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    Maa Mundeshwari Mandir: मां मुंडेश्वरी मंदिर है देश में सबसे पुराना, कैमूर में 608 फीट ऊंचाई पर जुटते हैं भक्त

    Maa Mundeshwari Mandir मां मुंडेश्वरी मंदिर बिहार के कैमूर जिले में है। इसे देश का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। यह मंदिर पहाड़ पर 608 फीट ऊंचाई पर स्थित है। हर साल यहां लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए आते हैं। मंदिर में स्थापित माता मुंडेश्वरी की प्रतिमा को देख लगता है जैसे माता समक्ष खड़ी हो गई हैं। यह अद्भुत अनुभव होता है।

    By Prince Shubham Edited By: Yogesh Sahu Updated: Wed, 02 Apr 2025 12:56 PM (IST)
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    मां मुंडेश्वरी मंदिर माता की प्रतिमा। (फोटो- जागरण)

    प्रिंस शुभम, भगवानपुर (कैमूर)। देश का सबसे प्राचीन माता मुंडेश्वरी मंदिर कैमूर जिले के भगवानपुर प्रखंड में स्थित है। मां मुंडेश्वरी मंदिर के चलते कैमूर जिले की पहचान देश के कोने-कोने तक पहुंच गई है। मां मुंडेश्वरी का मंदिर प्रवरा पहाड़ी की 608 फीट की ऊंचाई पर है।

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    यहां हर साल श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ रही है। यहां वर्ष में चैत्र नवरात्र, शारदीय नवरात्र व सावन माह में काफी भीड़ होती है। हालांकि, यहां पूरे वर्ष में प्रतिदिन श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है।

    कब बना माता का मंदिर, किस कालखंड से मिली पहचान?

    मां मुंडेश्वरी के मंदिर में पूजा की परंपरा 1900 साल पुरानी है। 1838 से 1904 ई. के बीच कई ब्रिटिश विद्वान व पर्यटक यहां आए थे। मंदिर का 349 ई. से 636 ई. के बीच का शिलालेख कोलकाता के संग्रहालय में है।

    कनिघम ने भी अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि कैमूर में पहाड़ी पर मंदिर ध्वस्त रूप से विद्यमान है। यहां महाराजा दुत्तगामनी की मुद्रा भी मिली है।

    फूलों से सजाया गया मंदिर का द्वार।

    बौद्ध साहित्य के अनुसार, महाराजा दुत्तगामनी अनुराधापुरवंश के थे और ईसा पूर्व 101-77 में श्रीलंका के शासक थे। शिलालेख के ही आधार पर कहा जाता है कि आरंभ में यह वैष्णव मंदिर रहा होगा।

    मां मुंडेश्वरी मंदिर का पता कुछ गड़ेरियों ने लगाया था। वे पहाड़ी पर पशुओं को चराने के लिए गए थे। तब उनकी नजर मंदिर पर पड़ी। इसके बाद धीरे-धीरे लोग मंदिर के बारे में जानने लगे।

    मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा।

    मां मुंडेश्वरी मंदिर की विशेषता

    इस मंदिर की खास विशेषता है कि मां मुंडेश्वरी रक्त विहीन बलि स्वीकार करती हैं। यहां मान्यता है कि पुजारी द्वारा मां मुंडेश्वरी के चरण में स्पर्श कराकर सिर्फ चावल छिड़कने से बकरा बेहोश हो जाता है।

    इसके बाद पुन: मां मुंडेश्वरी से स्पर्श कराकर चावल छिड़कने से बकरा होश में आ जाता है। इसी दौरान मां बलि स्वीकार कर लेती हैं। मां मुंडेश्वरी भैंसे पर सवार हैं।

    सृष्टि की रक्षा के लिए मां मुंडेश्वरी ने मुंड नामक राक्षस का वध किया था। इस मंदिर में पंचमुखी महादेव का शिवलिंग भी है। इसके अलावा भगवान गणेश की भी प्रतिमा है।

    माता मुंडेश्वरी की प्रतिमा।

    वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है मां मुंडेश्वरी मंदिर

    मंदिर अष्टकोणीय है। चारों दिशाओं में इसके चार द्वार हैं। चारों कोनों में बाहर से ताखा बने हुए हैं। मां मुंडेश्वरी का मंदिर पूर्णत: श्रीयंत्र पर निर्मित है। वस्तुत: श्री यंत्र प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प की चरम उपलब्धि को दर्शाता है।

    श्री यंत्र पर निर्मित मंदिर अष्टकोणीय आधार पर स्थित त्रिविमीय होता है। मां मुंडेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग है। जो अत्यंत प्रभावकारी एवं अद्वितीय है।

    मंदिर के गर्भगृह में स्थित पंचमुखी महादेव।

    इतिहास के झरोखे से मिलती झलक

    यह मंदिर देश का सबसे प्राचीन है। जिले के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले यहां कुछ नहीं था। जब मंदिर की जानकारी हुई तब लोग आते थे। लेकिन उस समय यहां आने वालों की संख्या काफी कम थी। तब यहां कोई सुविधा नहीं थी।

    लोग पहाड़ी के पत्थरों को पकड़-पकड़कर मंदिर तक पहुंचते थे। लेकिन अब धीरे-धीरे इसका विकास हुआ है। अब यहां सीढ़ी, सड़क दोनों तरह से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। धाम परिसर में ईको पार्क का भी निर्माण हो गया है।

    मंदिर का महत्व

    मां मुंडेश्वरी मंदिर का महत्व काफी अधिक है। मंदिर में स्थापित माता मुंडेश्वरी की प्रतिमा को देख ऐसा लगता है जैसे माता समक्ष खड़ी हो गई हैं।

    मंदिर में जाने के बाद शांति का एक अद्भुत अनुभव मिलता है। देश का सबसे प्राचीन मंदिर होने के चलते यहां कई अवशेष हैं, जो अन्यत्र कहीं नहीं दिखते।

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