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    Bhagalpur Hansdiha Four Lane: भागलपुर-हंसडीहा फोरलेन नहीं, अब अफसरशाही की जंग सुर्खियों में

    Updated: Fri, 16 May 2025 02:38 PM (IST)

    भागलपुर-हंसडीहा फोरलेन परियोजना में मुआवजा राशि को लेकर कार्यपालक अभियंता और डीसीएलआर के बीच विवाद हो गया। बहस इतनी बढ़ गई कि डीएम को पुलिस बुलानी पड़ी। अभियंता को थाने में बैठाया गया जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इस घटना से परियोजना में देरी हो रही है क्योंकि भूमि अधिग्रहण का काम अभी भी अधूरा है।

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    भागलपुर-हंसडीहा फोरलेन नहीं, अब अफसरशाही की जंग सुर्खियों में (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    जागरण संवाददाता, भागलपुर। भागलपुर-हंसडीहा फोरलेन सड़क परियोजना को लेकर बुधवार को जिला समाहरणालय में ऐसा बवाल हुआ कि नौबत पुलिस थाने और अस्पताल तक पहुंच गई। भू-अर्जन मुआवजा राशि के बंटवारे और उपयोग को लेकर एनएच के कार्यपालक अभियंता वृजनंदन कुमार और सदर डीसीएलआर अनिस कुमार के बीच डीएम के समक्ष तीखी बहस हो गई। बात इतनी बढ़ी कि डीएम को पुलिस बुलानी पड़ी और अभियंता को थाने ले जाकर चार घंटे तक बैठाए रखा गया।

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    दरअसल, अलीगंज बायपास से खड़हरा मोड़ तक एनएच-133ई के फोरलेन निर्माण के लिए सितंबर 2023 में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (मोर्थ) ने टेंडर जारी किया था। लेकिन भू-अर्जन की प्रक्रिया अधूरी होने के कारण अब तक 22 बार टेंडर की तिथि बढ़ानी पड़ी है।

    105 करोड़ रुपये की मुआवजा राशि स्वीकृत

    मोर्थ की ओर से इस परियोजना के लिए कुल 105 करोड़ रुपये मुआवजा राशि स्वीकृत की गई है। इसमें से 76 करोड़ की राशि भागलपुर जिले के हिस्से में और शेष बांका जिले के लिए निर्धारित है। कार्यपालक अभियंता का कहना था कि मुआवजा राशि कम कर दी गई है और वास्तविक भू-अर्जन की प्रकृति की सही पहचान नहीं की गई है।

    मोर्थ के क्षेत्रीय कार्यालय से भी मुआवजा राशि की समीक्षा और पुनः मूल्यांकन का निर्देश मिला है। इसी बात को लेकर अभियंता डीसीएलआर से स्पष्टीकरण मांग रहे थे, लेकिन डीसीएलआर का रुख सख्त रहा और बात बहस में बदल गई।

    जिलाधिकारी ने दोनों को शांत कराने का किय प्रयास

    मौके पर जिलाधिकारी ने हस्तक्षेप करते हुए दोनों को शांत कराने का प्रयास किया, लेकिन अभियंता के तेवर नरम नहीं हुए। इससे नाराज डीएम ने शाम करीब 5:30 बजे जोगसर पुलिस को बुलवाया। गार्डों की मदद से अभियंता को कक्ष से बाहर लाया गया और पुलिस उन्हें पहले सदर अस्पताल मेडिकल जांच के लिए, फिर थाने ले गई।

    इस दौरान एनएच के सहायक अभियंता, कनीय अभियंता सहित अन्य कर्मी थाने पहुंचे और रिहाई के लिए प्रयास करने लगे। एनएच के मुख्य अभियंता ने खुद जिलाधिकारी से फोन पर बातचीत की। पुलिस अभियंता से लिखित स्पष्टीकरण मांग रही थी, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। आखिरकार उनके चालक ने एक आवेदन दिया, जिसके बाद उन्हें रात करीब 9:30 बजे छोड़ा गया।

    थाने से निकलकर जैसे ही वह घर पहुंचे, उन्हें सीने में तेज दर्द हुआ। परिजन और सहयोगी उन्हें तुरंत जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल लेकर पहुंचे। जहां ईसीजी सहित अन्य जांच के बाद डॉक्टरों ने प्राथमिक उपचार कर उन्हें छुट्टी दे दी। परिजन पूरी रात उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहे।

    सूत्रों ने दी अहम जानकारी

    सूत्रों के अनुसार, इस पूरे घटनाक्रम के पीछे एक और वजह यह भी रही कि राज्य के मुख्य सचिव और पथ निर्माण विभाग के अपर मुख्य सचिव द्वारा हर महीने परियोजनाओं की समीक्षा की जा रही है। बुधवार को भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए समीक्षा बैठक हुई थी। इसी क्रम में डीएम ने पूर्व में कार्यपालक अभियंता को कुछ टास्क सौंपा था, जिसे उन्होंने समय पर पूरा नहीं किया।

    बुधवार को जब डीएम ने स्थिति पूछी, तो अभियंता गोलमोल जवाब देने लगे, जिससे नाराज होकर यह कार्रवाई हुई। घटना के बाद कार्यपालक अभियंता ने बीमारी का हवाला देकर छुट्टी के लिए आवेदन दिया, लेकिन उसमें स्पष्ट तिथियां न होने के कारण उसे लौटा दिया गया और दोबारा आवेदन देने को कहा गया है।

    इस पूरे मामले पर डीसीएलआर अनिस कुमार और कार्यपालक अभियंता दोनों ने चुप्पी साध रखी है। वहीं, जिलाधिकारी ने अब प्रत्येक दिन सड़क परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा करने का निर्णय लिया है। यह घटना संकेत देती है कि कैसे अफसरशाही की टकराहटें जनता की बहुप्रतीक्षित परियोजनाओं को हाशिए पर धकेल सकती हैं।

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