कौन हैं भीम सिंह भवेश? अब मिलेगा पद्म श्री पुरस्कार, 'मन की बात' में पीएम मोदी ने जमकर की थी तारीफ
पद्म श्री से सम्मानित भीम सिंह भवेश ने बिहार के भोजपुर में मुसहर समुदाय के उत्थान के लिए अथक प्रयास किए हैं। उनके कार्यों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी ध्यान आकर्षित किया। भवेश ने मुसहर बच्चों को शिक्षित करने और उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए कई अभियान चलाए हैं। उनके प्रयासों से अब तक आठ हजार से अधिक मुसहर बच्चे स्कूल जा रहे हैं।

कंचन किशोर, आरा। केंद्र सरकार ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार को पद्म पुरस्कार 2025 के विजेताओं की घोषणा की।
इनमें पद्यश्री के लिए भोजपुर में मुसहरों के 'मसीहा' कहे जाने वाले भीम सिंह भवेश को चुना गया है। भवेश ने समाज के सबसे निचले पायदान पर रहने वाले समाज के शिक्षा और सामाजिक उत्थान के लिए काम किया है और कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मान की बात कार्यक्रम के 110वें संस्करण में पिछले साल 25 फरवरी को मुसहर जाति का जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी भीम सिंह भवेश के कार्यों का जिक्र किया था।
पीएम ने कहा था कि '‘परमार्थ परमो धर्मः’. बिहार में भोजपुर के भीम सिंह भवेश जी की कहानी प्रेरणा देने वाली है।
अब राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रतिष्ठित पुरस्कार में उनका नाम आते ही जिले में खुशी की लहर दौड़ गई। वे रविवार को दिल्ली में राजपथ पर गणतंत्र दिवस समारोह में अतिथि के तौर पर आमंत्रित किए गए हैं।
भीम सिंह कई किताबें लिख चुके हैं, लेकिन उनकी चर्चा मुसहरों के जीवन में बदलाव के लिए इनके द्वारा किए जा रहे कार्यों की वजह से होती है।
जिले के एक दर्जन मुसहर टोला में ये उनके जीवन जीने की कला में सुधार और शिक्षा में सुधार के लिए अपनी संस्था नई आशा के माध्यम से कार्य कर रहे हैं। अबतक आठ हजार से ज्यादा मुसहर बच्चों को वे स्कूल भेज चुके हैं।
दरअसल, राज्य में पिछड़ापन की तस्वीर दिखाई जाती है तो पहले पायदान पर मुसहर समुदाय के लोग होते हैं। भवेश इस समुदाय के बीच काम कर रहे हैं।
आरा के अनाइठ में मुसहर बस्ती उनके प्रयास से लाए गए बदलाव का उदाहरण है। यहां सात साल पहले तक एक भी मैट्रिक पास नहीं थे, अब बस्ती के कई युवा इंटर और स्नातक की पढ़ाई कर रोजी-रोजगार से जुड़े हैं।
उदवंतनगर के भेलाई में उन्होंने बच्चियों को स्कूल में भेजने का बीड़ा उठाया। पास में स्कूल था, लेकिन अभिभावक शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं थे। लगातार जागरूककता अभियान चलाया, आज बस्ती के सभी बच्चे स्कूल जा रहे हैं।
ऐसे हुआ सफर शुरू
- भीम सिंह कहते हैं कि पत्रकारिता के क्रम में 2003 में वे आरा के जवाहर टोला स्थित एक मुसहर टोली जाते थे तो वहां की दुर्दशा देखकर उन्हें बहुत दुख होता था।
- वहीं से उन्होंने मुसहर समाज की सेवा और उत्थान के लिए काम करने का प्रण लिया। जिले के नौ अलग-अलग टोले में जाकर उन्होंने मुसहरों के उत्थान के लिए काम किया।
- नई आशा नामक संगठन बनाकर उन्होंने मुसहर युवकों को अपने अभियान से जोड़ा। हर साल वे एक अनोखी क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं, जिसमें केवल मुसहर टोली के खिलाड़ियों की टीम बनाई जाती है।
कई किताब लिख चुके हैं भवेश
भीम सिंह भवेश साहित्यकार भी हैं और कई किताबें लिख चुके हैं। 'कलकत्ता से कोलकाता तक' और 'हाशिए पर हसरत' किताब इनकी बहुत चर्चा में रही है।
करीब 22 सालों से अधिक से मुसहर समाज के लिए काम कर रहा हूं, वंचित वर्ग को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए उन्हें मुझ जैसे कई 'भवेश' की जरूरत है, मेरा जीवन उनके लिए समर्पित है और यह पुरस्कार उस वंचित समाज का सम्मान है।- भीम सिंह भवेश
यह भी पढ़ें-
बिहार की दो हस्तियों को मिला पद्मश्री, इस काम के लिए मिला सम्मान; आरा-मुजफ्फरपुर के हैं निवासी
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।