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    Navratri Special: यहां बलि प्रथा के विरोध में शुरू हुई थी दुर्गा पूजा, दशहरा का दिन होता है खास

    Updated: Tue, 23 Sep 2025 03:19 PM (IST)

    किशनगंज जिले के ठाकुरगंज बाजार में लगभग 100 वर्ष पूर्व दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई थी। यह पूजा बलि प्रथा के विरोध में एक छोटे से काली मंदिर से शुरू हुई थी। धीरे-धीरे यह ठाकुरगंज की सबसे लोकप्रिय पूजा बन गई। यहां बंगाली शैली में पूजा होती है और हर साल रावण दहन का कार्यक्रम होता है जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं।

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    सौ वर्ष पहले शुरू हुई थी मां की पूजा। फोटो जागरण

    संवाद सूत्र, ठाकुरगंज (किशनगंज)। करीब सौ वर्ष पूर्व महज एक छोटे से काली मंदिर के भीतर बलि प्रथा के विरोध के प्रतीक के रूप में ठाकुरगंज बाजार में दुर्गा पूजा शुरू हुई थी। वर्तमान में ठाकुरगंज की सबसे भव्य और लोकप्रिय सार्वजनिक पूजा के रूप में स्थापित हो चुकी है।

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    जानकारी के अनुसार ठाकुरगंज में पहली बार दुर्गा पूजा वर्ष 1921 में रेलवे के पीडब्ल्यूडी कार्यालय में आयोजित हुई थी। उस समय पूरे ठाकुरगंज के लोग एकजुट होकर इसमें शामिल हुए, किंतु कुछ मतभेदों के कारण 1924 में दिवंगत डॉ. कमलेश चंद्र लाहिड़ी ने लाहिड़ी मिल परिसर में पूजा की शुरुआत की।

    इसी वर्ष बलि प्रथा को लेकर विवाद हुआ। स्व. गणपत राय केजड़ीवाल ने बलि प्रथा का खुलकर विरोध किया और अगले वर्ष स्थानीय लोगों के सहयोग से ठाकुरगंज बाजार स्थित काली मंदिर में दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया।

    इस पहल में स्व. मोहनलाल करनानी, स्व. कालूराम गाडोदिया, स्व. हरिचरण चौधरी, स्व. पोरेश दत्ता और स्व. डॉ. तिनकुड़ी सरकार जैसे अग्रणी लोग शामिल हुए। पहले पुजारी के रूप में स्व. निहार पंडित ने पूजा का संचालन किया। यही छोटा सा प्रयास आगे चलकर भव्य सार्वजनिक दुर्गा पूजा में बदल गया।

    सहयोग और समर्पण का इतिहास

    पूजा समिति के वरिष्ठ सदस्य डॉ. एस. सरकार, पूर्व मुख्य पार्षद देवकी अग्रवाल, गोपाल केजड़ीवाल, दुलाल दत्ता, गणेश अग्रवाल, त्रिलोक अग्रवाल आदि बताते हैं कि इस पूजा को भव्य स्वरूप देने में स्व. ब्रजमोहन चटर्जी, स्व. रमेश बनर्जी, स्व. महावीर केजड़ीवाल, स्व. पन्नालाल मोर, स्व. पन्नालाल गाडोदिया, स्व. श्याम केजड़ीवाल, स्व. बद्री गाडोदिया, स्व. कालाचंदा, तपन दा और स्व. निरंजन मोर का योगदान भुलाया नहीं जा सकता।

    देवकी अग्रवाल के अनुसार, यह पूजा शुरू में मंदिर के भीतर होती थी। धीरे-धीरे पूजा का स्वरूप बड़ा होता गया और मंदिर के बरामदे से बाहर पंडाल तक पहुंचा। समय के साथ छोटे पंडाल ने भव्य रूप लिया और वर्ष 1988 में इस स्थल पर भव्य मंदिर का निर्माण हुआ, जहां मां दुर्गा और मां काली की आराधना एक साथ शुरू हुई।

    बंगाली परंपरा और विशेष आकर्षण

    ठाकुरगंज बाजार दुर्गा पूजा समिति की विशेष पहचान बंगाल शैली की पूजा पद्धति और भव्य सजावट है। यहां हर साल बंगाल के मूर्तिकार प्रतिमाएं बनाते हैं और पूजा पंडाल व मंदिर परिसर को पारंपरिक व आधुनिकता के संगम से सजाया जाता है।

    मंदिर का अंदरूनी हिस्सा भी आकर्षण का केंद्र है। दो दशक पूर्व तैयार की गई कलाकृतियां ओडिशा और कोलकाता के शिल्पकारों की देन हैं। यहां स्थायी प्रतिमा नहीं होती, बल्कि हर वर्ष नयी प्रतिमा का निर्माण यहीं किया जाता है।

    दशमी का रावण दहन खास

    विजयादशमी के दिन इस पूजा पंडाल का विशेष आकर्षण रावण दहन होता है। हजारों की भीड़ इस कार्यक्रम में शामिल होती है। इस दिन माता को पहनाई जाने वाली माला की डाक भी होती है, जिसकी बोली लाखों में लगती है। भक्तों के बीच इस डाक को लेकर जबरदस्त उत्साह देखा जाता है।

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