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    Bihar News: बिहार के इस शहर को टूरिज्म हब बनाने की तैयारी, लगेगा सैलानियों का जमघट; जानें पूरा प्लान

    Updated: Mon, 05 May 2025 09:07 AM (IST)

    लखीसराय में किउल हरुहर और गंगा के संगम पर धार्मिक और पुरातात्विक संस्कृति का भंडार है। सरकार द्वारा सात पुरास्थलों को संरक्षित करने की योजना है जिससे जिले की विरासत को पहचान मिलेगी। इनमें लाली पहाड़ी सत्संडा पहाड़ जैसे स्थल शामिल हैं। इन स्थलों को बुद्ध शिव और रामायण सर्किट से जोड़ने की संभावना है जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

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    संरक्षित होंगी लखीसराय की सात पुरास्थल धरोहर, मिलेगी पहचान

    मुकेश कुमार, लखीसराय। Lakhisarai News: किउल-हरुहर और गंगा नदी के संगम पर स्थित लखीसराय में धार्मिक और पुरातात्विक संस्कृति का भंडार छिपा हुआ है। जिले की विरासत और धरोहर काफी समृद्ध है। बुद्ध, शिव और रामायण सर्किट से जिले के पौराणिक स्थलों को जोड़ने की यहां काफी संभावनाएं है। सरकार द्वारा पंचायत स्तर पर प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करने की कवायद की जा रही है।

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    वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने का प्रयास

    लखीसराय जिले में पुरास्थल को पर्यटन से जोड़ने की दिशा में जिला प्रशासन का प्रयास तेज है। जिले की समृद्ध विरासत जितनी गहरी और पौराणिक है, उस अनुसार पहचान नहीं बनी है। जिलाधिकारी के रूप में मिथिलेश मिश्र के योगदान के बाद जिले की समृद्ध विरासत को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने की दिशा में लगातार काम हो रहा है।

    वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकार में शीर्ष पदों पर क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की भागीदारी रहने से यह जिला राजनीतिक दृष्टिकोण से भी काफी समृद्ध है। अगर इस जिले को बुद्ध, रामायण, शिव सर्किट से जोड़ दिया जाए तो आने वाले दिनों में यह जिला पर्यटन के क्षेत्र में देवघर, राजगीर, नालंदा एवं बोधगया के समकक्ष बन सकता है।

    जिले के सात सरकारी पुरास्थल

    नगर परिषद लखीसराय वार्ड नंबर 33 अंतर्गत जयनगर लाली पहाड़ी, रामगढ़ चौक प्रखंड अंतर्गत सत्संडा पहाड़, चानन प्रखंड अंतर्गत बिछवे पहाड़, चानन प्रखंड अंतर्गत घोसीकुंडी पहाड़ी, सूर्यगढ़ा प्रखंड अंतर्गत लय पहाड़ी, रामगढ़ चौक प्रखंड अंतर्गत नोनगढ़ टीला, लखीसराय प्रखंड अंतर्गत बालगुदर टीला।

    जिले के राजकीय पुरास्थलों का जानें इतिहास

    लाली पहाड़ी शहर के वार्ड नंबर 33 जयनगर में स्थित है। यह एक महत्वपूर्ण राजकीय धरोहर है। यह स्थान बौद्ध कालीन अवशेषों से भरा हुआ है। लाली पहाड़ी की खोदाई से पता चला है कि यह महिला बौद्ध भिक्षुओं का एक साधना केंद्र था, जिसे श्रीमद् धम्म विहार के नाम से जाना जाता था।

    यहां कई प्राचीन वस्तुएं मिली हैं। यह स्थान बौद्ध स्तूप और मठ के अवशेषों से भरा हुआ है। राज्य सरकार ने लाली पहाड़ी पर स्थित खोदाई स्थल को संरक्षित करने के लिए करीब तीन करोड़ और पहाड़ी को पर्यटन विकास की दृष्टिकोण से विकसित करने के लिए 29 करोड़ की राशि आवंटित की है।

    बौद्ध धर्म से जुड़ा है बिछवे और घोसीकुंडी पहाड़

    राजकीय पुरास्थल घोषित जिले के चानन प्रखंड अंतर्गत बिछड़े और घोसीकुंडी पहाड़ भी बौद्ध धर्म से जुड़े ऐतिहासिक महत्व का प्रतीक है।

    सिंगारपुर गांव से सटे बिछवे पहाड़ी के शिखर पर निर्मित बौद्ध मठ के अवशेष आज भी हैं। इस पहाड़ी पर शेलोकृत मनोती स्तूप, भगवान विष्णु, वैष्णवी एवं महिसासुर मर्दनी खंडित मूर्तियां, मौर्य कालीन ईंट बरामद हुई है। बिछवे पहाड़ी की मनोरम छटा लोगों को आकर्षित करती है।

    नोनगढ़ टीला की होगी खोदाई, सत्संडा में छिपा है इतिहास

    रामगढ़ चौक में ही नोनगढ़ टीला और सत्संडा पहाड़ है। नोनगढ़ पुरास्थल कुषाण काल दूसरी शताब्दी से जुड़ा बताया जाता है। इस क्षेत्र से लाल बलुआ पत्थर निर्मित मूर्ति बरामद हुई थी जो अभी लखीसराय संग्रहालय में प्रदर्शित है। सरकार ने नोनगढ़ राजकीय पुरास्थल के उत्खनन की अनुमति प्रदान कर दी है।

    सत्संडा गांव स्थित किष्किंधा पहाड़ संध्या पहाड़ के रूप में जाना जाता है। इस पहाड़ी पर चतुर्भुज भगवान की काले पत्थर की प्राचीन मूर्ति स्थापित है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी प्रगति यात्रा के दौरान इसको संरक्षित करने की घोषणा की थी। इसके लिए सरकार ने छह करोड़ 83 लाख रुपये की स्वीकृति प्रदान किए हैं।

    लय और उरैन पहाड़ी का भी है महत्व

    सूर्यगढ़ा प्रखंड स्थित लय पहाड़ी भी एक राजकीय स्मारक और पुरातात्विक स्थल है। राज्य सरकार ने इसे संरक्षित करने की घोषणा की है। उरैन पहाड़ी भी बौद्ध शिक्षा और साधना का केंद्र के रूप में चिह्नित है।

    यहां बौद्ध धर्म से संबंधित कई ऐतिहासिक अवशेष मिलने का दावा किया जा रहा है, लेकिन अब तक इस पहाड़ी को संरक्षित नहीं किया गया है। अब तक इस पहाड़ी पर संरक्षण का कोई कार्य शुरू नहीं हुआ है।

    बालगुदर टीला के नीचे दफन है इतिहास

    लखीसराय संग्रहालय से सटे प्राचीन बालगुदर गढ़ टीला आठवीं एवं नवमी शताब्दी का है। इसके नीचे पुरातत्व इतिहास जमीनदोज रहने की उम्मीद है। हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संग्रहालय निरीक्षण के दौरान बालगुदर गढ़ टीला को संरक्षित करने की घोषणा की गई थी।

    बालगुदर टीला के चारों ओर मिट्टी कटाई के बाद जो भग्नावेश है उससे प्रतीत होता है कि यह स्थल बौद्ध मठ के रूप में होगा। यहीं से भगवान बुद्ध की भी मूर्ति मिली है जो संग्रहालय में रखी गई है।

    लखीसराय जिला धार्मिक, पौराणिक विरासत और धरोहरों से काफी समृद्ध है। राज्य सरकार ने जिले के सात पुरास्थलों को संरक्षित करने के लिए सुरक्षित स्थल घोषित किया है। सरकार द्वारा लाली पहाड़ी और सत्संडा पहाड़ के उन्नयन और विकास के लिए राशि भी आवंटित की है। जिले में पुरातत्व को पर्यटन से जोड़ने की दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। पर्यटन की संभावनाओं का रोडमैप भी तैयार किया गया है। जिले की समृद्ध विरासत की पहचान वैश्विक स्तर पर स्थापित हो इसके लिए भी कार्य किए जा रहे हैं।

    मिथिलेश मिश्र, जिलाधिकारी, लखीसराय

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