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    Bihar Election: बीते चुनाव नहीं मिला था भाव, इस बार महागठबंधन की नींद उड़ा गए ओवैसी

    Updated: Sat, 27 Sep 2025 08:10 PM (IST)

    कटिहार में ओवैसी की रैली ने महागठबंधन की चिंता बढ़ा दी है। मुस्लिम बहुल इलाकों में उमड़ी भीड़ और लोगों का समर्थन महागठबंधन के लिए खतरे का संकेत है। पहले कांग्रेस और लालू-नीतीश को आजमाने के बाद अब लोग अपनी बिरादरी का साथ देने को तैयार हैं। ओवैसी का महागठबंधन में शामिल न होना भी एक मुद्दा है जिससे राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं।

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    महागठबंधन की नींद उड़ा गए ओवैसी। फोटो जागरण

    संवाद सहयोगी, कटिहार। सीमांचल के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में इस बार असदुद्दीन ओवैसी महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं। कटिहार के बलरामपुर की सभा ने संकेत दिया हैं। सभा स्थल पर उमड़ी भारी भीड़ और सबको देखा बार-बार, ओवैसी को देखेंगे इस बार के माहौल ने चर्चा गरमा दी है।

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    यहां बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समाज के लोग ना सिर्फ सुनने और देखने आए थे, बल्कि इनके अंदर एक नई उत्साह व उर्जा नजर आ रही थी। यह हम यूं ही नहीं कह रहे। औवेसी की सभा में जहागीर आलम ने कहा कि इस बार वोट इनको ही डालेंगे।

    मो. रेजाबुल ने कहा कि पहले कांग्रेस, फिर लालू-नीतीश को देखा। जब सब अपनी जाति के नेता को वोट करते हैं, तो अपनी बिरादरी का साथ देने में परहेज क्यों? यही जज्बा वहां मौजूद मो. रजीबुल और रियाजुद्दीन समेत बड़ी संख्या में लोगों के बीच देखने को मिली।

    मुस्लिम समाज का यह भाव महागठबंधन के लिए किसी खतरे की घटती से कम नहीं है। बलरामपुर विधान सभा में फिलहाल महागठबंधन के घटक दल भाकपा माले का कब्जा है। वर्ष 2015 के चुनाव में औवेसी के उम्मीदवार को महज सात हजार वोट मिले थे।

    वर्ष 2020 में यहां पर कोई उम्मीदवार नहीं उतरा गया, लेकिन बरारी और मनिहारी में उम्मीदवार उतार भाग्य अजमाया था। इसमें बरारी में राकेश यादव को 6598 तथा मनिहारी में गोरिती मुर्मू को 2475 वोट मिले थे।

    वोट का यह आकड़ा दर्शाता है कि कटिहार की धरती ने AIMIM के प्रमुख को भाव नहीं दिया था, लेकिन इस बार औवेसी की कोशिश रंग लाती दिख रही है। कटिहार के सात सीटों में चार पर एनडीए और तीन पर महागठबंधन का कब्जा है।

    खास बात यह कि एनडीए के कब्जे वाली सीटों यथा कटिहार, बरारी और प्राणपुर पर पिछली बार जीत का अंतर 10 प्रतिशत से भी कम रहा। महागठबंधन इन्हीं सीटों पर सेंध लगाने की रणनीति बना रहा था, लेकिन अब ओवैसी का प्रवेश समीकरण बिगाड़ सकता है। वह तब जब ओवैसी उनकी पार्टी को महागठबंधन में शामिल नहीं करने का ठिगरा लालू व तेजस्वी के माथे पर फोड़ रहे हैं।

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