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    BPSC Asst. Professor Recruitment: बिहार में कब होगी असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति, BSUSC के अध्यक्ष ने दी जानकारी

    Updated: Thu, 06 Feb 2025 07:58 AM (IST)

    बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (BSUSC) के अध्यक्ष प्रो. गिरीश कुमार चौधरी ने बुधवार को प्रेसवार्ता करते हुए विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक की नियुक्ति के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मई महीने तक नियुक्ति प्रक्रिया मई में पूरी कर ली जाएगी। इसके साथ ही प्रिंसिपल के पदों पर साक्षात्कार के लिए प्राप्त आवेदनों की स्क्रूटनी की प्रक्रिया भी जारी है।

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    असिस्टेंट प्रोफेसरों के 4636 पदों के विरुद्ध 2707 का परिणाम जारी

    जागरण संवाददाता, पटना। राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक की नियुक्ति प्रक्रिया मई में पूरी हो जाएगी। सहायक प्राध्यापक के 4636 पदों के विरुद्ध 2707 का परिणाम जारी किया जा चुका है। इतिहास विषय के 316 पदों के लिए परिणाम फरवरी अंतिम सप्ताह में जारी कर दिया जाएगा।

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    मार्च में होगा प्रिंसिपल की नियुक्ति के लिए इंटरव्यू

    इसके साथ ही राज्य विभिन्न अंगीभूत महाविद्यालयों में प्रिंसिपल के रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए साक्षात्कार होली बाद मार्च तीसरे सप्ताह से प्रारंभ हो जाएगा। उक्त जानकारी बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (BSUSC) के अध्यक्ष प्रो. गिरीश कुमार चौधरी ने बुधवार को प्रेसवार्ता में दी।

    उन्होंने कहा कि प्रिंसिपल के पदों पर साक्षात्कार के लिए प्राप्त आवेदनों की स्क्रूटनी की प्रक्रिया जारी है। वहीं, 52 विषयों के लिए 4638 सहायक प्राध्यापक की नियुक्ति होनी है। इसमें से 39 विषयों के लिए परिणाम जारी किया जा चुका है। इतिहास के लिए साक्षात्कार 19 से 24 फरवरी तक निर्धारित है।

    आगामी महीनों में होगा इंटरव्यू

    प्राचीन भारतीय इतिहास का साक्षात्कार कोर्ट से अनुमति के बाद प्रारंभ होगा। अंग्रेजी, गृह विज्ञान, वाणिज्य, राजनीतिक विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान, संगीत, शिक्षा, नेपाली, संस्कृत, वनस्पति विज्ञान व जंतु विज्ञान के लिए साक्षात्कार आगामी महीनों में होगा।

    सहायक प्राध्यापक अभ्यर्थियों ने पटना हाईकोर्ट में दायर की 588 याचिकाएं

    बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (बीएसयूएससी) परंपरागत विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक के शेष 1931 पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया मई तक पूरी कर लेगा।

    • जिन विषयों में नियुक्ति के लिए परिणाम जारी किया गया है, उसे लेकर काफी संख्या में अभ्यर्थी न्यायालय का रुख कर रहे हैं।
    • अभ्यर्थियों ने आयोग की प्रक्रिया, नियमावली, परिणाम आदि के विरुद्ध अब तक पटना हाईकोर्ट में 588 याचिका दर्ज कराई हैं। इनमें से 145 डिस्पोज हो चुकी हैं। 433 याचिका पेंडिंग है।

    आयोग के अध्यक्ष प्रो. गिरीश कुमार चौधरी ने बताया कि ज्यादतर मामले परिणाम और प्रक्रिया से संबंधित हैं। कहा, आयोग का कार्यक्षेत्र सीमित है। राज्य सरकार से प्राप्त अधियाचना और निर्धारित नियमावली के विरुद्ध चयन प्रक्रिया पूर्ण करता है। आयोग नियुक्ति का प्राधिकार नहीं है।

    सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति विश्वविद्यालयों को करनी है। विश्वविद्यालय आयोग द्वारा अनुशंसित सभी अभ्यर्थियों के प्रमाण पत्रों को अपने स्तर से जांच के बाद उनकी सेवा संपुष्ट करता है। जांच में किसी तरह की त्रुटि प्रकाश में आने पर संबंधित अभ्यर्थी की नियुक्ति रद करने का अधिकार विश्वविद्यालय को है न कि आयोग को।

    चयन के लिए मेधा सूची 100 अंकों की शैक्षणिक उपलब्धि और 15 नंबर के साक्षात्कार के आधार पर जारी होती है। इसमें 77 अंकों का मूल्यांकन आयोग स्नातक व स्नातकोत्तर में प्राप्त अंक, नेट व जेआरएफ, पीएचडी के आधार पर करता है। इसमें आपत्ति नहीं के बराबर है।

    • शैक्षणिक उपलब्धि के दूसरे प्रकरण में 23 अंकों के लिए उस विषय के विशेषज्ञ संबंधित अभ्यर्थी के अपलोडेड शोध पत्र, अनुभव प्रमाण पत्र एवं पुरस्कार के आधार पर करते हैं।
    • सबसे ज्यादा आपत्ति इन्हीं तीन श्रेणी में प्राप्त हो रहे हैं। अभ्यर्थी की आपत्ति का निराकरण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है। आयोग ने बुधवार को प्रेसवार्ता आयोजित कर अभ्यर्थियों के अनियमितता से संबंधित आरोप का जवाब दिया। इसमें अध्यक्ष सहित सभी सदस्य मौजूद रहे।

    अभ्यर्थियों के प्रश्न और आयोग का पक्ष निम्न है

    आयोग शोध पत्र, अनुभव प्रमाण पत्र एवं अवार्ड में अंक देने में मनमानी कर रहा है। एक ही जर्नल में प्रकाशित शोध में किसी को शून्य तो किसी को पूरे अंक दिए गए हैं। शोध पत्र, प्रमाण पत्र एवं अवार्ड के अंक विषय विशेषज्ञ आवंटित करते हैं। विषय विशेषज्ञों को अभ्यर्थी के संबंध में विशेष जानकारी नहीं होती है।

    प्रश्न जहां तक एक ही जर्नल में प्रकाशित दो शोध को अलग-अलग अंक देने का है तो शोध की गुणवत्ता के आधार पर विशेषज्ञ अंक आवंटित करते हैं।

    ज्यादातर अभ्यर्थियों के अंक नहीं मिलने का कारण है, ऑनलाइन आवेदन में पूरा शोध पत्र अपलोड नहीं करना भी है। कई अभ्यर्थी शोध पत्र के स्थान पर सर्टिफिकेट अपलोड कर दिया है या आधा-अधूरा अपलोड किया है। इस कारण उन्हें शून्य अंक दिए गए हैं।

    अभ्यर्थी आयोग के सामने आपत्ति दर्ज कराते हैं तो उन्हें उसका कारण भी बताया जाता है। फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र के आधार पर कई अभ्यर्थियों को पूरे अंक दिए गए हैं, जबकि सही अभ्यर्थी के अंक कम कर दिए गए हैं।

    अनुभव प्रमाण पत्र में फर्जीवाड़ा की आशंका आयोग को पूर्व से ही है। इस कारण शिक्षा विभाग के माध्यम से सभी विश्वविद्यालयों को पत्र जारी कर अनुभव सहित तमाम प्रमाण पत्रों की जांच के बाद ही उनकी सेवा संपुष्टि का आग्रह किया गया है।

    आयोग अभ्यर्थी द्वारा उपलब्ध कराए गए सभी प्रमाण पत्रों की जांच अपने स्तर से नहीं कर सकता है। कुछ अभ्यर्थियों के प्रमाण पत्र फर्जी प्रतीत होते हैं तो उसके विरुद्ध संबंधित संस्थान का सूचित किया जाता है। ऐसे अभ्यर्थी पूर्व में भी चिह्नित किए गए हैं। उनके विरुद्ध प्राथमिकी भी कराई गई है।

    दिव्यांग अभ्यर्थी नहीं है, फिर भी उनका चयन हो गया

    कुछ दिव्यांग अभ्यर्थियों के चयन पर सवाल उठाए गए हैं। दिव्यांगता का प्रमाण पत्र सिविल सर्जन की अध्यक्षता में गठित मेडिकल बोर्ड द्वारा किया जाता है। उसके द्वारा दिए गए प्रमाण पत्र को आयोग चैलेंज नहीं कर सकता है।

    बीपीएससी द्वारा दिव्यांगता प्रतिशत की जांच के लिए मेडिकल कॉलेज के बोर्ड से जांच कराए जाने के प्रश्न पर कहा कि संबंधित विश्वविद्यालय इसकी जांच करा सकते हैं। यदि दिव्यांगता मानक के अनुरूप नहीं है तो उनके विरुद्ध कार्रवाई हो।

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