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    Bihar News: बक्सर का एक ऐसा गांव, जहां लड़कियों का भी होता है जनेऊ संस्कार, दशकों से चली आ रही यह खास परंपरा

    Updated: Wed, 14 Feb 2024 03:58 PM (IST)

    जनेऊ धारण करने का अधिकार सिर्फ पुरुषों को प्राप्त है ऐसी धारणा सदियों से चली आ रही है। हालांकि बक्सर का मणिया गांव इस धारण को बदलने में जुटा है। इस गा ...और पढ़ें

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    बसंत पंचमी के अवसर पर मणियां गांव स्थित दयानंद आर्य हाई स्कूल में यज्ञोपवीत धारण करती छात्राएं। (जागरण फोटो)

    रंजीत कुमार पांडेय, डुमरांव (बक्सर)। सनातन संस्कृति व वैदिक रीतियों के आधार पर जनेऊ धारण करने का अधिकार सिर्फ पुरुषों को प्राप्त है, ऐसी धारणा सदियों से चली आ रही है। मणिया गांव इस धारण को बदलने में लगातार जुटा है। इस गांव की लड़कियां जनेऊ धारण कर सनातन संस्कृति को आत्मसात करने की एक नई परंपरा की शुरुआत कर रही हैं।

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    बुधवार को अनुमंडल क्षेत्र के नावानगर प्रखंड अंतर्गत मणियां गांव में चली आ रही परंपरा के तहत बसंत पंचमी के अवसर पर कुल 11 छात्राओं को यज्ञोपवीत संस्कार कराया गया।

    यह अनोखी परंपरा मणियां गांव स्थित दयानंद आर्य हाई स्कूल में प्रति वर्ष आयोजित होती है और इस स्कूल में पढ़ने वाली छात्राएं स्वेच्छा से जनेऊ धारण करती हैं। यहां जनेऊ धारण करने वाली छात्राएं रुढ़िवादी परंपरा को खत्म करने के साथ ही चरित्र निर्माण की शपथ लीं।

    इस मुहिम में लड़कियों को परिवार और समाज से भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। जनेऊ सस्कार के दौरान वैदिक मंत्रोच्चार से विद्यालय परिसर व आसपास का इलाका वैदिक मंत्रोच्चार से गुंजायमान हुआ।

    आचार्य हरिनारायण आर्य और सिद्धेश्वर शर्मा के नेतृत्व में इस बार अंजलि कुमारी, चिंता कुमारी, सीता कुमारी, रुनझुन कुमारी, खुशबू कुमारी, रिमझिम कुमारी, अंजली कुमारी (2) और छात्र अमित कुमार सहित अन्य कई छात्राओं को सामूहिक रूप से यज्ञोपवीत संस्कार कराया गया।

    इस मौके पर उपस्थित आचार्यों, प्रबुद्धजन और छात्राओं ने आगे भी यह प्रक्रिया अनवरत जारी रखने का संकल्प लिया। इस मौके पर ललन सिंह, अयोध्या सिंह, हृदयानंद सिंह, प्रधान जी और विमल सिंह सहित कई लोग उपस्थित रहे।

    स्कूल के संस्थापक ने चलाई थी यह अनोखी परंपरा

    मणिया उच्च विद्यालय के संस्थापक व छपरा गांव निवासी आर्य समाजी विश्वनाथ सिंह ने सन् 1972 ई. में इस परंपरा की शुरुआत की थी।

    उन्होंने सर्वप्रथम अपनी पुत्रियों को ही वैदिक संस्कार के तहत जनेऊ धारण कराया था, उसी समय से बसंत पंचमी पर लड़कियों को यज्ञोपवीत संस्कार कराने की यह परंपरा जारी है।

    मणिया के ग्रामीणों का कहना है कि छात्राओं को यज्ञोपवीत संस्कार के पीछे मुख्य उद्देश्य था कि नारी शक्ति को श्रेष्ठ कराने से समाज का कल्याण हो सकता है।

    यहां नहीं है मूर्तिपूजा का प्रचलन

    आचार्य हरिनारायण आर्य का कहना है कि शिक्षा के प्रति समर्पित और नारी सशक्तीकरण के लिए प्रतिबद्ध स्व. आचार्य विश्वनाथ सिंह के बताए गए रास्ते का अनुसरण करते हुए यहां मूर्ति स्थापना की जगह तीन दिवसीय सारस्वत यज्ञ के अंतिम दिन बसंत पंचमी को विद्यालय की छात्र-छात्राएं हवनकुंड के समक्ष बैठकर यज्ञोपवीत के रूप में आचार्य से श्रेष्ठ आचरण, आदर्श जीवन और सद्चरित्र का संस्कार ग्रहण करती हैं।

    प्रकृति और परमात्मा की अनमोल रत्न बेटियां हमारे मानव समाज की मूल है। इनके संरक्षण और सम्मान के बिना कोई भी कार्य अधूरा रहेगा।-आचार्य सिद्धेश्वर शर्मा।

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