Chaitra Navratri 2025: मां मंगला गौरी के दर्शन से पूरी होती हैं कामनाएं, सुदर्शन चक्र से जुड़ी है रोचक कथा
बिहार के गया जिले में मां मंगला गौरी के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां सारी कामनाएं पूरी होती हैं। गया के भष्मकूट पर्वत पर स्थित माता के मंदिर में हर मंगलवार को भक्तों का तांता लगा रहता है। नवरात्र में यहां और भी ज्यादा भक्त आते हैं। जानिए इस मंदिर के इतिहास और धार्मिक महत्व के बारे में।
कमल नयन, गया। "ॐ मंगलायै नमः। वरं देहि देवि। भष्मकूटनिवासिनि..." यह संस्कृत श्लोक मां मंगला गौरी के दरबार (Maa Mangala Gauri Temple) में प्रवेश मार्ग की पहली सीढ़ी पर अंकित है। मंदिर का भव्य सिंह द्वार, जो मोजाइक पत्थरों से निर्मित है, श्रद्धालुओं का स्वागत करता है। इस द्वार से लगभग 50-55 चौड़ी सीढ़ियां चढ़कर भक्त मां के दरबार तक पहुंचते हैं।
यह स्थान कालांतर से प्रसिद्ध भष्मकूट पर्वत (Bhasmkut Parvat) के नाम से जाना जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग भी है, जो वाहनों के लिए अक्षयवट से होकर पीछे की ओर जाता है। इस मार्ग को और आकर्षक बनाने के प्रयास जारी हैं। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए यहां एक तीन मंजिला धर्मशाला का निर्माण भी किया जा रहा है।
मां मंगला गौरी मंदिर में खड़े भक्तगण।
भष्मकूट पर्वत के रूप में जाना जाता है ये पहाड़ी क्षेत्र
गयाजी के पहाड़ी क्षेत्र में ब्रह्मयोनि की श्रृंखलाओं का एक छोटा-सा हिस्सा मां मंगला गौरी (Maa Mangala Gauri) के आगमन से भष्मकूट पर्वत के रूप में विख्यात हो गया। सीढ़ियों के अंतिम पड़ाव पर पहुंचते ही स्वतः ही सिर श्रद्धा से झुक जाता है।
मंदिर में प्रवेश के गलियारे में खड़े भक्तगण।
सामने एक छोटी पहाड़ी पर गुफा दिखाई देती है, जिसके ऊपर सीमेंट और मोजाइक से बना मंदिरनुमा ढांचा सुशोभित है। भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए कई गलियारे बनाए गए हैं, जिनमें पंक्तिबद्ध होकर भक्त गुफा के भीतर मां के दर्शन के लिए बढ़ते हैं।
गर्भगृह में मां मंगला गौरी।
गुफा में लगातार जलता है घी का दीया
गुफा के भीतर घृतदीप निरंतर जलता रहता है। इसके नीचे पिंड रूप में मां का पालनपीठ विराजमान हैं, जो हर समय लाल चुनरी और उड़हुल के फूलों से आच्छादित रहता है। यही मां का सच्चा दरबार है, जहां से भक्त नमन कर सुख-शांति की प्राप्ति करते हैं। उड़हुल के फूल और नारियल यहां का प्रमुख प्रसाद माना जाता है।
मंदिर परिसर में माता के दर्शन के लिए इंतजार करते श्रद्धालु।
माता के मंदिर की क्या है कहानी?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सतयुग में ही मां का यह स्थान स्थापित हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार, जब सती के रूप में मां के शरीर को भगवान शिव अपनी भुजाओं में लपेटे त्रिलोक का भ्रमण कर रहे थे, तब उनके इस आवेग को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र (Sudarshan Chakra) चलाया। इससे सती का शरीर 108 खंडों में विभक्त (बंट गया) हो गया। इनमें से तीन प्रमुख भाग सृष्टि के नियमों के अनुरूप स्थापित हुए- उत्पत्ति, पालन और संहार। उत्पत्ति का स्थान असम के कामाख्या में, पालन पीठ बिहार के गयाजी में और संहार शक्ति हिमाचल प्रदेश के ज्वालामुखी में अवस्थित है। - विपिन कुमार गिरी, मां मंगला गौरी मंदिर के पुजारी
गर्भगृह के पहले लगी कतार।
दूर-दूर से आते हैं भक्त
साहित्यकार डॉ. राकेश कुमार सिन्हा 'रवि' बताते हैं कि मां मंगला गौरी के इस धाम में मां के अतिरिक्त कई अन्य धार्मिक स्थल भी हैं, जो इस परिसर को अलंकृत करते हैं। इनमें श्रीमंगल गणेश, भष्मदेव शिव, मंगलेश्वर महादेव, पंचमुंडी साधना स्थल, दक्षिणमुखी काली मंदिर, ब्रह्मस्थान, भैरव स्थान, महावीर स्थान और बटुक भैरव स्थान शामिल हैं।
वे कहते हैं कि आज के कलयुग में, जहां भौतिकवाद का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, वहीं मां मंगला गौरी का यह धाम पूर्व की भांति आस्था का केंद्र बना हुआ है। न केवल मंगलवार को, बल्कि प्रतिदिन दूर-दूर से भक्त मंगलकामना लेकर यहां पहुंचते हैं।
मां मंगला गौरी मंदिर के पश्चिमी भाग में बना रास्ता।
ग्रंथों में है मां की महिमा
मां की महिमा दक्षिण भारत के ग्रंथों में भी वर्णित है। इसका प्रमाण यह है कि गयाजी (Gaya News) में श्रीहरि के दर्शन के लिए आने वाले दक्षिण भारतीय श्रद्धालु अब बड़ी संख्या में मंगला गौरी मंदिर (Maa Mangala Gauri Mandir) भी आते हैं। ये भक्त मां के चरणों में सुहाग के प्रतीक सिंदूर और चूड़ियां अर्पित करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानते हैं।
यही कारण है कि कहा जाता है- "जय मां मंगले" के मनोभाव से किए गए हर कार्य को मां मंगला गौरी पूर्णता प्रदान करती हैं। वे अपने भक्तों को हर पल, हर घड़ी मंगलमय जीवन का आशीर्वाद देती हैं।
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