बाबा मणिराम दरबार में मत्था टेकने वाले भक्तों की पूरी होती हैं मनोकामनाएं, लंगोट चढ़ाने की है परंपरा
बिहारशरीफ के पिसत्ता घाट पर बाबा मणिराम ने तपस्या की और समाधि ली। उनकी आध्यात्मिक शक्ति से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां लंगोट चढ़ाने की अनोखी परंपरा है जिसकी शुरुआत 1952 में हुई। बाबा के दरबार में कई बड़े नेता भी मत्था टेकने आ चुके हैं। 10 जुलाई से लंगोट अर्पण मेला शुरू होगा जिसमें यात्रियों के लिए विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएंगी।

जागरण संवाददाता, बिहारशरीफ। करीब आठ सौ वर्ष पहले बाबा मणिराम हरिद्वार से बिहारशरीफ के पिसत्ता घाट पहुंचे। यह क्षेत्र उस समय पेड़-पौधे से आच्छादित था। इस घने जंगल में वे तप करने लगे।
बाबा मणिराम में आध्यात्मिक शक्ति होने की वजह से धीरे-धीरे उनकी ख्याति बढ़ने लगी। मनोकामना सिद्ध होने के कारण बाबा के अनुयायियों की संख्या भी बढ़ने लगी। बाबा ने अपने अनुयायियों को स्वास्थ्य को सबसे बड़ी शक्ति बताया।
यही वजह रही कि उन्होंने कुश्ती को बढ़ावा दिया। एक कुशल पहलवान थे बाबा सन् 1300 में उन्होंने इसी स्थान अपने अनुयायियों की मौजूदगी में समाधि ले ली। उस वक्त बाबा की उम्र करीब 78 साल थी।
पिसत्ता घाट के जिस स्थान पर उन्होंने समाधि ली, वह आज एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है । बाबा मणिराम एक अच्छे पहलवान थे। कुश्ती लड़ना उनका प्रिय खेल था। यही वजह रही कि यहां लंगोट चढ़ाने की अनोखी परंपरा आरंभ हुई।
1952 से ही चढ़ाए जा रहें लंगोट
लंगोट चढ़ाने के पीछे एक कहानी भी है। पटना में उत्पाद निरीक्षक कपिल देव प्रसाद पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए बाबा के दरबार आए थे। बाबा के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
पुत्र रत्न की प्राप्ति के बाद कपिल देव प्रसाद 6 जुलाई 1952 को बाबा के दरबार पहुंचे और बाबा की समाधि पर लंगोट चढ़ाया। इसके बाद इस परंपरा की शुरुआत हो गई।
बाबा मणिराम की आध्यात्मिक आज भी विद्यमान
बाबा मणिराम एक आध्यात्मिक संत थे। जिनकी आध्यात्मिकता आज भी विद्यमान है। कहा जाता है कि उनके आशीष के प्रभाव के कारण इन क्षेत्रों के लोगों को बड़ी आपदा का कभी सामना नहीं करना पड़ा।
मान्यता यह भी है कि बाबा के दरबार से कोई भी भक्त निराश नहीं जाता। वे ऐसे संत थे जिनमें ईश्वरीय गुण मौजूद थे। आज भी हर दुख में वे अपने भक्तों के साथ होते हैं।
बाबा के दरबार में पहुंच चुके हैं कई नेता
इस मंदिर की ख्याति पूरे भारत वर्ष में है। यही वजह है कि यहां बड़े-बड़े राजनीतिक नेता भी दरबार में मत्था टेकने पहुंचते रहे हैं। बाबा के दरबार में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, बाबू जगजीवन राम, लाल कृष्ण आडवाणी बाबा की समाधि पर माथा टेकने आए थे।
यात्रियों के लिए तमाम सुविधाएं उपलब्ध
10 जुलाई को लंगोट अर्पण मेले की शुरुआत की जाएगी। आठ दिनों तक चलने वाले इस मेले में यात्रियों की सुविधा का खास ख्याल रखने की व्यवस्था की गई है। इस मेले में झूले, खिलौने की दुकान और तरह-तरह की मिठाई की दुकानें भी सजायी जा रही है।
मान्यता यह है कि बाबा के दरबार में आने वाले लोग कभी भी खाली हाथ नहीं जाते। -अमरकांत उपाध्यक्ष , बाबा मणिराम अखाड़ा समिति
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