हरसिमरत कौर की परीक्षा: गठबंधन टूटा; अपने नाराज, कैसे बचेगा बादल परिवार का गढ़?
Lok Sabha Election 2024 बठिंडा से तीन बार की सांसद हरसिमरत कौर बादल की सियासी राह में अपने ही खड़े हैं। चौथी बार चुनाव मैदान में उतरीं हरसिमरत के सामने गढ़ बचाने की चुनौती है। कांग्रेस ने उनके खिलाफ जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू को प्रत्याशी बनाया है। सिद्धू का शिअद से पुराना नाता रहा है। भाजपा ने परमपाल कौर को उतारा है।
जागरण, बठिंडा। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टूटे हुए गठबंधन और अपनों की नाराजगी के कारण बठिंडा लोकसभा सीट पर अपना और परिवार के गढ़ को बचाने के लिए हरसिमरत कौर बादल को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।
उनके लिए सुखद केवल इतना है कि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी और आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार गुरमीत सिंह खुड्डियां, जो इस समय कृषि मंत्री भी हैं, को भी आप विधायकों के प्रति लोगों की नाराजगी से दो चार होना पड़ रहा है।
कैसे गढ़ बचाएगा बादल परिवार?
कांग्रेस प्रत्याशी जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू जो शिअद से ही गए हैं, हरसिमरत कौर के वोट को काट रहे हैं। ऐसे में वह बादल परिवार का गढ़ बठिंडा कैसे बचा पाएंगी, एक बड़ा सवाल है।
इनको हरा चुकीं हरसिमरत कौर
वर्ष 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में क्रमश: कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रणइंदर सिंह, फिर अपने देवर मनप्रीत बादल और कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग को हार का स्वाद चखा चुकीं हरसिमरत कौर चौथी जीत के लिए उस समय जद्दोजहद कर रही हैं, जब पांच बार के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल उनके लिए प्रचार के लिए नहीं हैं।
सुखबीर का पूरे प्रदेश में फोकस
पति सुखबीर सिंह बादल पर अन्य 12 सीटों पर प्रचार की जिम्मेदारी है, जो कुछ दिन पहले ही अपनी पंजाब बचाओ यात्रा को खत्म करके हटे हैं। ऐसे में वह भी उतना समय नहीं दे पा रहे हैं, जितनी हरसिमरत को इस समय जरूरत है। बीच-बीच में बिक्रम मजीठिया उनके लिए प्रचार करते हैं, लेकिन मुख्य तौर पर वह अमृतसर लोकसभा क्षेत्र ही संभाल रहे हैं।
क्या वापस मिलेगा खोया वोटबैंक?
हरसिमरत के लिए प्रकाश सिंह बादल सबसे अधिक प्रचार करते थे। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने 22 कार्यक्रम किए थे। हरसिमरत कौर को उम्मीद है कि पार्टी का खोया हुआ वोट बैंक इस चुनाव में वापस आएगा। पार्टी के पास हर गांव में बूथ स्तर तक काडर है, जबकि भाजपा के पास ऐसा नहीं है। लिहाजा भाजपा प्रत्याशी परमपाल कौर को जितने भी वोट मिलेंगे, वे शिअद के खाते के ही होंगे। कारण, अब तक दोनों पार्टियां मिलकर लड़ती रही हैं।
प्रचार से मनप्रीत की दूरी
शिअद प्रमुख तौर पर कोशिश यही कर रहा है कि उसका अपना वोट बैंक ही वापस आ जाए। भाजपा के जिला देहात अध्यक्ष रविप्रीत सिह सिद्धू तो शिअद के साथ आ ही गए हैं। साथ ही, मनप्रीत बादल जो कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में चले गए थे, के अब तक एक बार भी प्रचार में न आने का खामियाजा निश्चित तौर भाजपा प्रत्याशी को होगा। मनप्रीत समर्थक बठिंडा के तीन पार्षद भी शिअद में लौट गए हैं।
शांत हैं मलूका
हरसिमरत बादल को जहां भाजपा का साथ न मिलने से नुकसान हो रहा है, वहीं कई अपने भी साथ नहीं दे रहे हैं। इनमें सबसे अहम पार्टी के वरिष्ठ नेता सिकंदर सिंह मलूका हैं, जो अपनी बहू परमपाल कौर को भाजपा का टिकट मिलने से पहले हरसिमरत के लिए प्रचार कर रहे थे, लेकिन अब शांत हैं।
नाराज हैं कोटफत्ता
बठिंडा देहात के नेता व पूर्व विधायक दर्शन सिंह कोटफत्ता भी पार्टी से नाराज चल रहे हैं। पार्टी ने उन्हें उनके बठिंडा देहात हलके से कभी मलोट तो कभी भुच्चो मंडी भेजा। इस बार उन्हें फरीदकोट से टिकट देने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन प्रत्याशी राजविंदर सिंह को बना दिया। इससे कोटफत्ता काफी नाराज हैं और अभी तक हरसिमरत को उनका साथ नहीं मिला है।
सरदूलगढ़ में कैसी है स्थिति?
सरदूलगढ़ में भी हरसिमरत की स्थिति काफी कमजोर है। वहां आप प्रत्याशी खुड्डियां को काफी समर्थन मिल रहा है, जो संभवत: स्थानीय विधायक गुरप्रीत सिंह बनांवाली के कारण है। इस स्थिति के बीच हरसिमरत कौर के लिए एक सुखद बात यह है कि इस बार उन्हें न तो किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है और न ही पंथक संगठनों का। पिछली बार उन्हें पंथक संगठनों के विरोध का सामना करना पड़ा था। इस बार भाजपा प्रत्याशियों को किसानों का विरोध झेलना पड़ रहा है।
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