Holi 2025: 'कौन डाल पर राजा बैठा, कौन डाल पर रानी...', DJ के शोर में विलुप्त हो रही जोगीरा गायन की परंपरा
बसंत पंचमी के साथ ही होली का रंग चढ़ने लगता है। शाम ढलते ही गांव-गांव में होली गीत और जोगीरा की धुन गूंजने लगती है। लोग पारंपरिक होली गीतों पर थिरकते हैं और होली के दिन धूल उड़ाते हुए होलिका दहन स्थल पर पहुंचते हैं। पहले खुद ही होली गीत गाए जाते थे लेकिन समय के साथ-साथ पुरानी परंपराएं विलुप्त होती जा रही है।
अमरेन्द्र तिवारी, मुजफ्फरपुर। बसंत पंचमी के साथ होली गीत और जोगीरा से पूरे गांव पर होली का रंग चढ़ने लगता था। शाम ढलते ही सार्वजनिक जगह या दलान पर लोग जुट जाते थे।
उसके बाद होली गीत की शुरुआत होती थी तो लगता था होली आ गई है। पहले राम खेले होली, लक्षमण खेले होली, लंकागढ़ में रावण खेले होली...। हो भोला खोल ना केवरिया, कंवरथुआ घेरलेबा दुआर... जैसे पारंपरिक गीत पर लोग झूम उठते थे।
होली गीत का समापन होलिका दहन स्थल पर होली के दिन धूल उड़ाने के साथ हो जाता था। उसके बाद चैता गाते हुए लोग गांव से बाहर जाते फिर वहां से लौटते थे। होली के दिन सुबह से रंग-अबीर और खाने-खिलाने का दौर चलता था।
जोगीरा गाने की थी परंपरा
सदातपुर के शंभूनाथ चौबे बताते हैं कि वह खुद होली गीत गाए हुए हैं। पहले भगवान राम और शिव के होली गीत गाए जाते थे। उसके बाद हंसी मजाक के तर्ज पर नगबेसर काका ले भागा...। जैसे गीत पर लोग थिरकते रहते थे।
हर गांव में एक टोली निकलती थी। हर दरवाजे पर चटाई या तिरपाल बिछाए जाते थे। गाने वालों की टोली हर दरवाजे पर एक दो गीत गाते और फिर दूसरे दरवाजे पर जाते थे। एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे पर जाने के क्रम में सदा आनंद रहे ऐही द्वारे मोहन खेले होरी हो...।
गीत गाते हुए मंडली निकलती थी। हर दरवाजे पर लोग गुलाल लगाते। मसाला यानी नारियल, छुहारा, सुपारी आदि दिए जाते थे। बच्चों की टोली पीछे-पीछे होती थी। हर दरवाजे से कुछ न कुछ विदाई मिलती थी।
कीर्तन मंडली उस राशि से वाद्य यंत्र खरीदती थी। होली के दिन सुबह से लोग रंग, अबीर खेलने लगते थे। शाम में टोली बनाकर लोग एक दूसरे के घर जाते थे।
अब होली में चलता है डीजे
अब डीजे ने हमारी परंपरा पर विराम लगा दिया। गायक विजेतानंद झा मुन्ना रफी बताते हैं कि होली गीत के साथ-साथ जोगीरा भी गया जाता था। कौन डाल पर राजा बैठा, कौन डाल पर रानी...। कौन डाल पर बगुला बैठा बोले उलटा बानी...। जोगीरा सारारारा...। इस तरह से जोगीरा का प्रचलन था।
शाम में ठंडई का आनंद उठाते थे। होली में खाने की भी अपनी अलग परंपरा थी। पारंपरिक होली गायन अब कहीं-कहीं ही सुनने को मिलते हैं। डंफा-झाल-मंझीरा ढोलक की आवाज डीजे की शोर और अश्लील गीत में दब गई।
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