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    सुरक्षा परिषद के लिए खतरे की घंटी बना आइसीजे चुनाव

    By Manish NegiEdited By:
    Updated: Mon, 20 Nov 2017 10:23 PM (IST)

    यह चुनाव ब्रिटेन के अलावा सुरक्षा परिषद में शामिल अन्य चार महाशक्तियों (रूस, अमेरिका, चीन व फांस) के लिए भी खतरे की घंटी से कम नहीं है। ...और पढ़ें

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    सुरक्षा परिषद के लिए खतरे की घंटी बना आइसीजे चुनाव

    वाशिंगटन, प्रेट्र। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आइसीजे) की आखिरी सीट के लिए हो रहा चुनाव न केवल ब्रिटेन बल्कि सुरक्षा परिषद में शामिल विश्व की महाशक्तियों के लिए खतरे की घंटी बन चुका है। भारत जिस तरह से ब्रिटेन को आम सभा में पीछे धकेलने में कामयाब हुआ है, उसे देखते हुए माना जा रहा है कि ब्रिटेन के लिए आगे की राह मुश्किल होने जा रही है। वह ज्वाइंट कांफ्रेंस मैकेनिज्म का पैंतरा चलकर भारत की राह को रोकने व अपनी साख बचाने की कोशिश कर सकता है।

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    यह चुनाव ब्रिटेन के अलावा सुरक्षा परिषद में शामिल अन्य चार महाशक्तियों (रूस, अमेरिका, चीन व फांस) के लिए भी खतरे की घंटी से कम नहीं है। उन्हें डर है कि इससे कहीं कोई ऐसी परिपाटी विकसित न हो जाए जो भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो।

    आइसीजे में आखिरी सीट के लिए यह सारी जद्दोजहद की जा रही है। भारत ने दलबीर भंडारी पर अपना दांव खेला है तो ब्रिटेन क्रिस्टोफर ग्रीनवुड को इंटरनेशनल कोर्ट में भेजने को आमादा है। चुनाव आम सभा के साथ सुरक्षा परिषद में वोटिंग कराकर किया जाता है। अब तक 11 दौर का मतदान हो चुका है। आम सभा में भंडारी दो तिहाई से आगे हैं जबकि सुरक्षा परिषद में चार वोटों से पीछे चल रहे हैं। आज आखिरी दौर का मतदान किया जाना है।

    चुनाव पर्यवेक्षक मान रहे हैं कि 12 वें दौर की वोटिंग में अगर पहले राउंड में ब्रिटेन पिछड़ा तो वह ज्वाइंट कांफ्रेंस मैकेनिज्म का सहारा ले सकता है। इसके तहत आम सभा व सुरक्षा परिषद की साझा बैठक बुलाकर फैसला कराया जा सकता है। इसमें वोटिंग की जगह खुला समर्थन होता है। हालांकि इस तरह की विकल्प आखिरी बाद 1921 में अमल में लाया गया था। यह स्थिति भारत के लिए मुफीद भी है तो खतरनाक भी। उसे पता चल जाएगा कि कौन दोस्त है और कौन केवल स्वार्थ के लिए उसके साथ होने का नाटक करता है।

    सूत्रों का कहना है कि चारों महाशक्तियां ब्रिटेन के साथ हैं। उनसे मशविरा करने के बाद ही ब्रिटेन ने संयुक्त अधिवेशन का विकल्प तैयार कराया है। भंडारी जीतते हैं तो यह सारे विश्व के लिए अनुकरणीय होगा, क्योंकि महाशक्ति को हराना हंसी खेल नहीं। इस बात को रूस, अमेरिका, चीन व फांस भी समझ रहे हैं। उनका मानना है कि आज ब्रिटेन जहां फंस रहा है कल वहां वह खुद भी हो सकते हैं। यही वजह है कि सारे के सारे ब्रिटेन के साथ मजबूती से खड़े हैं।

    ब्रिटेन को पिछड़ता देख वह साझा अधिवेशन के लिए हरी झंडी दे सकते हैं। मामले से जुड़े लोगों का मानना है कि ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है इसका पता परिणाम आने के बाद लग सकेगा, लेकिन अभी तक जो रुख है उससे साफ है कि आम सभा का फैसला पांचों महाशक्तियों के गले की नीचे नहीं उतर रहा और ब्रिटेन को जिताने के लिए वह किसी भी मर्यादा को पार कर सकते हैं?

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