Back Image

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    सुस्ती पड़ सकती है भारी

    By Edited By:
    Updated: Sat, 19 Apr 2014 06:14 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, पौड़ी: पहाड़ों में बीते वर्ष दैवीय आपदा के दौरान भीषण तबाही का कारण बनी अलकनंदा नदी का खौफनाक मंजर किसी से छिपा नहीं है। जन धन की हानि तो हुई ही, नदी के रौद्र रूप ने भी अपने मूल स्थान को छोड़कर आबादी वाले क्षेत्रों की ओर रुख कर भविष्य की चिंता बढ़ा दी, लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी डैमेज कंट्रोल पर सरकार की सुस्ती पर भूगर्भ शास्त्री व पर्यावरणविद् चिंतित हैं। उनके मुताबिक दो माह बाद फिर बरसाती सीजन शुरूहोगा ऐसे में यदि जल्दी ही डैजेम कंट्रोल में तेजी नहीं लाई गई तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    गत वर्ष जून माह में दैवीय आपदा से पहाड़ों में अलकनंदा नदी के साथ ही उसकी सहायक नदियों ने जो कहर बरपाया, उसके निशान सालों तक मिट नही पाएंगे। कई लोगों की अकाल ही मौत तो हुई तो गांवों के गांव भी उजड़ गए। नदी का विकराल रूप ऐसा कि कहीं बाढ़ ने तबाही मचाई तो कहीं नदियों ने अपना मूल स्थान छोड़कर आबादी वाले क्षेत्रों के नीचे कटान शुरू कर दिया है। तब से इन नदियों के मूल स्थान में तीन से चार फीट तक गाद, रेता-बजरी भरा होने के कारण नदियां अभी भी आबादी वाले क्षेत्रों के नीचे से गुजर कर भविष्य के खतरे का संकेत दे रही हैं। हालांकि कई स्थानों में सरकारी अमला डैमेज कंट्रोल में जुटा है, लेकिन इसकी सुस्त चाल से पर्यावरणविद् और भूगर्भशास्त्री चिंतित हैं।

    इन स्थानों में डायवर्ट हुई थी नदी:

    श्रीनगर, कर्णप्रयाग, पांडुकेश्वर, गोविंदघाट, नारायणबगड़, थराली, अलकापुरी के समीप, अगस्त्यमुनि।

    'नदी को उसके मूल स्थान में लाना बहुत जरूरी है विशेषकर प्रभावित क्षेत्रों में। इसके लिए सरकार को जल्दी ही प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा दीवार के साथ ही नदी के मूल में जमा रेता-बजरी को हटाना चाहिए।

    डॉ. डीसी नैनवाल, भूगर्भशास्त्री।

    'गत वर्ष की आपदा के बाद से अपना मूल स्थान छोड़ चुकी नदियों को प्रभावित क्षेत्रों में उनसके मूल स्थान में डावयर्ट करना होगा, नहीं तो यही लापरवाही फिर बड़ा खतरा बन सकती है।'

    चंडी प्रसाद भट्ट, पर्यावरणविद्।