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    ऐशोआराम छोड़ वीरान गांव को आबाद कर रहा ये मैकेनिकल इंजीनियर

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Fri, 28 Apr 2017 06:00 AM (IST)

    पिथौरागढ़ के एक मैकेनिकल इंजीनियर लोगों के बीच उम्मीद बनकर उभरे हैं। वह पलायन से कराह रहे गांव में लोगों को और बंजर खेतों में हरियाली लौटाने वाला नाम बन चुके हैं।

    ऐशोआराम छोड़ वीरान गांव को आबाद कर रहा ये मैकेनिकल इंजीनियर

    पिथौरागढ़, [ओपी अवस्थी]: पहाड़ पलायन का दर्द झेल रहा है। गांव-कस्बों के युवा छोटे-मोटे रोजगार के महानगरों का रुख कर रहे हैं। रोजगार की योजनायें बनती हैं, लेकिन सिर्फ कागजों में या फिर अधिकारी-कर्मचारियों की मर्जी से। 

    ऐसे हालात में पिथौरागढ़ जिले के मुंबई में कार्यरत मैकेनिकल इंजीनियर जयप्रकाश जोशी लोगों के बीच उम्मीद बनकर उभरे हैं। आज वह पलायन से कराह रहे गांव में लोगों को और बंजर खेतों में हरियाली लौटाने वाला एक जाना-पहचाना नाम बन चुके हैं। उनके प्रयासों से गांव छोड़कर गए 10-12 परिवार लौट आये हैं और खेती एवं दुग्धोत्पादन से स्वरोजगारी बन रहे हैं।

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    कनालीछीना ब्लाक के मलान गांव निवासी जयप्रकाश ने मुंबई में ऑयल उत्पादन के क्षेत्र में नौकरी करने के बाद आज खुद का कारोबार खड़ा कर लिया है। करीब ढाई साल पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रवासी व्यवसायियों से अपने मूल की भी सुध लेने की अपील की। जयप्रकाश पर इसका असर हुआ और उनके मन में अपने वीरान हो चुके गांव को फिर बसाने का जज्बा जोर मारने लगा। इसके बाद मुंबई में व्यवसाय छोड़कर वे परिवार सहित सीमांत में स्थित अपने गांव मलान लौट आए। 

    गांव की शत-प्रतिशत बंजर पड़ी भूमि को फिर हरा-भरा करने के संकल्प ने उनसे मुंबई का ऐशोआराम भी छुड़वा दिया। दो साल से वे हाड़तोड़ मेहनत कर रहे हैं। नतीजा जिन खेतों में वनस्पति के नाम पर सिर्फ खरपतवार व घास दिखती थी, वहां बासमती लहलहाने लगी है। इसके साथ ही जयप्रकाश ने जैविक खेती और जैविक दूध की अवधारणा को लेकर दुग्ध उत्पादन का कार्य भी शुरू किया किया। 

    उनकी मेहनत और प्रेरणा का ही असर है कि जिस गांव में एक-दो दुधारू जानवर थे, आज वहां से प्रतिदिन 70 से सौ लीटर दूध बिक्री के लिये पिथौरागढ़ और डीडीहाट पहुंच रहा है। क्षेत्र के 15 युवा तो सीधे दुग्ध व्यवसाय से ही जुड़ गये हैं। जबकि दर्जनों ग्रामीणों को परोक्ष रू प से रोजगार मिला हुआ है। गांव में आज आम, कटहल, लीची, अमरूद, माल्टा, संतरा, नींबू के बाग तैयार हो चुके हैं। 

    गांव में रहने वाले करीब 25 परिवार भी इसी राह पर आगे बढ़ रहे हैं। जयप्रकाश यहीं नहीं रुके। वह गोबर गैस प्लांट से लेकर जैविक खाद के लिए भी काम कर रहे हैं। यह सब उन्होंने बिना किसी सरकारी इमदाद के किया है। यही वजह है कि उनसे जानकारी व प्रेरणा लेकर गांव के युवा खेती और दुग्ध उत्पादन से आर्थिकी संवार रहे हैं।

    कॉन्वेट के बच्चे पढ़ रहे सरकारी स्कूल में

    मुंबई में कॉन्वेंट में पढ़ने वाले जयप्रकाश के दोनों बच्चे सरकारी स्कूल प्रावि मलान में पढ़ रहे हैं। जयप्रकाश कहते हैं सरकारी योजनाओं का उन्हें कोई लाभ नहीं मिला। एक-दो बार बैंकों से मदद मांगी भी तो वहां उन्हें भ्रमित कर दिया गया। लेकिन, अब उनके कदम थमने वाले नहीं हैं।

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