Bihar Politics: बिहार चुनाव में NDA के लिए चुनौती बनेगा गठबंधन का गणित? सीटों की सरसराहट छेड़ेगी सियासी संग्राम
बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए में सीटों को लेकर खींचतान मची है। चिराग पासवान 40 सीटों की मांग कर रहे हैं और जीतन राम मांझी भी अधिक सीटें चाहते हैं। उनकी मांगें पूरी न होने पर एनडीए को नुकसान हो सकता है। महागठबंधन भी चुनावों के लिए तैयार है और युवाओं का समर्थन चाहता है। बिहार में गठबंधन की राजनीति हमेशा से जटिल रही है।

डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर गठबंधन की राजनीति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। एनडीए के छोटे सहयोगी दल जैसे कि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) अब सहायक भूमिकाओं में नहीं रहना चाहते हैं। वे अधिक हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं, इससे एनडीए के भीतर संतुलन बिगड़ने की आशंकाओं को बल मिल रहा है।
चिराग पासवान की डिमांड
सियासी जानकारों की मानें तो चिराग पासवान ने 2024 में पांच लोकसभा सीटें जीतने के बाद 243 विधानसभा सीटों में से 40 सीटों की मांग की है। उनका कहना है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे।
बीते कुछ हफ्तों में चिराग पासवान ने कई बार मीडिया से बात करते हुए इस तरह के संकेत भी दिए हैं। उन्होंने स्वयं चुनाव लड़ने के अलावा कई मुद्दों पर अपना रुख स्पष्ट भी किया है। हालांकि, उन्होंने साफ तौर पर यह भी कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रहने तक वह एनडीए का साथ देंगे।
जीतन राम मांझी को कम सीटें मंजूर नहीं
इधर, दूसरी तरफ एनडीए के सहयोगी दल हम के प्रमुख जीतन राम मांझी ने गया और औरंगाबाद में सभी सीटों की मांग की है, जहां उनकी पार्टी का मजबूत स्थानीय आधार है। उनका कहना है कि उनकी पार्टी के समर्थन के बिना एनडीए जीत नहीं सकती है।
एनडीए की चुनौती
सियासी जानकार बताते हैं कि एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अपने सहयोगियों की मांगों को पूरा करते हुए भी अपनी एकता बनाए रखे।
अगर एनडीए अपने सहयोगियों की मांगों को पूरा नहीं करता है, तो वे अलग होकर चुनाव लड़ सकते हैं, जिससे एनडीए को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
महागठबंधन की संभावनाएं
बिहार में दूसरी तरफ महागठबंधन भी आने वाले चुनावों के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने के लिए तैयार है। महागठबंधन के शामिल दल इस दिशा में कोशिश भी कर रहे हैं।
उसे युवाओं और मुस्लिम-यादव वोटबैंक का समर्थन मिलने की उम्मीद है। अगर एनडीए अपने सहयोगियों की मांगों को पूरा नहीं करता है, तो महागठबंधन को इसका फायदा मिल सकता है।
पिछले दिनों राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने वोटर अधिकार यात्रा के माध्यम से माहौल को महागठबंधन के पक्ष में बनाने की कोशिश भी की है। दोनों नेताओं का दावा है कि बिहार की जनता बदलाव चाहती है।
गठबंधन की जटिलता
बिहार की राजनीति के जानकार यह भी बताते हैं कि प्रदेश में गठबंधन की जटिलता हमेशा से रही है। इतिहास की परतों को खोलें तो पाएंगे कि गठबंधन की सरकारें समय-समय पर प्रदेश की दिशा और दशा तय करती रही हैं।
प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक जीवन इससे अछूता नहीं रहा है। ऐसे में एनडीए के लिए चुनौतियां और बढ़ती हुई दिखाई पड़ती हैं।
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