River in Bihar: सूख गईं बिहार की 5 नदियां, तेजी से गिर रहा भू-जल स्तर; किसानों की बढ़ी टेंशन
मार्च महीना अभी खत्म नहीं हुआ है कि बिहार की 5 नदियां अभी ही सूख गई हैं। वहीं एक और नदी सूखने के कगार पर पहुंच गई है। आलम यह कि वर्तमान समय में यहां से प्रवाहित होने वाली छोटी-बड़ी आठ नदियों में से ऐसी एक भी नदी नहीं है जिसकी गाद की सफाई पिछले चार दशक के दौरान गाद हुई हो।

मिथिलेश तिवारी, गोपालगंज। Bihar News: नदियों की गाद की सफाई के दावे तो लंबे समय से किए जाते हैं, लेकिन दावे धरातल पर नहीं उतर सके। नदियों की गाद की सफाई का मामला जहां का तहां पड़ा हुआ है। नदियां गाद से भरी पड़ी हैं। इससे किसानों की भी टेंशन बढ़ गई है।
ऐसे में गर्मी की शुरुआत में ही जिले की सीमा से होकर बहने वाली आठ में से पांच नदियां सूख गई हैं। वहीं, एक और नदी सूखने के कगार पर पहुंच गई है।
आलम यह कि वर्तमान समय में यहां से प्रवाहित होने वाली छोटी-बड़ी आठ नदियों में से ऐसी एक भी नदी नहीं है, जिसकी गाद की सफाई पिछले चार दशक के दौरान गाद हुई हो।
हां, इसके लिए प्लान जरूर बना है। यह प्लान धरातल पर नहीं उतर सका है। चाहे गंडक नदी में फंसी गाद की सफाई का मामला हो या अन्य नदियों के गाद की सफाई का। नतीजा यह कि भू-जल के स्तर में लगातार कमी आ रही है।
गोपालगंज जिला पानी के मामले में धनी रहा है। इस जिले में गंडक, खनुआ, वाणगंगा, सोना, छाड़ी, धमई, स्याही तथा घोघारी नदियां बहती हैं। एक जमाना था कि जिले के किसी भी कोने में बीस फीट की गहराई पर पीने योग्य पानी उपलब्ध था।
तब यहां से बहने वाली तमाम नदियों में सालों भर पानी रहता था। समय के साथ गर्मी के समय में नदियां सूखने लगीं और इसका असर जलस्तर नीचे गिरने के रूप में सामने आया है।
आज आलम यह है कि मई में ही गंडक व खनुआ नदी को छोड़कर शेष नदियां या तो सूख चुकी हैं, अथवा सूखने के कगार पर हैं। इसके बावजूद इस ओर प्रशासनिक स्तर पर ध्यान नहीं दिया गया।
ऐसे में यहां भू-जलस्तर में लगातार आ रही गिरावट समस्या का रूप लेती जा रही है, जो भविष्य के लिए संकट से कम नहीं है।
नदी तट पर स्थापित औद्योगिक इकाई
नदियों में फैली गंदगी को दूर करने के लिए सरकारी स्तर पर औद्योगिक इकाइयों को नदी तट से दूर बसाने की बातें कहीं गई, लेकिन आज भी तमाम चीनी मिलें नदी के तट पर ही स्थित हैं। हाल में बंद हुआ सासामुसा स्थित चीनी मिल दाहा (वाणगंगा) नदी के किनारे ही स्थित है।
इसी प्रकार गोपालगंज शहर स्थित छाड़ी नदी में चीनी मिल की गाद गिरती है। यूपी से बिहार आने वाली खनुआ नदी में प्रतापपुर चीनी मिल की गाद गिरती है। ऐसे में लगातार गिरती गाद के कारण दाहा, छाड़ी व खनुआ नदी में गाद जमा हो गई है।
नदी में ही गिरता है कचरा
शहरी इलाके का कचरा नदियों में ही गिरता है। इस बात का पुख्ता प्रमाण जिला मुख्यालय से गुजरने वाली छाड़ी नदी है। चार दशक पूर्व तक छाड़ी नदी का जल काफी स्वच्छ था। जिला मुख्यालय की स्थापना के साथ ही गोपालगंज शहरी क्षेत्र का गंदा पानी इसी नदी में गिरने लगा। ऐसे में आज यह नदी कम और नाला अधिक हो गई है।
जल शोधन की नहीं है व्यवस्था
जिले की नदियां गाद से भरी पड़ी हैं। हालत यह कि नदियों का गर्भ उनके पुराने स्तर से छह से सात फीट उंचा हो गया है। नदियों के जल में गंदगी की जांच के लिए जल शोधन की भी कोई व्यवस्था नहीं है, और ना ही गंदे नदी जल को शुद्ध करने के दिशा में सरकारी स्तर पर कोई प्रयास ही किए गए हैं।
नदियों की दशा सुधारने का प्रारंभ हुआ प्रयास
नदियों की वर्तमान स्थिति में सुधार की दिशा में प्रशासनिक स्तर पर प्रयास प्रारंभ कर दिया गया है। इसके तहत कुचायकोट, उचकागांव व हथुआ प्रखंड से होकर सिवान की ओर जाने वाली वाणगंगा उर्फ दाहा नदी की दशा में सुधार को राज्यस्तरीय टीम निरीक्षण कर चुकी है।
इसके बाद इस नदी की सफाई की योजना फंस गई है। इसी प्रकार शहर से होकर गुजर रही छाड़ी नदी के कायाकल्प की योजना लंबे समय से फंसी है। हीरापाकड़ में नदी के उद्गम स्थल पर स्लुइस गेट को खोले जाने का मामला अधर में अटका हुआ है। इसके अलावा छाड़ी नदी की सफाई का कार्य भी अब तक प्रारंभ नहीं हुआ है।
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