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    बिहार में धान घोटाला? राइस मिल मालिक और करोड़ों का चावल गायब, चुनावी साल में सरकार की बढ़ेगी टेंशन

    Updated: Fri, 03 Jan 2025 07:04 PM (IST)

    बिहार में धान के बदले चावल नहीं देने का मामला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से गर्मा गया है। करोड़ों रुपये के धान का भुगतान नहीं करने वाले मिलरों पर कार्रवाई की जानी है लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि धान फर्जी मिलों को दिया गया है। ऐसे में मिल और धान गायब हैं। इससे चुनावी साल में सरकार की टेंशन बढ़ गई है।

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    फर्जी मिल को दिया करोड़ों का धान, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राशि वसूली की होगी कार्रवाई।

    प्रेम शंकर मिश्रा, मुजफ्फरपुर। धान के बदले चावल नहीं दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रमादी मिलरों (हठी बकाएदार) पर कार्रवाई का रास्ता खुल गया है, मगर इसमें सबसे बड़ी बाधा है फर्जी मिलों को दिए गए करोड़ों के धान का। जिन मिल मालिकों को करोड़ों के धान देने की बात कही गई, वह अस्तित्व में ही नहीं हैं।

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    बकाया राशि के लिए नोटिस भेजा जा रहा है तो वहां से वापस आ जा रहा है। वहां किसी तरह की मिल नहीं होने की बात कही जा रही है। विदित को कि वित्तीय वर्ष 2011-12 से 2014-14 में राइस मिलों को करोड़ों का धान दिया गया।

    इसके बदले में मिलरों को सीएमआर (कस्टम मिल्ड राइस) वापस करनी थी। यह उपलब्ध कराए गए चावल का 67 प्रतिशत था। बड़ी संख्या में राइस मिलरों ने सीएमआर सरकार को नहीं दिया।

    इसके बाद उतने मूल्य की राशि के बकाये के लिए नीलामपत्र वाद की कार्रवाई शुरू की गई। इसमें वारंट भी जारी किए गए।

    कई मिलों को भेजा जा रहा नोटिस

    • कई मिलों को जा रहे वारंट यह कहते हुए वापस आ रहे कि इसका पता फर्जी है। बिहार राज्य खाद्य निगम के जिला प्रबंधक की रिपोर्ट के अनुसार बंगाल की एमएम एग्रो टेक, सिलीगुड़ी (दार्जिलिंग) को 1303 मीट्रिक टन धान दिया गया था।
    • इस मिल से एक ग्राम चावल भी सरकार को सीएमआर के रूप में नहीं मिला। इस मिल से दो करोड़ 82 लाख रुपये की वसूली की जानी है। मिल मालिक के रूप में राजेश वियानी दर्ज है। गिरफ्तारी वारंट भी जारी है, मगर पता फर्जी बताया जा रहा है।
    • बंगाल की ही रायगंज फूड प्रो. प्रालि को सबसे अधिक 3683.672 मीट्रिक टन धान दिए गए। यहां से भी एक ग्राम चावल वापस नहीं मिला। अब इस मिल से लगभग आठ करोड़ रुपये की वसूली के लिए पदाधिकारी माथापच्ची कर रहे हैं।
    • उत्तर दिनाजपुर जिले के रायगंज के संजय भौमिक के नाम से मिल है। यहां की भी वही कहानी है। इस तरह इन दो मिलों से 10 करोड़ की वसूली इसलिए भी नहीं हो पा रही क्योंकि इनके अस्तित्व का ही पता नहीं चल पा रहा है।

    प्रदेश में हुआ फर्जीवाड़ा

    फर्जीवाड़ा का यह खेल दूसरे राज्य ही नहीं, यहां भी हुआ। बोचहां थाना क्षेत्र में 11 करोड़ रुपये के घोटाले को लेकर तीन राइस मिलरों पर प्राथमिकी भी हुई थी। जांच दर जांच के बाद पता लगा कि कागज पर ही सिर्फ मिल को दर्शाया गया था।

    यहां तक की धान की ढुलाई में जिस वाहन का इस्तेमाल करने का जिक्र किया गया था, वह भी फर्जी पाया गया। इसके अलावा 19 और ऐसी मिलें हैं जहां से एक ग्राम चावल नहीं आया।

    जबकि इन्हें भी करोड़ों के धान दिए गए थे। अब इनके भी फर्जी होने की आशंका है। इनमें से कुछ दूसरे जिले की मिलें हैं।

    सवाल के घेरे में कई तत्कालीन पदाधिकारी

    मिलों का अस्तित्व नहीं होने के बाद भी उन्हें करोड़ों के धान दिए जाने के मामले में तत्कालीन कई पदाधिकारियों की भूमिका सवाल के घेरे में है।

    यह कुछ-कुछ बिहार में हुए चारा घोटाले की तरह लग रहा है। जिस तरह उसमें दूसरे राज्य से स्कूटर पर भैंस ढोकर करोड़ों का घपला किया गया, यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ है।

    इस मामले में अभी और भी खुलासे हो सकते हैं। ऐसे में चुनावी साल में सरकार की टेंशन बढ़ गई है। विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बनाकर घेर सकता है।

    गड़बड़ी करने वाले कर्मचारी और पदाधिकारी पर भी कार्रवाई की जा रही है। साथ ही जिन्होंने एग्रीमेंट किया था उनसे राशि की वसूली की जाएगी। - उदय नारायण प्रसाद, जिला प्रबंधक, बिहार राज्य खाद्य निगम

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