बिहार विधानसभा चुनाव से पहले निकला चनपटिया चीनी मिल 'भूत’, 5 सीटों पर होगा सीधा असर
पश्चिम चंपारण में चनपटिया चीनी मिल फिर सुर्खियों में है। राहुल गांधी की यात्रा के दौरान मिल के मुद्दे को उठाया गया जिससे राजनीति गरमा गई है। कांग्रेस किसानों की नाराजगी को भुनाना चाहती है जबकि विपक्ष और सत्ता पक्ष एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। मिल बंद होने से पांच विधानसभा क्षेत्रों के मतदाता प्रभावित हैं और किसानों-मजदूरों की हालत खराब है।

जागरण संवाददाता, बेतिया। पश्चिम चंपारण की सियासत में चनपटिया की बंद चीनी मिल एक बार फिर जिन्न बनकर निकला है। कांग्रेस की वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी के विश्राम के लिए चनपटिया चीनी मिल के कुड़िया कोठी फार्म में टेंट सिटी लगाकर इस मुद्दे को हवा दी गई।
बंद पड़ी मिल को चुनावी बहस में लाकर कांग्रेस न केवल किसानों और युवाओं की नाराजगी को आवाज देगी, वरन चनपटिया, बेतिया, नरकटियागंज, लौरिया और नौतन जैसे पांच विधानसभा क्षेत्रों में समीकरण साधने की कोशिश करेगी।
इस मुद्दे को भुनाने के लिए विपक्ष ने अभी से घेराबंदी शुरू कर दी है। सत्ता पक्ष भी इसे बखूबी समझता है, यही कारण है कि राहुल गांधी के आने के पहले ही सांसद और विधायक ने चीनी मिल के बंद होने का दोषारोपण कांग्रेस के माथे मढ़ दिया। लेकिन कांग्रेस ने भी पलटवार करने में लेट नहीं की।
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कलाम जौहरी का कहना है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपाई आश्वासन दिए थे कि चीनी मिल चलाया जाएगा। लेकिन 35 साल से यहां के किसानों के साथ धोखा हुआ। अब मिल को चुनावी मुद्दा बनाकर जनता का हक दिलाने की लड़ाई लड़ी जाएगी। राहुल गांधी ने भी अपनी यात्रा के दौरान अंतिम समय में ठहराव स्थल बदलकर इसी फार्म को चुना, ताकि इस मुद्दे की गूंज दूर तक जाए। विधानसभा चुनाव में इसका असर साफ दिखेगा।
पांच विधानसभा क्षेत्रों पर असर
चनपटिया चीनी मिल बंद होने का सीधा असर चनपटिया के साथ बेतिया, नरकटियागंज, लौरिया और नौतन विधानसभा क्षेत्र के वोटर पर है। इन इलाकों के किसानों के परिवार में रोटी बेटी का संबंध है।
उनकी आर्थिकी एक दूसरे से जुड़ी है। जिस कारण मिल के मुद्दे का असर चनपटिया के साथ अन्य विधानसभा क्षेत्रों पर भी पड़ता है। इन पांच विधानसभा क्षेत्रों में करीब 13 लाख वोटर है। इसका असर इन वोटरों पर पड़ सकता है।
बंद हुआ फाटक तो कबाड़ हो गया मिल
सन 1932 में स्थापित चनपटिया चीनी मिल के कारण इस इलाके में खुशहाली थी। 1990 के बाद मिल में घाटा शुरू हुआ। 1994 में मिल का फाटक बंद होते ही हालात बदल गए। 1998 में कॉपरेटिव के माध्यम से इसे चलाने का प्रयास हुआ। लेकिन यह सफल नहीं हो सका। एक सीजन के बाद मिल पूरी तरह बंद हो गई।
मिल बंद होते ही करीब 60 प्रतिशत गन्ना खेती कम हो गई। किसान मजबूरी में धान और गेहूं की ओर चले गए। रोजगार खत्म हुआ तो नौजवान रोजी रोजगार के लिए दिल्ली, पंजाब और गुजरात, महाराष्ट्र का रुख करने लगे। एकमात्र नगदी फसल की खेती कम होते ही आमदनी भी घट गई।
किसान श्रीकांत मिश्र, किशोर सिंह, हनीफ मियां कहते है, अब तो गन्ना बोने से पहले ही सोचना पड़ता है। जिस फसल से घर चलता था, वही बोझ बन गई है। मिल के पूर्व मजदूर भदई साह कहते हैं, फाटक बंद होने के बाद हम लोगों की जिन्दगी अंधेरे में चली गई। नौकरी गई तो बच्चे की पढ़ाई भी छूट गई। चीनी मिल अब जर्जर हो चुका है।
इसमें लगाए गए उपकरण बेकार और भवन पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुका है। चीनी मिल के पास लगभग 200 एकड़ कीमती जमीन है। महना खरदेउर व कुड़ियाकोठी में मिल का फॉर्म है। महना खरदेउर फॉर्म को लोगों ने कब्जा कर लिया है। कुड़ियाकोठी फॉर्म भी अतिक्रमण का शिकार हो गया है। आज भी इस मिल के पास किसानों व मजदूरों का करोड़ों रुपये बकाया है।
प्रबंधन के झगड़े अदालत तक पहुंचे और मामला अब भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है। जमीन बिक्री पर बिहार सरकार की आपत्ति और नीलामी की प्रक्रिया आदि को लेकर कानूनी पेच हैं। वर्ष 2005 और 2010 के विधानसभा चुनावों में भी मिल चालू कराने का वादा राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में शामिल रहा।
लेकिन हर बार किसानों को आश्वासन ही मिला। कोविड के दौरान चनपटिया में शुरू हुए स्टार्टअप ज़ोन की तरह मिल का पुनर्जीवित होना इस इलाके के विकास का नया द्वार खोल सकता है।
चनपटिया की मिल किसानों की उम्मीद, मजदूरों की बेबसी, युवाओं को रोजगार की तलाश और राजनीति के लिए बड़ा मुद्दा बन चुकी है। आने वाले चुनाव में इस जिन्न की गूंज चंपारण की छह सीटों पर कैसी पड़ेगी, यह देखने लायक होगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में चीनी मिल का मामला लंबित है। हाई कोर्ट से मामला डिस्पोज होने के बाद ही चीनी मिल को चालू कराया जा सकता है।- डॉ. संजय जायसवाल, सांसद, पश्चिमी चंपारण।
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