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शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है या कामाख्या माता का मंदिर, आगरा की कोर्ट में दाखिल हुई नई याचिका

केस में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड प्रबंधन कमेटी दरगाह शेख सलीम चिश्ती प्रबंधन कमेटी जामा मस्जिद को प्रतिवादी बनाया गया है। न्यायालय ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी करने का आदेश किया है। अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि वर्तमान में विवादित संपत्ति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन एक संरक्षित स्मारक है। जिस पर प्रतिवादियों ने अतिक्रमण कर रखा है।

By Jagran News Edited By: Nitesh Srivastava Published: Thu, 09 May 2024 04:41 PM (IST)Updated: Thu, 09 May 2024 04:41 PM (IST)
Dargah of Sheikh Salim Chishti, आगरा की कोर्ट में दाखिल हुई नई याचिका

जागरण संवाददाता, आगरा। लघु वाद न्यायाधीश के न्यायालय में गुरुवार को फतेहपुर सीकरी स्थित शेख सलीम चिश्ती की दरगाह को कामाख्या माता का मंदिर और जामा मस्जिद को कामाख्या माता मंदिर का परिसर बताते हुए वाद दायर किया गया। अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने यह वाद दायर किया है। केस में माता कामाख्या, आस्थान माता कामाख्या, आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट, योगेश्वर श्रीकृष्ण सांस्कृतिक अनुसंधान संस्थान ट्रस्ट, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट और अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह वादी हैं।

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केस में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, प्रबंधन कमेटी दरगाह शेख सलीम चिश्ती, प्रबंधन कमेटी जामा मस्जिद को प्रतिवादी बनाया गया है। न्यायालय ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी करने का आदेश किया है।

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि वर्तमान में विवादित संपत्ति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन एक संरक्षित स्मारक है। जिस पर प्रतिवादियों ने अतिक्रमण कर रखा है। फतेहपुर सीकरी का मूल नाम सीकरी है, जिसे विजयपुर सीकरी भी कहते थे। यह सिकरवार क्षत्रियों का राज्य था और विवादित संपत्ति पर माता कामाख्या देवी का मूल गर्भ गृह व मंदिर परिसर था।

प्रचलित ऐतिहासिक कहानी के अनुसार फतेहपुर सीकरी को अकबर ने बसाया जो कि झूठ है। बाबर ने अपने बाबरनामा में सीकरी का उल्लेख किया था। बुलंद दरवाजे के नीचे दक्षिण- पश्चिम में एक अष्टभुजीय कुआं/बावली है और दक्षिण-पूर्वी हिस्से में एक गरीब घर है जिसके निर्माण का वर्णन बाबर ने किया है।

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि डीबी शर्मा जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीक्षण पुरातत्वविद रहे हैं, उन्होंने अपने कार्यकाल में फतेहपुर सीकरी के बीर छबीली टीले की खोदाई की। इसमें उन्हें सरस्वती और जैन मूर्तियां मिलीं। जिनका काल 1000 ईस्वी के लगभग था।

डीवी शर्मा ने अपनी पुस्तक 'आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी-न्यू डिस्कवरीज' में इसका विस्तार से वर्णन किया है। पुस्तक के पेज संख्या 86 पर वाद संपत्ति का निर्माण हिन्दू व जैन मंदिर के अवशेषों से बताया है। अंग्रेज अधिकारी ईबी हावेल ने वाद संपत्ति के खम्भों व छत को हिन्दू शिल्पकला बताया है और मस्जिद होने से इंकार किया है। अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि खानवा युद्ध के समय सीकरी के राजा राव धामदेव थे।

खानवा के युद्ध में जब राणा सांगा घायल हो गए तो राव धामदेव धर्म बचाने के लिए माता कामाख्या के प्राण प्रतिष्ठित विग्रह को ऊंट पर रखकर पूर्व दिशा की ओर ले गए और उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के सकराडीह में कामाख्या माता के मंदिर को बनाकर इस विग्रह को पुनः स्थापित किया।

इस तथ्य का उल्लेख राव धामदेव के राजकवि विद्याधर ने अपनी पुस्तक में किया है। अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि भारतीय कानून भी यही कहता है कि किसी भी मंदिर की प्रकृति को बदला नहीं जा सकता, यदि एक बार वो मंदिर के रूप में प्राण प्रतिष्ठित हो गया तो वह हमेशा मंदिर ही रहेगा।

केस को लघु वाद न्यायाधीश मृत्युंजय श्रीवास्तव के न्यायालय में पेश किया गया, जिस पर न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी करने का आदेश किया। सुनवाई की अगली तिथि आनलाइन ई कोर्ट पर देखने को कहा गया। सुनवाई के दौरान वादी अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश कुलश्रेष्ठ, अधिवक्ता अभिनव कुलश्रेष्ठ व अजय सिकरवार उपस्थित रहे।


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