Munger News: नक्सलियों ने बंदूक छोड़ पकड़ी कुदाल, खेती कर बिता रहे खुशहाली की जिंदगी
Munger News नक्सलियों के आतंक का पर्याय रहे मंगुरे जिले में नक्सली आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्य धारा से जुड़ रहे हैं। नक्सली अब बंदूक छोड़कर खेती कर रहे हैं। धरहरा प्रखंड के जो लोग अब तक आतंक के पर्याय थे अब वह अपने बच्चों को शांति की जिंदगी जीने के बारे में बता रहे हैं। खेती-किसानी कर अब वह अपना जीवन खुशहाली से बिता रहे हैं।

शशिकांत, धरहरा (मुंगेर): बंगाल की राजधानी रह चुके मुंगेर जिले में एक सुदूरवर्ती प्रखंड है धरहरा, जो कभी नक्सलियों के गढ़ के रूप में जाना जाता था। एक समय ऐसा था जब यहां नक्सलियों के भय से लोग गांव छोड़कर भाग जाने को विवश थे।
लेकिन आज आतंक के रहनुमाओं ने बंदूक छोड़ कुदाल पकड़ ली है। अब वह फसल के साथ खुशहाली भी उगा रहे हैं। धरहरा प्रखंड के जो लोग कल तक नक्सली नेताओं द्वारा गुमराह कर दिए जाने के कारण आतंक के रास्ते पर चलते थे, वे आज अपने बच्चों को शांति और देश की प्रगति के सपने दिखा रहे हैं और खेती कर बेहतर जीवन-यापन कर रहे हैं।
समय में हुए बदलाव के साथ सुरक्षा बलों की कार्रवाई, सरकार की विकास योजनाओं और प्रगति के सपने ने इस असंभव कार्य को संभव कर दिया है।
धरहरा गांव की ओर जाने वाला मार्ग
नक्सलियों का था आतंक
ग्रामीण बताते हैं कि 1998 से 2010 तक शाम चार बजे के बाद लोग यहां घरों से निकलने से परहेज करते थे। पहाड़ों-जंगलों से घिरा यह क्षेत्र नक्सलियों का गढ़ कहा जाता था। ऐसा कहा जाता है कि दूसरे राज्यों के नक्सली भी यहां शरण लेते थे। आदिवासी बहुल गांव होने के कारण आसपास के लोगों को नक्सली आसानी से बरगलाकर संगठन में शामिल कर लेते थे।
आत्मसमर्पण कर मुख्य धारा में शामिल हुए नक्सली
एक समय था जब यहां के ग्रामीण बंदूक और गोलियों के साथ खेलते थे। धरहरा क्षेत्र में कई हत्याएं हुईं, मुठभेड़ हुए। जमीन पर फसल की हरियाली खून के लाल रंग से सहमती थी। समय बदला तो लोगों ने नक्सलियों का साथ छोड़ा और समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए।
नक्सलियों ने शुरू की खेती-किसानी
वर्तमान समय में दो दर्जन से अधिक नक्सलियों ने खेती-किसानी शुरू कर दी है। 2012 में धरहरा प्रखंड के महेश यादव, अधिक यादव, देवन यादव और मनोज साव सहित दो दर्जन नक्सलियों ने तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त और डीएम के समक्ष आत्मसर्पण किया था। जिनके पास खेत नहीं थे, उन्होंने पट्टे पर इसे लिया।
जनता के बीच विकास को लेकर चर्चा करते वार्ड सदस्य महेश यादव। (बायें प्रथम)
माताडीह पंचायत निवासी महेश यादव ने बताया कि जब वह नक्सलियों के साथ थे, तो परिवार अशांत रहता था। अब वह वार्ड सदस्य हैं। लोगों को गलत संगत से बचने की सलाह देते हैं। महेश यादव नेकहा कि लोगों की सेवा कर अब अच्छा लगता है।
जतकुटिया के जुगेश्वर कोड़ा ने भी 2012 में आत्मसमर्पण किया था। जेल से निकलने के बाद सरकार की ओर से रोजगार के लिए राशि दी गई। अभी वह मछली पालन कर रहे हैं। अधिक यादव ने बताया कि किसानी कर परिवार के साथ जिंदगी चला रहे हैं। दो पैसे कम हैं, लेकिन सुकून से जी रहे हैं। अब जंगल-पहाड़ों में छिपकर रहने की भी विवशता नहीं है।
सुरक्षा बलों ने तोड़ी कमर
पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षाबलों ने नक्सलियों की कमर तोड़कर रख दी है। नक्सलियों की धर-पकड़ के लिए लगातार कांबिंग और ऑपरेशन सैडो भी चला। इसका असर यह रहा कि पिछले दो वर्षों में 52 नक्सलियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। 10 हार्डकोर नक्सलियों को सुरक्षा बल अब भी खोज रहे हैं। 2023 के जनवरी माह में 50 हजार के इनामी सूरज मुर्मू ने भी आत्मसर्मपण किया था।
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