धारचूला में सूखने लगे पन्यार
जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : दूरगामी सोच नहीं रखने का परिणाम अब सामने आने लगे हैं। जंगलों के अंधाधुं
जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : दूरगामी सोच नहीं रखने का परिणाम अब सामने आने लगे हैं। जंगलों के अंधाधुंध कटान से घराट चलने वाले पानी के स्रोत सिमट ही नहीं अपितु सूख चुके हैं। यह भी समुद्रतल से लगभग छह हजार से अधिक की ऊंचाई वाले स्थानों पर हो रहा है। एक-एक कर स्रोत सूखते जा रहे हैं और इसके बाद भी इनके संरक्षण के कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं।
सीमांत की धारचूला तहसील का पय्यापौड़ी क्षेत्र जहां से कई गधेरे निकलते हैं। यही गधेरे आपस में मिल कर बड़े नाले बनते हैं। इस क्षेत्र में धारे सूखने लगे हैं। पय्यपौड़ी में एक पीपल के पेड़ के पास दो स्रोत थे। जिसे ठुल और नान पन्यार कहते थे। पन्यार का मतलब पानी का स्रोत होता है। इन दो स्रोतों से इतना पानी आता था कि जिससे चार घराट चलते थे। इस क्षेत्र में वृक्षों की बहुतायत थी। वृक्ष कटते गए और स्रोतों का जल घटता रहा। आज नान (छोटा) पन्यार सूख चुका है और ठुल (बड़ा) पन्यार सूखने के कगार पर पहुंच चुका है। घराट तो दूर रहे अब इस स्रोत से ग्रामीणों की प्यास तक नहीं बुझ रही है।
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धारों, नौलों का महत्व किसी ने नहीं समझा। आज दुनिया में पानी का संकट गहराता जा रहा है। तब जाकर पानी को लेकर चर्चा हो रही है। परंतु परंपरागत स्रोतों को बचाने के कोई प्रयास नहीं हुए। तथाकथित विकास के नाम पर वृक्षों पर कुल्हाड़ी चली और स्रोतों का पानी हर लिया गया। इसके लिए अब गंभीर प्रयास करने होंगे।
गोपाल सिंह, छात्र
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आने वाले पीढ़ी के लिए हमने कुछ नहीं रखा है। पुरानी पीढि़यां हमें लबालब भरे स्रोत देकर गई थी। हमने उन्हें बचाने के स्थान पर नष्ट किया है। इसके जिम्मेदार हम हैं। पानी को लेकर कभी गंभीर नहीं रहे। नलों में पानी नहीं आने पर आवाज उठती है। स्रोत सूख जाते हैं तो इसकी बात तक नहीं हो रही है।
मनोज रैखोला, दुकानदार
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हमारी नजरों के आगे धारे और नौले सूख गए। हम तमाशबीन बन कर देखते रहे। इनके सूखने से पानी वाले क्षेत्रों में पानी का संकट होने लगा है। इससे बुरी स्थिति और कुछ नहीं हो सकती है। अब भी नहीं चेते तो परिणाम भी हम ही भुगतेंगे।
किशन सिंह , बीडीसी सदस्य
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पय्यापौड़ी क्षेत्र पानी को लेकर संपन्न था। यहां के नौलों, धारों से गधेरे निकलते हैं। इन गधेरों से मानव सहित खेतों की प्यास बुझती है। नौलों, धारों के घटने से गधेरों का पानी घट रहा है। स्थिति विकट होने वाली है। युवा पीढ़ी को अब आगे आकर कुछ करना पड़ेगा। सरकार तो केवल बात करती है काम कुछ नहीं होता है।
दलीप सिंह, बुजुर्ग
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