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    Chhath Puja 2024: स्वावलंबन से महिलाओं की तस्वीर संग बदली तकदीर, छठ महापर्व की पूजा के लिए बनाती हैं बेहद अहम चीज

    Updated: Mon, 04 Nov 2024 07:23 PM (IST)

    बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में छठ महापर्व के लिए अर्क पात बनाने का काम महिलाओं के स्वावलंबन की एक अनूठी कहानी है। करीब 500 परिवारों की महिलाएं इस काम से जुड़ी हैं और हर महीने लगभग 20 लाख रुपये का कारोबार करती हैं। जानिए कैसे अर्क पात बनाने के काम ने इन महिलाओं की तकदीर की तस्वीर ही बदल कर रख दी है।

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    छठ पूजा के लिए अर्क पात बनातीं महिलाएं। (फोटो- जागरण)

    एम. रहमान, सकरा (मुजफ्फरपुर)। छठ महापर्व पर खूबसूरत लाल रंग का अर्क पात (स्थानीय भाषा में अर्तक पात ) तो आपने देखा होगा। इसके बिना छठ की पूजा अधूरी होती है। इसका निर्माण गृह उद्योग की तरह बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में बड़े पैमाने पर होता है। इस काम से एक-दो नहीं करीब 500 परिवारों की महिलाएं जुड़ी हैं।

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    छठ को देखते हुए इसका तेजी से निर्माण कर रही हैं। यहां से इसकी सप्लाई दूसरे प्रदेशों तक होती है। त्योहार के समय तकरीबन 20 लाख रुपये महीने का कारोबार होता है। इस काम से महिलाओं ने स्वावलंबन के साथ परिवार की आर्थिक तस्वीर भी बदली है।

    तैयार अर्क पात। (फोटो- जागरण)

    बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सकरा प्रखंड के मझौलिया गांव में अर्क पात बनाने के साथ महिलाओं के स्वावलंबन की शुरुआत करीब 95 वर्ष पहले हुई थी। यहां की निवासी जानकी देवी बताती हैं कि वे 77 वर्ष पहले जब वे शादी कर यहां ससुराल आई थीं तो उनकी सास लाली देवी अर्क पात बनाती थीं।

    तब इसका निर्माण छठ में घर पर इस्तेमाल करने और नाते-रिश्तेदारों को देने के लिए किया जाता था। बाद में इसका व्यावसायिक रूप से निर्माण किया जाने लगा। अपनी सास से उन्होंने यह काम सीखा। बाद में गांव की अन्य महिलाओं को सिखाया।

    अर्क पात को बनाने के बाद सूखने के लिए दीवार से लगातीं जयमाला देवी। (फोटो- जागरण)

    आज गांव के 500 घरों में महिलाएं इसे बनाती हैं। अब जानकी की बहू इसे बनाती है। एक महिला महीने में करीब 12 हजार अर्क पात बना लेती है। 200 पीस के एक बंडल की बिक्री करीब 60 से 70 रुपये होती है। बाहर के व्यापारी यहां से खरीदकर ले जाते हैं।

    बिहार के विभिन्न जिलों में तो सप्लाई होती ही है। साथ उत्तर प्रदेश , दिल्ली व बंगाल के अलावा मुंबई तक यहां से अर्क पात जाता है। एक महिला को महीने में तीन से चार हजार रुपये की आमदनी हो जाती है।

    अर्क पात बनातीं मोनी कुमारी व उनकी सास रामकिशोरी देवी। (फोटो- जागरण)

    छठ को लेकर बनाने के काम में तेजी

    रेणु देवी कहती हैं कि इसे बनाने में अकवन की रूई , गुलाबी रंग व मैदा का इस्तेमाल किया जाता है। वैसे तो अकवन आसपास ही पेड़ों से फ्री में उपलब्ध हो जाता है। इसे तोड़कर घर पर ही रूई निकाल ली जाती है , फिर इसे लाल रंग में रंगकर धूप में सुखाया जाता है।

    उसे छोटे-छोटे गोले से पतली गोलाकार आकृति बनाई जाती है। अकवन की रूई उपलब्ध नहीं होने पर बाजार से खरीदी जाती है। एक किलो रूई से करीब 600 अर्क पात तैयार होता है। वैसे तो यह काम पूरे वर्ष चलता रहता है, लेकिन कार्तिक छठ और चैती छठ से पहले इसमें तेजी आ जाती है। छठ पूजा में तो इसका अनिवार्य रूप से उपयोग किया जाता है।

    इस समय छठ को लेकर हर घर की महिलाएं इसे बनाने में लगी हैं। इस काम से जुड़ीं शोभा देवी और निर्मला देवी का कहना है कि घर के काम के बाद खाली समय में अर्क पात का निर्माण करती हैं। खुशी होती है कि हमारे हाथ से बना अर्क पात भगवान सूर्य के पूजन में इस्तेमाल होता है। व्यापारी घर तक आकर ले जाते हैं।

    अर्क पात बनाने के काम से पंचायत की महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं। सरकार इस दिशा में पहल करे तो यह काम और आगे बढ़ेगा। गांव की महिलाओं को जितनी मेहनत करनी होती है , उस हिसाब से मेहनताना नहीं मिल पाता है। - उषा देवी , मुखिया , मझौलिया

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