Bihar Akhphodwa case : क्यों चर्चा में आ गया भागलपुर का आंखफोड़वा कांड, 42 साल पहले जो कुछ हुआ, पढ़ें वो दर्द
Bihar Akhphodwa case भागलपुर का आंखफोड़वा कांड एक दफा फिर चर्चा में आ गया है। देशभर में चर्चित इस कांड पर कई फिल्में भी बनाई जा चुकी है। प्रकाश झा की गंगाजल इस लिस्ट में टॉप की फिल्म रही। दर्दनाक सच्ची कहानी क्यों चर्चा में है पढ़ें...
ऑनलाइन डेस्क, भागलपुर। Bihar Akhphodwa case : आज हम आपको बिहार के भागलपुर की एक ऐसे मामले के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने 42 साल पहले देशभर में सुर्खियां बटोरी थी। एक दफा फिर वो कांड चर्चा में है। देश को झकझोर देने वाला भागलपुर का आंखफोड़वा कांड में 33 लोगों के आंखें सूआ से फोड़कर उसमें तेजाब डाल जला दी गई थीं। पुलिस की इस कार्रवाई को शुरू में तो समर्थन हुआ, लेकिन बाद में इसकी जमकर आलोचना हुई। इस कांड के बाद कई पुलिस अधिकारियों को यहां से स्थानांतरण कर दिया। हाल में अरूण शौरी के की आत्मकथा की पुस्तक प्रकाशित हुई। जिस पुस्तक में अखफोड़वा कांड का जिक्र है। THE COMMISSIONER FOR LOST CAUSES नामक इस पुस्तक में घटना का विस्तार से ब्योरा दिया है।
1980 में जब पहली बार भागलपुर में अंखा किए गए लोगों की तस्वीरें छपी, तो उसने पूरे जनमानस को झकझोर कर दिया। कुछ पुलिस वालों ने तुरंत न्याय करने के नाम पर कानून को अपने हाथों में ले लिया और 35 अंडर ट्रायल लोगों के आंखों को फोड़कर उसमें तेजाब डाल दिया। बाद में इसपर गंगाजल नामक एक फिल्म बनी। तत्कालीन भागलपुर जेल के अधीक्षक बच्चू लाल दास से जब पत्रकारों ने पूछा गया तो वे अंधा किए गए लोगों के बारे में जानकारी देने से हिचक रहे थे। लेकिन जब उन्हें पता चला कि यह पत्रकार हैं तो वे खुल गए और घटना की पूरी जानकारी देने लगे। बच्चू लाल दास बहुत ही बहादुर अधिकारी थे। हालांकि बाद में इस कांड को लेकर इन्हें काफी दिनों तक निलंबित करना पड़ा। क्योंकि इन्होंने घटना की सही जानकारी बाहर निकाली।
कैदियों को कैसे अंधा किया जाता था?
जेल में एक डॉक्टर कमरे में आते थे। बोरिया सीने वाले आठ-नौ ईंच की सूई जिसे शायद टकुआ कहा जाता था, उसके कई बार आरोपित के दोनों आंखों को छेद दिया जाता था। फिर आंख को जोर से दबा देता था। इससे पहले कुछ पुलिसकर्मी उस आदमी को कमरे में लिटा देता था। हाथ और पैर को कुछ पुलिसकर्मी दाब कर रखते थे। सूई से छेद करने के बाद आंख को दबा कर बाहर निकाल देता था। इसके बाद उसमें तेजाब डाला जाता था। जिसके बाद पीडि़त युवक काफी चिल्लाते थे। काफी दर्द होता है। बाद में उसका कोई उपचार भी नहीं कराया जाता। कुछ देर के बाद सभी अंधे हो जाते हैं।
कुछ दिनों बाद यही डाक्टर पुन: जेल आए। उस समय एक ही कमरे में सात लोग थे, जिसका आंख को फोड़ दिया गया था। उनसे डाक्टर से बात की। डाक्टर ने पूछा कि कोई ऐसा है, जिसे हल्का भी दिखाई पड़ रहा हो। बंदी को लगा शायद उसका उपचार किया जाएगा। तीन-चार बंदियों ने कहा कि थोड़ा-थोड़ा धुंधला जैसा दिखाई पड़ रहा है। बाद में ऐसे बंदियों को दूसरे कमरे में ले जाया गया। उसका आंख फिर से उसी तरह फोड़ कर तेजाब दे दिया गया, ताकि उसे फिर कभी दिखाई ना दे।
अंधे हुए लोगों में उमेश यादव की उम्र 66 साल है। भागलपुर के कुप्पाघाट में रहते हैं। कहा कि उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया, कोतवाली थाना में उनकी दोनों आंखों को फोड़कर तेज़ाब डाल दिया। इसके बाद से वे अंधे हैं। आंख फोड़ने के बाद से भागलपुर सेंट्रल जेल भेज में बंद कर दिया। वहां के तत्कालीन जेल सुपरिटेंडेंट बच्चू लाल दास ने सुप्रीम कोर्ट के वकील हिंगोरानी के पास उनका स्टेटमेंट भिजवाया। उन्हीं के प्रयास से 500 रुपये महीना पेंशन शुरू हुआ। फिर 750 रुपये। इस घटना के 18 लोग अभी भी जीवित हैं। 33 लोग अंखफोड़ा कांड से शिकार हुए थे। बरारी भागलपुर के रहने वाले भोला चौधरी ने कहा कि पुलिस ने पहले उनकी आंखों को टकवा से छेदा। तेज़ाब डाल दिया। उनके साथ नौ लोगों का भी आंख फोड़ दिया गया।
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