चंडिका स्थानः यहां गिरी थी सती की बाईं आंख, अंगराज कर्ण से भी जुड़ी है कथा
मुंगेर का चंडिका स्थान देवी के 52 सिद्ध शक्तिपीठों में शुमार होता है। यहां सती की बाईं आंख गिरी थी और मान्यता है कि यहां पूजा करने वालों की आंखों की पीड़ा दूर होती है।
मुंगेर [जेएनएन]। शक्ति पीठ माता चंडिका स्थान देश भर के बावन शक्तिपीठों में एक है। यहां माता सती की बायीं आंख की पूजा होती है। मान्यता है कि सती की बाईं आंक यहां गिरी थी। यहां आंखों के असाध्य रोग से पीड़ित लोग पूजा करने आते हैं और यहां से काजल लेकर जाते हैं। एेसी मान्यता है कि यहां का काजल नेत्ररोगियों के विकार दूर करता है। चंडिका स्थान को श्मशान चंडी की भी मान्यता है।
इसका कारण यह है कि यह गंगा के किनारे स्थित है और इसके पूर्व और पश्चिम में श्मशान अवस्थित हैं। इस कारण नवरात्र के दौरान कई विभिन्न जगहों से साधक तंत्र सिद्धि के लिए भी जमा होते हैं। चंडिका स्थान में नवरात्र के अष्टमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन होता है। इस दिन सबसे अधिक संख्या में भक्तों का यहां जमावड़ा होता है।
यूं तो सालोभर पूरे देश से लोग यहां पूजा करने आते हैं, लेकिन नवरात्र में माता चंडिका की पूजा का महत्व बढ़ जाता है।
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महाभारत कालीन आख्यानों से भी जुड़ा है मंदिर
मंदिर इतना पुराना है कि इसका कोई प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं होता। आख्यानों में कहा जाता है कि राजा दक्ष की पुत्री सती के जलते हुए शरीर को लेकर जब भगवान शिव भ्रमण कर रहे थे, तब सती की बांई आंख यहां गिरी थी। इस कारण यह बावन शक्तिपीठों में एक माना जाता है। वहीं दूसरी ओर इस मंदिर को महाभारत काल से भी जोड़ कर देखा जाता है।
इसके अनुसार अंगराज कर्ण माता चंडिका की पूजा कर उनसे प्राप्त सवा मन सोना का दान प्रतिदिन करते थे। महाराज कर्ण को प्रतिदिन सवा मन सोना प्राप्त होने का रहस्य पता लगाने, छद्म वेष में एक दिन राजा विक्रमादित्य पहुंचे। उन्होंने देखा कि महाराजा कर्ण ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान कर चंडिका स्थान स्थित खौलते तेल के कड़ाह में कूद जाते हैं और उनके मांस का चौंसठों योगिनियां भक्षण कर लेती है। इसके बाद माता उनके अस्थि पंजर पर अमृत छिड़क उन्हें पुन: जीवित कर देती है और उन्हें पुरस्कार स्वरूप सवा मन सोना देती है।
एक दिन चुपके से राजा कर्ण से पहले राजा विक्रमादित्य वहां पहुंच गए। कड़ाह में कूदने के पश्चात उन्हें माता ने जीवित कर दिया। उन्होंने लगातार तीन बार कड़ाह में कूद कर अपना शरीर समाप्त किया और माता ने उन्हें जीवित कर दिया। चौथी बार माता ने उन्हें रोका और वर मांगने को कहा। इस पर राजा विक्रमादित्य ने माता से सोना देने वाला थैला और अमृत कलश मांग लिया।
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माता ने दोनों चीज देने के बाद वहां रखे कड़ाह को पलट दिया, क्योंकि उनके पास अमृत कलश नहीं था और राजा कर्ण के आने का समय हो चला था। अमृत कलश के अभाव में उन्हें वह दोबारा जीवित नहीं कर सकती थी। इसके बाद से अभी तक कड़ाह उलटा हुआ है और उसी के अंदर माता की पूजा होती है।
अष्टमी को होती है विशेष पूजा
चंडिका स्थान के मुख्य पुजारी नंदन बाबा बताते हैं कि चंडिका स्थान एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है। नवरात्र के दौरान सुबह तीन बजे से माता की पूजा शुरू हो जाती है। संध्या में श्रृंगार पूजन होता है। अष्टमी के दिन यहां विशेष पूजा होती है। इस दिन माता का भव्य शृंगार होता हैै। यहां आने वाले लोगों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
कैसे पहुंचें मंदिर
पटना-भागलपुर रेलखंड पर यह स्थान जमालपुर स्टेशन से दस किमी दूर पड़ता है जहां जमालपुर से आटो और अन्य साधन हमेशा उपलब्ध रहते हैं। गंगा पुल होकर बने नए रेलवे लाइन से मुंगेर स्टेशन पर उतरकर वहां से एक किमी की दूरी तय कर मंदिर पहुंचा जा सकता है। मुंगेर सड़क मार्ग से जुड़ा है। मुंगेर बस स्टैंड से मंदिर की दूरी महज दो किलोमीटर है।