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    ...जब बिहार पुलिस के अधिकारी बोले -हत्यारों, लुटेरों और दुष्‍कर्म‍ियों को जीने का हक नहीं, भागलपुर में कर दी थी यह कार्रवाई

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By:
    Updated: Wed, 29 Jun 2022 01:36 PM (IST)

    Bihar Bhagalpur Akhphodwa case बिहार के भागलपुर में 1980 में हुए आंखफोड़वाकांड की आज फ‍िर से चर्चा हो रही है। THE COMMISSIONER FOR LOST CAUSES पुस्‍तक में इस घटना का जिक्र किया है। इस कांड ने भारत को ही नहीं बल्कि विदेशों को भी झकझोर दिया था।

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    Bihar Bhagalpur Akhphodwa case: एक बार फ‍िर आंखफोड़वा कांड की चर्चा हो रही है।

    Bihar Bhagalpur Akhphodwa case: ऑनलाइन डेस्‍क, भागलपुर। बिहार के भागलपुर में 42 साल पहले हुए एक घटना की आज भी चर्चा हो रही है। भागलपुर में पुलिस ने 33 लोगों के आंखों को सूआ से फोड़कर उसमें तेजाब डाल जला दी थी। इस घटना को आंखफोड़वा कांड कहा गया। आज फ‍िर इस घटना की चर्चा हो रही है। अरूण शौरी की आत्‍मकथा THE COMMISSIONER FOR LOST CAUSES नामक पुस्‍तक में आंखफोड़वा कांड का जिक्र है।

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    बाद में पुलिस की इस कार्रवाई काफी आलोचना हुई। भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसकी खूब चर्चा हुई। अन्‍य देशों ने भी भारत में हुए इस प्रकार की कार्रवाई पर चिंता जताई।

    इसके बाद उस सयम के पुलिस अधिकारियों ने कहा था कि यह काम पुलिस नहीं, भागलपुर आम जनता कर रही है। कहा कि अपराधियों को जीने का हक नहीं है। हत्यारों, लुटेरों और दुष्‍कर्म‍ियों पर ममता दिखाने का वक्‍त समाप्‍त हो गया। ऐसे लोगों के लिए आंसू बहाने की कोई ज़रूरत नहीं है।

    अपराध को काबू करने का कारगर तरीका

    यहां बता दें कि बिहार के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा मंत्रिमंडल के एक-दो सदस्यों को इस मुहिम की जानकारी थी। उन्होंने पुलिस को इस मामले में आगाह भी किया था। लेकिन भागलपुर के पुलिस अधिकारियों कहा कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए यही सबसे बेहतर तरीका है। पुलिस अधिकारियों ने कहा-यह काम पुलिस आम जनता कर रही है, इसमें पुलिस की ज्‍यादा भूमिका नहीं है। मानना है कि अपराधियों के लिए आंसू बहाने की जरूरत नहीं है। जिसने हत्या की, लुट की घटना को अंजाम दिया, दुष्‍कर्म‍ियों किया, ऐसे लोगों को जीने का हक नहीं है। यह घटना वर्ष 1980 की है।

    इसके बार सरकार ने कई पुलिस वालों को निलंबित कर दिया। निलंबन के विरोध में भागलपुर की जनता सड़क पर आ गई। पुलिस वाले भी इस निलंबन से दुखी हुए। जब काफी संख्‍या में पुलिस अ‍अधिकारी सस्पेंड हुए तो वो लोग प्रदर्शन करने लगे। सड़क पर आ गए। इस आंदोलन में सिविल एडमिनिस्ट्रेशन के लोग भी साथ थे।

    भागलपुर में खूब प्रदर्शन हुआ। सभी संभ्रांत वर्ग के लोग पुलिस अधिकारियों के निलंबन को वापस करने की मांग कर रहे थे। ऊंचे पद, ऊंची जाति, वकील, छात्र और पत्रकारों ने जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया। इन लोगों ने खूब नारे लगाए। पुलिस वाले निर्दोष हैं, पुलिस जनता भाई-भाई।

    इसके बाद तत्‍कालीन बिहार के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र और ईस्टर्न रेंज के डीआईजी इसके लिए आम लोगों को ज़िम्मेदार ठहराया।

    जेल अधीक्षक का निलंबन

    सरकार ने भागलपुर जेल अधीक्षक बच्‍चू लाल दास (बी के दास) को निलंबित कर दिया। आरोप लगा कि अंधे किए लोगों की सही प्रविष्टि नहीं की और इलाज के लिए उचित व्यवस्था नहीं करवाई। उनपर यह भी आरोप था कि उन्‍होंने आंखफोड़वा कांड की जानकारी मीडिया को दी।

    जुलाई, 1980 में डीआईजी (ईस्टर्न रेंज) गजेंद्र नारायण ने डीआईजी (सीआईडी) से आग्रह किया कि एक अनुभवी पुलिस अधिकारी को आंखफोड़वा जांच के लिए भागलपुर भेजें। जांच के बाद गजेंद्र नारायण को रिपोर्ट दी कि पुलिस वाले अपराधियों को अंधा कर रहे हैं। डीआईजी (सीआईडी) एमके झा को भी रिपोर्ट सौंपी। इसके बाद जांच कर रहे पुलिस अधिकारी पर रिपोर्ट बदलने का दबाव बनाया जाने लगा।

    डॉक्टरों ने नहीं किया इलाज

    जुलाई, 1980 में भागलपुर जेल के 11 अंधे बनाए गए कैदियों ने गृह विभाग से न्याय की गुहार की। इसके बाद पुलिस महानिरीक्षक (जेल) ने सितंबर 1980 में भागलपुर की बांका सब जेल का निरीक्षण किया। वहां उन्‍होंने तीन अंधे किए गए कैदियों से भेंट की। गृह विभाग से जांच करवाने का अनुरोध किया। पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंधे किए लोगों को जवाहरलाल नेहरू चिकित्‍सा महाविद्यालय अस्‍पताल ले जाया गया तो डॉक्टरों ने इलाज नहीं किया। कहा कि सभी अपराधी है। भागलपुर जेल के लिए एक नेत्र विशेषज्ञ का अनुरोध किया, लेकिन उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया।

    उस समय केंद्रीय मंत्री वसंत साठे ने कहा था पुलिस का मनोबल गिराया जा रहा है। लेकिन इसके बाद आचार्य कृपलानी ने पूरे पुलिसया ऑपरेशन आंखफोड़वा कांड की निंदा की। संसद में ये मामला उठा तो कहा कि - इस घटना पर चर्चा या विचार करने की उचित जगह विधानसभा है। राज्‍य सरकार को इस पर चिंता करनी चाहिए।

    तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस पुलिस की इस कार्रवाई पर काफी दुख प्रकट किया। केंद्र ने बिहार सरकार से कहा कि वे पटना हाइकोर्ट से भागलपुर के जिला जज के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का अनुरोध करें। जिन्‍होंने नेत्रहीन कैदियों को कानूनी सहायता दिलवाने से पूरी तरह इनकार कर दिया था। केंद सरकार ने 33 अंधे कैदियों को 15 हजार रुपए की सहायता देने की घोषण की। तत्‍कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने अंधे कैदियों के स्‍वजनो से अपील की आंखफोड़वा कांड के बाद विदेश में भारत की बदनामी हो रही है, इसलिए वो इस मामले को तूल न दें। सरकार उन्‍हें न्‍याय देगी।

    बिहार सरकार ने 15 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। हालांकि तीन माह में ही सभी का निलंबन आदेश वापस भी ले लिया। कुछ वरिष्ठ अधिकारियों का सिर्फ तबादला किया गया। भागलपुर शहर के एसपी को रांची का एसपी बना दिया। भागलपुर जिले का एसपी को मुजफ्फरपुर का एसपी बना दिया गया।

    डीआईजी (सीआईडी) को बिहार मिलिट्री पुलिस का प्रमुख बना दिया गया। डीआईजी (भागलपुर) को डीआईजी (विजिलेंस) के पद पर भेज दिया गया।

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