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    शिक्षा व्यवस्था बदहाल! स्कूल में बच्चों की संख्या 250 लेकिन पढ़ाने वाले शिक्षक सिर्फ तीन, संसाधनों का भी अभाव

    By Ravindra Nath BajpaiEdited By: Mukul Kumar
    Updated: Wed, 04 Oct 2023 02:44 PM (IST)

    बिहार में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से लचर हो गई है। इसका नया उदाहरण देखने को मिला है। दरअसल कैमूर जिले मोहनियां प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय में तीन शिक्षकों पर 250 छात्र-छात्राओं को पढ़ाने की जिम्मेदारी है। दो कमरों और एक हॉल में इतने विद्यार्थी बैठकर पढ़ते हैं। अगर सरकार के नियमों से चलें तो एक कमरे में केवल 40 बच्चों को ही पढ़ाया जा सकता है।

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

    संवाद सहयोगी, मोहनियां। बिहार के कैमूर जिले में मोहनियां प्रखंड के विद्यालयों की लचर व्यवस्था से अभिभावक चिंतित हैं। कई ऐसे विद्यालय हैं जहां विद्यार्थियों के सरकारी अनुपात के अनुरूप न कमरें हैं और न ही शिक्षक। इस पर शिक्षा विभाग का ध्यान नहीं है।

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    जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं बच्चे

    विद्यालयों की समस्या देखकर सरकारी तौर पर शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के दावे खोखले नजर आते हैं। प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय तुलसीपुर में तीन शिक्षकों पर 250 छात्र-छात्राओं को पढ़ाने की जिम्मेदारी है। दो कमरों और एक हाल में इतने विद्यार्थी बैठकर शिक्षा ग्रहण करते हैं।

    सरकारी तौर पर 40 विद्यार्थियों पर एक कमरा व एक शिक्षक होने चाहिए। लेकिन उक्त विद्यालय में इस अनुपात में न तो शिक्षक हैं न हीं कमरे। संसाधनों का भी घोर अभाव है। छठी कक्षा तक के बच्चे जमीन पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करते हैं।

    इस विद्यालय को प्राथमिक विद्यालय से मध्य विद्यालय में अपग्रेड तो कर दिया गया लेकिन संसाधन की व्यवस्था नहीं की गई। जिससे यह विद्यालय समस्याओं की मार झेलने को मजबूर है। इस विद्यालय में तुलसीपुर के अलावा राजियाबांध, हसनपुरा, बेर्रा गांव के बच्चे पढ़ते हैं। विद्यालय की चहारदीवारी ध्वस्त है।

    बदहाल व्यवस्था को सुधारने में पदाधिकारियों को कोई रुचि नहीं

    जिससे परिसर में दिन भर मवेशी घूमते हैं। ग्रामीणों का कहना है की विद्यालय की बदहाल व्यवस्था से वे परेशान हैं। विभागीय पदाधिकारियों से भी शिकायत करने पर विद्यालय की व्यवस्था में सुधार नहीं हो रहा है। इससे जाहिर होता है की विद्यालयों की बदहाल व्यवस्था को सुधारने में पदाधिकारियों की रुचि नहीं है।

    जिस विभाग के जिम्मे शिक्षा व्यवस्था को देखना है उसके पदाधिकारी अपने दायित्व के प्रति काफी उदासीन हैं। प्रखंड के कई ऐसे विद्यालय हैं जहां इस तरह की समस्या है। कई विद्यालयों में जाने का रास्ता नहीं है। पेयजल की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। पानी के लिए बच्चों को लंबी दौड़ लगानी पड़ती है।

    ऐसे में बच्चे विद्यालय में कैसे शिक्षा ग्रहण करेंगे यह बड़ा सवाल है। विद्यालयों की बदहाल व्यवस्था को देखकर अभिभावकों को अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी है। उनका कहना है कि सरकारी विद्यालयों की बदहाली से ही निजी विद्यालय फल फूल रहे हैं।

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    इस तरफ न तो पदाधिकारियों का ध्यान है ना ही किसी जनप्रतिनिधि का। शिक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है। इस संबंध में डीपीओ सह मोहनियां के प्रभारी बीईओ अक्षय कुमार पांडेय ने कहा कि वे इस समस्या पर गंभीर हैं। उक्त विद्यालय में शिक्षक की कमी को दूर किया जाएगा।

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