना ठसाठस भर गया। इतनी भीड़ पटना में एकसाथ कभी नहीं जुटी थी। लालू यादव इस रैली के बाद छात्र राजनेता के रूप में उभरे।

    1975 में इमरजेंसी के दौरान लालू यादव की गिरफ्तारी होती है। जेल से बाहर आने के बाद 1977 में छपरा से जनता पार्टी का सिंबल लालू के हाथों में होता है। लालू फुलवरिया से पटना और फिर दिल्ली पहुंच जाते हैं।

    Source:

    • The Brothres Bihari: संकर्षण ठाकुर

    यह भी पढ़ें: 

    74 के क्रांतिकारी नेता का हुआ अस्त, लालू, नीतीश व जीतन राम के मंत्रीमंडल में थे शामिल

    क्‍या बिहार में अकेले चुनाव लड़ेगी कांग्रेस, राजद से दूरी के बाद कन्हैया कुमार बनेंगे तेजस्‍वी की काट?