Lok Sabha Elections: बिहार की वह लोकसभा सीट, जिसने एक मराठी को बनाया सांसद, दिल्ली की इंदिरा सरकार को दी चुनौती
Bihar Politics बांका लोकसभा सीट की कहानी के दो बड़े कथानक हैं। पहला मधु लिमये और दूसरा दिग्विजय सिंह। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाजवादी नेता मधु लिमये को बांका ने दो बार संसद भेजा था। मधु लिमये पहली बार 1973 के उपचुनाव में जीत दर्ज करके संसद पहुंचे। इसके बाद 1977 के आम चुनावों में भी एक बड़ी जीत दर्ज की थी।

राहुल कुमार, जागरण संवाददाता, बांका। बिहार की बांका संसदीय सीट वर्तमान में भले चर्चा का विषय नहीं है, लेकिन इसका अतीत अक्सर देश भर की सुर्खियां बनती रही है। समाजवादी आंदोलन के तीन राष्ट्रीय नेता मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडीस और राजनारायण इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं।
सादगी पसंद और प्रखर वक्ता मधु लिमये दो बार चुनाव जीतकर बांका से सांसद बने। तीसरी बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद देश के बड़े मजदूर नेता जॉर्ज फर्नांडीस दो बार इस सीट से चुनाव लड़े।
भले उन्हें दोनों बार हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी सभा, संघर्ष और प्रचार में लोगों से बढ़ी नजदीकी हर बुजूर्ग मतदाताओं को याद है।
इसके बाद बड़े समाजवादी नेता दिग्विजय सिंह ने 2009 में बेटिकट होने पर निर्दलीय सांसद का चुनाव जीतकर समाजवाद के रंग को और गाढ़ा कर दिया।
1973 जब मधु लिमये ने बांका में ढहाया कांग्रेस का किला
दरअसल, देश में छात्र आंदोलन और आपातकाल के बाद समाजवाद की जड़ें जमनीं शुरु हुई। इसके पहले हर जगह कांग्रेस का किला अभेद्य बना हुआ था। लेकिन आपातकाल से पूर्व ही समाजवादी दिग्गज मधु लिमये ने 1973 में बांका संसदीय सीट से चुनाव जीतकर कांग्रेस के किले को ढहा दिया था।
दरअसल, उस समय मुंबई के बाद मुंगेर सीट से हारने के बाद समाजवादी नेता मधु लिमये किसी सदन के नेता नहीं थे। 1971 में बांका के कांग्रेस सांसद बने शिवचंडिका प्रसाद का 1973 में असामयिक निधन हो गया। मधु लिमये खाली सीट के उपचुनाव में किस्मत आजमाने बांका पहुंच गए।
बांका की जनता ने महाराष्ट्र के इस राजनेता को हाथोंहाथ लिया। उस वक्त वे सोशलिस्ट पार्टी संसदीय बोर्ड के चेयरमेन थे। लिमये पार्टी के अध्यक्ष और महासचिव भी रह चुके थे। बाद में 1977 में बनीं जनता पार्टी के भी महासचिव रहे।
कांग्रेस की तोड़फोड़ की चाल के बावजूद दर्ज की जीत
पूर्व सांसद जनार्दन यादव बताते हैं कि मधु लिमये जैसे प्रखर वक्ता को देख कांग्रेस को पहले ही हार का डर हो गया था। इस कारण एक रणनीति के तहत 1973 के उपचुनाव में मधु लिमये को हराने के लिए उनके साथी राजनारायण को कांग्रेस के लोगों ने बांका से चुनाव लड़वा दिया।
जनार्दन यादव कहते हैं कि उस वक्त मधु लिमये और राजनारायण में कुछ मतभेद चल रहा था। इस चुनाव में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी चंद्रशेखर सिंह को बनाया। वही चंद्रशेखर सिंह बाद में बिहार के मुख्यमंत्री भी बने और बांका का सांसद रहकर केंद्र में तीन-तीन बार मंत्री का पद भी संभाला।
भाजपा नेता जनार्दन यादव कहते हैं कि कांग्रेस की चाल थी कि मधु लिमये और राजनारायण के आपस में लड़ने से समाजवादी वोट बंट जाएगा और कांग्रेस प्रत्याशी चंद्रशेखर सिंह आसानी से चुनाव जीत जाएंगे। लेकिन कांग्रेस बांका की जनता का मूड नहीं समझ सकी।
1977 की आंधी में मधु लिमये को मिले रिकॉर्ड 71 % वोट
देश के बड़े जुझारू नेता मधु लिमये को बिना किसी जाति-भेद और बाहरी समझे सबने खूब वोट बरसाया। वे चुनाव जीते। इसके बाद 1977 की आंधी में मधु लिमये रिकार्ड 71 प्रतिशत वोट हासिल कर दूसरी बार बांका के सांसद बने।
इस बार चंद्रशेखर सिंह को केवल 23 प्रतिशत वोट मिला। इसके बाद समाजवादी सूची में प्रताप सिंह, गिरिधारी यादव, दिग्विजय सिंह, जयप्रकाश नारायण यादव का भी नाम जुड़ गया।
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