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    जानें क्‍यों खाड़ी देशों में विदेशी मजदूरों को बाहर करने की हो रही मांग, लाखों भारतीय भी करते हैं काम

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Tue, 12 May 2020 07:39 AM (IST)

    खाड़ी देशों में बढ़ते कोरोना वायरस के मामलों के लिए वहां काम कर रहे विदेशी मजदूरों को जिम्‍मेदार ठहराया जा रहा है। अब इन्‍हें यहां से बाहर करने की भी ...और पढ़ें

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    जानें क्‍यों खाड़ी देशों में विदेशी मजदूरों को बाहर करने की हो रही मांग, लाखों भारतीय भी करते हैं काम

    बेरूत (न्‍यूयार्क टाइम्‍स)। कुवैती एक्‍ट्रेस हयात अल फहाद बीते कुछ दिनों से वहां पर कोरोना वायरस को लेकर हो रही चर्चा के केंद्र में हैं। इसकी वजह ये है कि उन्‍होंने अप्रेल में एक टीवी चैनल पर देश में बढ़ते कोरोना वायरस के मामलों को लेकर उन विदेशी मजदूरों को जिम्‍मेदार ठहराया था जो अपनी आजीविका कमाने के लिए वहां पर विभिन्‍न काम करते हैं। उनका कहना था कि इन लोगों को यहां से बाहर भगा देना चाहिए क्‍योंकि इनकी वजह से कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

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    आपको बता दें कि मिडिल ईस्‍ट में या खाड़ी के अमीर देशों में भारत समेत कई देशों के नागरिक कंस्‍ट्रक्‍शन, शॉपिंग मॉल्‍स, दुकानों, टैक्‍सी चलाने, साफ सफाई, होम सर्विस समेत कई दूसरी सेवाओं में अपनी भूमिका निभाते आए हैं। यहां पर इन देशों के लोग इन कामों में शामिल नहीं होते हैं जिसकी भरपाई विदेशी करते हैं। इन विदेशियों में भारत समेत गरीब अफ्रीकी देशों के अलावा खाड़ी के कुछ एशिया के दूसरे गरीब देशों के भी नागरिक शामिल हैं।

    बीते दिनों कुवैती चैनल पर हुए एक टॉक शो में शामिल पैनेलिस्‍ट में भी इसी बात को दोहराया गया कि विदेशी मजदूरों की वजह से देश में कोरोना वायरस के मरीजों में इजाफा हो रहा है। ये इसमें शामिल एक सदस्‍य अहमद बाकर का कहना था कि जब भी हम शॉपिंग मॉल्‍स में जाते हैं तो वहां की दुकानों में हमें कोई कुवैती दिखाई ही नहीं देता है। ये सभी विदेशयों के हाथों में हैं। इस चर्चा के दौरान एक शख्‍स पर तीन बार कैमरा गया जो चर्चा में शामिल लोगों को चाय पेश कर रहा था और जो दक्षिण एशिया से ताल्‍लुक रखता था। दरअसल, वर्तमान में विदेशी इन देशों के लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने का सबसे बड़ा जरिया बन चुके हैं। यहां पर डॉक्‍टर, डिलीवरीमेन, हाउसमेड, शैफ, होटल मालिक, हेयरड्रेसर के तौर पर यही लोग यहां के लोगों की जरूरतों को पूरा करते आए हैं।

    अब कोरोना को लेकर जो बहस चली है उसमें एक सवाल ये भी उठ रहा है कि आखिर कैसे देश के श्रम कानून में बदलाव कर विदेशियों की जगह पर यहां के लोगों को उन कामों को करने के लिए तैयार किया जाए जिन्‍हें उन्‍होंने किया ही नहीं है और जिनको करने के लिए वो तैयार भी नहीं हैं। वाशिंगटन स्थित अरब गल्‍फ स्‍टेट इंस्टिट्यूट के फैलो

    इमान अलहुसैन की राय में खाड़ी के देशों की अर्थव्‍यवस्‍था जिन दो चीजों पर टिकी हुई है उनमें एक तेल है तो दूसरा यहां काम करने वाले विदेशी मजदूर हैं। वर्तमान में ये दोनों ही कोरोना वायरस की चपेट में आकर नुकसान उठाने को मजबूर हैं। उनके मुताबिक वर्तमान में कोरोनोवायरस ने इन सभी मुद्दों को काफी पीछे कर दिया है जो लंबे समय समय से बने रहे हैं।

    आपको बता दें कि वर्ष 2017 में विदेशी मजदूरी ने करीब 124 बिलियन डॉलर की राशि अपने देशों में भेजी थी। कोरोना संकट के दौरान हजारों लोगों ने इन देशों में अपनी नौकरी गंवाई है। लॉकडाउन की वजह से इन लोगों की आर्थिक समस्‍या काफी बढ़ी है। इस बीच ये भी एक सच्‍चाई है कि इस महामारी की चपेट में आने वालों में इनकी संख्‍या काफी अधिक है। इसकी वजह एक ये भी है कि ये विदेशी मजदूर जिन जगहों पर रहते हैं कि वो जगह काफी घिचपिच वाली या भीड़भाड़ वाली होती हैं।

    इनमें से कई अपनी जॉब गंवा कर अपने देशों में वापस भी लौट चुके हैं। दुबई में टैक्‍सी चलाने वाले मोहम्‍मद का कहना है कि कोरोना की वजह से जो संकट सामने आया है उसकी वजह से खाने-पीने की दिक्‍कत हो गई है। न उनके पास खाने को कुछ है और न ही पैसे हैं। ऐसा यदि कुछ और दिन चलता रहा तो उन्‍हें वापस अपने घर ढाका लौटना पड़ेगा। वर्ल्‍ड बैंक के मुताबिक यहां से भेजी गई राशि में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है ये 714 बिलियन से गिरकर 572 बिलियन डॉलर तक आ गई है।

    वाशिंगटन स्थित अमेरिकन एंटरप्राइजेज के गल्‍फ स्‍पेशलिस्‍ट करेन यंग का कहना है कि खाड़ी देश फिलहाल मजदूरों की आधी क्षमता के साथ काम कर रहे हैं। उनका ये भी मानना है कि विदेशी मजदूरों को लेकर जो चर्चा इन दिनों इन देशों में आम हो रही है उसमें ये भी सोचना होगा कि आखिर इन मजदूरों या अपने देशवासियों को ये देश कौन कौन सी सहुलियतें देते हैं। यहां पर काम करने वालों के लिए बेहतर सुविधा देने की कोई गारंटी नहीं है।

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