'आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान पर अब भरोसा करना मुश्किल'
अमेरिका को लगने लगा है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान गंभीर नहीं है। पाकिस्तान का कहीं न कहीं तालिबान के प्रति रवैया नरम है। ...और पढ़ें

अशोक बेहुरिया
अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने विगत 23-25 अक्टूबर के दौरान तीन दक्षिण एशियाई देशों का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से बग्राम एयरबेस पर गोपनीय रूप से दो घंटे की बातचीत की। टिलरसन के साथ यात्रा कर रहे लोगों को भी इसकी जानकारी नहीं थी और उन्हें अमेरिकी विदेश मंत्री का अचनाक अफगानिस्तान जाने के बारे में कुछ घंटे पहले सूचना मिली। बग्राम, काबुल से 90 मिनट की दूरी पर है। इस दौरान टिलरसन अमेरिकी एयरबेस से बाहर नहीं आए। इस साल सितंबर में जब अमेरिकी रक्षा मंत्री मैटिस अफगानिस्तान दौर पर थे, उस दरमियान तालिबान ने उन्हें निशाना बनाते हुए 21 रॉकेट दागे थे। कड़ी सुरक्षा की स्थिति यह थी कि जहां टिलरसन का विशेष विमान उतरा वहां भी बड़े पैमाने पर सुरक्षाकर्मी तैनात थे।
अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि अफगानिस्तान में स्थिति कितनी संवेदनशील है, खासकर अमेरिकी राजनेताओं के लिए इसे बिल्कुल ही सुरक्षित नहीं कहा जा सकता है। इस साल अगस्त में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी नई अफगान नीति की घोषणा की थी और दोहरे रवैया को लेकर पाकिस्तान को कड़ी फटकार लगाई थी। तभी से अफगानिस्तान में तालिबान की गतिविधियां बढ़ी हुई हैं। संभवत: पाकिस्तान यह संकेत देने की कोशिश कर रहा है कि अफगानिस्तान में शांति बहाली अपरिहार्य हो गई है। टिलरसन के अफगानिस्तान दौरे को इतना गुप्त रखा जाना बताता है कि अमेरिका को पाकिस्तान के खुफिया विभाग पर बिल्कुल भरोसा नहीं है।
अमेरिका अब इस बात को लेकर पुख्ता हो चुका है कि पाकिस्तान उसका सच्चा दोस्त होने का नाटक भर कर रहा है और हकीकत यह है कि वह तालिबान का समर्थक है। अफगानिस्तान दौरे के बाद टिलरसन ने पाकिस्तान से कहा कि आतंकवाद को लेकर उसे स्पष्ट नजरिया अपनाना चाहिए क्योंकि जिन आतंकी संगठनों को उसने पनाह दी है, आखिरकार भविष्य में उन्हीं से उनका सामना होना है। अमेरिकी विदेशी मंत्री का कहना था कि आतंकवादी संगठन पाकिस्तान को सुरक्षित पनाहगाह समझते हैं, लेकिन उन्होंने साफ किया कि अमेरिका अफगानिस्तान में शांति की बहाली सुनिश्चत करना चाहता है। बमुश्किल पांच घंटे अफगानिस्तान में गुजारने के बाद टिलरसन बग्राम से इराक के लिए रवाना हो गए। पहले की तरह अमेरिकी विदेश मंत्री ने इस बार सैन्य प्रमुख से मिलना मुनासिब नहीं समझा। वह जनरल बाजवा से मिले जरूर, लेकिन साथ में पाकिस्तान के तमाम राजनेता भी थे। विभिन्न रिपोर्टो के मुताबिक टिलरसन ने इस बार सपाट सा रुख अपनाया। उन्होंने पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल से साथ-साफ शब्दों में बात की और अमेरिकी अपेक्षाओं से उन्हें अवगत कराया।
अमेरिकी विदेश मंत्री ने तालिबान आतंकवादियों की एक सूची पाक को सौंपी और उनके खिलाफ कार्रवाई को कहा। वहीं इसके उलट पाकिस्तान ने अमेरिका से आग्रह किया कि वह अफगानिस्तान में भारत को विस्तार देने से बचे क्योंकि वह भारत को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है। साथ ही पाकिस्तान ने अमेरिका को उन आतंकवादियों की सूची सौंपी और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की, जो अफगान की जमीन से उसे निशाना बनाते हैं। मगर अमेरिका पर पाक की इस अपील का कोई असर नहीं हुआ और टिलरसन भारत यात्र के दौरान अफगानिस्तान में भारत की भूमिका के विस्तार की वकालत करते हुए नजर आए। यानी भारत, अमेरिका और अफगान के बीच तालमेल बनता हुआ दिख रहा है। यदि भारत अमेरिका की इच्छा के मुताबिक अफगान में अपनी भूमिका का विस्तार करता है तो यह नई शुरुआत होगी।
(लेखक दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में सीनियर फेलो हैं)

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