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    Bihar News: यहां दशहरे मेले में आदिवासी चुनते हैं अपना साथी, प्रतियोगिता में जीतने वालों को मिलता है गाय-बछड़ा

    By Rajeev ChoudharyEdited By: Aysha Sheikh
    Updated: Mon, 23 Oct 2023 09:08 AM (IST)

    Dussehra 2023 इस खबर में हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां दशहरे मेले में आदिवासी युवक-युवतियां अपना जीवनसाथी चुनते हैं। बड़गांव का प्राचीन दुर्गा मंदिर 500 वर्ष पुराना बताया जाता है। इसी मंदिर में आदिवासी विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। यहां चार दिनों के लिए दशहरे मेले का आयोजन किया जाता है।

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    मेले की तैयारी चरम पर। जागरण फोटो

    संवाद सूत्र, कोढ़ा (कटिहार)। प्राचीन दुर्गा मंदिर, बड़गांव में नवरात्र की पूजा काफी धूम-धाम से की जाती है। प्राचीन काल में इस मंदिर में आदिवासी विधि-विधान से पूजा-अर्चना किया करते थे।

    अभी भी यहां लगने वाले मेले में आदिवासी युवक-युवतियां अपना जीवनसाथी चुनते हैं। विजयादशमी के एक दिन बाद आदिवासियों द्वारा यहां मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। चार दिनों तक लगने वाले मेले को लेकर आदिवासी समाज के लोगों में काफी उत्साह देखने को मिलता है।

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    500 वर्ष पुराना है मंदिर

    बताया जाता है कि यह मंदिर 500 वर्ष पुराना है। पूर्व में मंदिर तृण-काष्ठ का था। बाद में यहां मंदिर का निर्माण कराया गया। कहा जाता है कि बावनसुजा नामक राजा द्वारा मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती थी।

    राजा ने मंदिर को 52 एकड़ जमीन भी दान में दी थी। मंदिर को स्थानीय लोग शक्तिपीठ के रूप में मानते हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मन्नत पूरी होती है।

    कालांतर में उक्त मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जाने लगा। मेले के समय आदिवासियों के बीच विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है। विजेता व उपविजेता टीम को गाय, बछड़ा व बकरा पुरस्कार के रूप में दिया जाता है।

    मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु चढ़ाते हैं बलि

    मंदिर समिति के सचिव राजीव कुमार बताते हैं कि मंदिर के जमीन की लीज से होने वाली आमदनी को मंदिर कोष में ही जमा किया जाता है। समिति के उपाध्यक्ष लाल बाबू सिंह ने बताया कि भव्य आयोजन में स्थानीय ग्रामीणों की सक्रियता रहती है।

    मंदिर के पुजारी रामा शंकर चौबे बताते हैं कि इस मंदिर में दशकों पूर्व से पूजा-अर्चना की जा रही है। मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु बलि भी चढ़ाते हैं। आदिवासी समाज के लिए यहां भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है।

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