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    Indira Gandhi Death Anniversary: अचानक बदल गया था माहौल, जगह-जगह होने लगी थी आगजनी; आरा में 31 दिसंबर 1984 को क्या-क्या हुआ?

    By Kanchan KishoreEdited By: Rajat Mourya
    Updated: Tue, 31 Oct 2023 06:45 AM (IST)

    आज इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि है। 31 दिसंबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या के बाद राजधानी दिल्ली में दंगे शुरू हो गए थे। जिसकी चिंगारी बिहार के आरा तक पहुंची। यहां कई सिखों की दुकानें जला कर राख कर दी गईं। यहां अभी भी कई सिख परिवार रहते हैं जो 31 दिसंबर 1984 का वो काला दिन याद कर सिहर उठते हैं।

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    अचानक बदल गया था माहौल, जगह-जगह होने लगी थी आगजनी; आरा में 31 दिसंबर 1984 को क्या-क्या हुआ?

    कंचन किशोर, आरा। Indira Gandhi Death Anniversary "अपनी इलेक्ट्रॉनिक्स दुकान में हर दिन की तरह ग्राहकों से डील कर रहा था, लगभग सवा 12 बजे बाजार में हल्ला हुआ कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई है, तब अपने ऊपर आने वाली विपत्ति का अंदेशा नहीं था, लेकिन एहतियातन दुकान बंद कर घर आ गया। शाम में अचानक कुछ लोगों का समूह उग्र हो गया और दुकान में तोड़फोड़ की खबर मिली, उस दिन की रात बहुत भयावह थी, आनन-फानन में कई रिश्तेदार यहां से चले गए, लेकिन मेरी इसी मिट्टी की पैदाइश थी, और कहां जाता, आस-पड़ोस के लोगों ने साथ दिया और दोबारा हमलोग खड़े हुए।"

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    आरा में सबसे पुराने पंजाब इलेक्ट्रॉनिक्स स्टोर चलाने वाले सरदार सतनाम सिंह इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजे हालात को उक्त शब्दों में बताते हुए आज भी सिहर उठते हैं, लेकिन वाहे गुरु को धन्यवाद भी देते हैं कि छिटपुट घटनाओं को छोड़ यहां जानमाल की हानि नहीं हुई थी।

    कपड़ा व्यवसायी सुरजीत सिंह। फोटो- जागरण

    वहीं, कपड़ा व्यवसायी सुरजीत सिंह बताते हैं कि तब आरा बिहार में कपड़ा की सबसे बड़ी मंडी हुआ करता था, यह व्यवसाय ज्यादातर सिखों के पास ही था। यहां लगभग 150 सिख परिवार रहते थे। पूरे बिहार से यहां व्यापारी आते थे। उस घटना के बाद आनन-फानन में 100 से ज्यादा परिवार पलायन कर गए। धीरे-धीरे स्थिति तो सामान्य हो गई, लेकिन आरा ने राज्य में सबसे बड़ा कपड़ा मंडी होने का अपना ओहदा खो दिया। सुरजीत सिंह ने बताया कि जो लोग यहां से चले गए, उनमें से अधिकांश ने लुधियाना में अपना व्यवसाय जमा लिया।

    रवि सलूजा। फोटो- जागरण

    व्यवसायी रवि सलूजा कहते हैं कि उनके परिवार की दशमेश मार्केट में कपड़े की दुकान थी, जब शाम में पटना एवं दिल्ली से रिश्तेदारों के यहां से हमले की खबर आने लगी तो वे लोग काफी डर गए और गुरुद्वारा में जमा हो गए, यहां आसपास के सभी लोग उन लोगों की सुरक्षा में खड़े हो गए, तब रघुवंश सिंह नामक एक दरोगा कई दिनों तक बिना सोए अपनी टीम के साथ गुरु घर में रह रहे सिख परिवारों को सुरक्षा देते रहे।

    हरमनप्रीत सिंह। फोटो- जागरण

    हरमनप्रीत सिंह कहते हैं कि तब वे बहुत छोटे थे, उनके पिता की करमनटोला में कृषि यंत्र की दुकान थी, सबकुछ बर्बाद हो गया था, लेकिन आरा वासियों ने भरोसा दिया। कपड़ा व्यवसायी इकबाल सिंह कहते हैं कि उस घटना के बाद जो यहां रह गए, उन्होंने फिर से खुद को खड़ा तो कर लिया, लेकिन यहां से व्यवसायिक समुदाय के पलायन करने का नुकसान राज्य को उठाना पड़ा, तब सिखों के पास ही यहां के बड़े व्यवसाय थे, आज वे होते तो शायद बिहार बड़ा व्यावसायिक प्रदेश होता।

    घुड़सवार पुलिस ने संभाली थी कमान, रोका जानमाल का नुकसान

    31 अक्टूबर 1984 को छठ का पारण था, शहर अलसाया हुआ था, इंदिरा गांधी के निधन की सूचना आते ही अचानक माहौल बदल गया, पुलिस तुरंत सक्रिय हो गई, गलियों में अनहोनी रोकने के लिए घुड़सवार पुलिस को उतार दिया गया, यह बहुत प्रभावी साबित हुआ, गली-गली में घुड़सवार पुलिस की पेट्रोलिंग से जान-माल का नुकसान कम हुआ।

    तब महाराजा कालेज छात्र संघ के उपाध्यक्ष रहे वरिष्ठ भाजपा नेता धीरेन्द्र सिंह को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद शहर की स्थिति आज भी याद है। कहते हैं, तब नारायण मिश्रा यहां के एसपी थी, अगले दिन सुबह में ही पूरे शहर में कर्फ्यू की लगा दी गई थी। बुजुर्ग रंजीत बहादुर माथुर कहते हैं, वे पटना से लौट रहे थे, चारपुलवा के पास एक साइकिल दुकान में तोड़फोड़ होते

    देखा।

    कांग्रेसी नेता प्रो.बलराज ठाकुर कहते हैं कि यह हमलोगों के लिए काला दिन था, कुछ लोग भावनाओं में बह गए थे। तब शाहाबाद महिला शाखा की अध्यक्ष रहीं मालती पांडेय ने कहा कि शायद ही उस दिन जिले में किसी घर में खाना बना था, इंदिरा जी का इस तरह से अचानक चले जाने की देश को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।

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