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    Bihar Politics: खुद के घर से बेघर हुई भाजपा, 'सेफ सीट' पर ही हो गया 'खेल'; अब चुनाव में क्या होगा?

    Updated: Thu, 25 Sep 2025 04:54 PM (IST)

    जमुई जिले के चकाई विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदले हैं। कभी भाजपा का गढ़ माने जाने वाला यह क्षेत्र अब अन्य दलों के प्रभाव में है। फाल्गुनी यादव जैसे नेताओं ने भाजपा को यहां मजबूत किया लेकिन उनके बाद पार्टी एक प्रभावी स्थानीय चेहरा नहीं ढूंढ पाई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को वापसी के लिए मजबूत रणनीति बनानी होगी।

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    खुद के घर से बेघर हुई भाजपा

    मणिकांत, जमुई। सियासत में स्थायी कुछ नहीं होता। पलभर में समीकरण बदल जाते हैं। बिहार की राजनीति में जमुई जिले की चकाई विधानसभा सीट इसकी जिंदा मिसाल है। जो सीट कभी भाजपा का गढ़ कहा जाता था, आज वहां पार्टी बेघर सी हो गई है।

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    चकाई की राजनीति लंबे समय तक फाल्गुनी प्रसाद यादव और नरेंद्र सिंह जैसे कद्दावर नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही। खासकर फाल्गुनी यादव ने भाजपा को इस इलाके में पहचान दिलाई। 1980, 1995 और 2005 में उन्होंने भाजपा प्रत्याशी के रूप में शानदार जीत हासिल की और चकाई को भाजपा की “सेफ सीट” बना दिया, लेकिन उनके निधन के बाद हालात बदलते चले गए।

    भाजपा ऐसा स्थानीय चेहरा नहीं ढूंढ सकी, जिस पर जनता भरोसा कर सके। परिणाम यह हुआ कि 2010 के बाद से पार्टी की पकड़ ढीली होती गई और सत्ता की बागडोर कभी जेएमएम, कभी राजद तो कभी निर्दलीय के हाथ में जाती रही।

    अब क्या है स्थिति?

    आज की स्थिति यह है कि भाजपा जिस सीट को कभी अपनी ताकत का गढ़ मानती थी, वहां उसकी पकड़ नाम मात्र की रह गई है।

    राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर भाजपा ने जल्द ही मजबूत स्थानीय नेतृत्व खड़ा कर जातीय समीकरणों को साधने की रणनीति नहीं बनाई, तो चकाई में वापसी आसान नहीं होगी।

    भाजपा का उत्थान और पतन

    उत्थान (1980–2005)

    • 1980 में पहली बार फाल्गुनी यादव ने भाजपा को चकाई से जिताया।
    • 1995 और 2005 में भी जीत हासिल कर भाजपा की पहचान मजबूत की।
    • तीन जीत के बाद चकाई भाजपा की ‘सेफ सीट’ कही जाने लगी।

    पतन (2005 के बाद)

    • 2005 के बाद भाजपा कोई प्रभावी स्थानीय चेहरा नहीं दे सकी।
    • 2010 में जेएमएम, 2015 में राजद और 2020 में निर्दलीय उम्मीदवार की जीत।
    • भाजपा हाशिए पर चली गई।

    बदलते समीकरणों का इतिहास

    • 1969–1972 : सोशलिस्ट और कांग्रेस का वर्चस्व।
    • 1980, 1995 और 2005 : फाल्गुनी यादव के दौर में भाजपा का स्वर्णकाल।
    • 2005 के बाद : भाजपा का पतन और अन्य दलों का उदय।
    • 2010–2020 : जेएमएम, राजद और निर्दलीय का दबदबा।

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