Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    उत्तराखंडः हाईकोर्ट ने पूछा, राष्ट्रपति शासन की क्या थी मजबूरी, आज भी होगी सुनवाई

    By kishor joshiEdited By:
    Updated: Tue, 19 Apr 2016 04:00 AM (IST)

    उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि बहुमत साबित करने का मौका देने के बावजूद कौन सी मजबूरी थी, जिसकी वजह से राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा।

    नैनीताल। उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि बहुमत साबित करने का मौका देने के बावजूद कौन सी मजबूरी थी, जिसकी वजह से राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। हाईकोर्ट ने यह भी सवाल किया कि विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की मांग करने के लिए विधायक स्पीकर को प्रत्यावेदन की बजाय राज्यपाल से मिलने क्यों गए। यही नहीं, यह भी पूछा कि सरकार के पांचवें साल में यह परिस्थिति कैसे पैदा हो गई।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें


    प्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत की राष्ट्रपति शासन लागू करने व लेखानुदान अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुबह 11 बजे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की खंडपीठ में फिर से सुनवाई शुरू हुई। पहले भी इन याचिकाओं पर दोनों पक्ष अदालत में जिरह कर चुके हैं। आज केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलीलें देकर राष्ट्रपति शासन और लेखानुदान अध्यादेश के फैसले को वाजिब ठहराने का प्रयास किया। कांग्रेस के बागी विधायकों की सदस्यता मामले में उन्होंने स्पीकर के फैसले पर सवाल उठाए। करीब साढ़े चार घंटे की बहस कराने के बाद अदालत ने सुनवाई स्थगित कर दी। आगे की सुनवाई अब कल होगी।

    ये भी पढ़ेंः सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ याचिका खारिज की

    अटॉर्नी जनरल ने कर्नाटक के एसआर बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले का हवाला देते हुए दलील दी कि उत्तराखंड में संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो गई थी। 18 मार्च को राज्य विधान सभा के बजट सत्र में विनियोग विधेयक पेश होने के दिन सदन में 68 विधायक थे, जिसमें से 35 विधायकों ने एक स्वर में विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की मांग की, जिसे स्पीकर ने ठुकरा दिया। संवैधानिक लिहाज से विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की मांग स्वीकारना स्पीकर की बाध्यता है, लेकिन स्पीकर ने सरकार को बचाने के लिए नियम विरुद्ध तरीके से विनियोग विधेयक पारित घोषित कर दिया।


    केंद्र का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल ने अदालत में तर्क दिया कि स्पीकर ने विनियोग विधेयक पारित होने की प्रक्रिया नहीं अपनाई। राज्यपाल के निर्देश के बावजूद मत विभाजन नहीं कराया और बहुमत की अनदेखी की। उन्होंने मनी बिल पर स्पीकर के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए दलील दी कि स्पीकर से न्याय की उम्मीद नहीं मिलने की आशंका के चलते ही विपक्ष के नेता अजय भट्ट की अगुवाई में विधायक राज्यपाल से मिले।
    रोहतगी ने अदालत में तर्क दिया कि राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को जल्द से जल्द अथवा 28 मार्च तक बहुमत साबित करने का निर्देश दिया था, लेकिन स्पीकर ने बागी विधायकों की सदस्यता के मामले को देखते हुए 28 मार्च का दिन विश्वास मत हासिल करने के लिए नियत कर दिया।

    यही नहीं, राज्यपाल मुख्यमंत्री को बार-बार जल्द बहुमत साबित करने को कहते रहे, पर उनके निर्देश नहीं माने गए। अटॉर्नी जनरल ने राज्यपाल की ओर से केंद्र को भेजी गई आठ रिपोर्टों का हवाला देते हुए दलील दी कि 27 मार्च तक विनियोग विधेयक राजभवन पहुंचा ही नहीं था। राष्ट्रपति शासन लागू होने की अधिसूचना जारी होने के बाद स्पीकर ने कांग्रेस के बागी नौ विधायकों की सदस्यता निरस्त कर दी, जबकि भाजपा के विधायक भीमलाल के मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की।

    रोहतगी ने मुख्यमंत्री के स्टिंग प्रकरण को भी अपनी दलीलों से जोड़ा। राष्ट्रपति शासन की सिफारिश संबंधी कैबिनेट नोट को सार्वजनिक नहीं करने का जिक्र करते हुए अटॉर्नी जनरल ने साफ किया कि कोर्ट सिफारिश को देख सकता है। वे कल भी इन याचिकाओं पर बहस जारी रखेंगे। कल बागी विधायकों के अधिवक्ता भी कोर्ट के समक्ष पक्ष रख सकते हैं। अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता व मनिंदर सिंह, असिस्टेंट सॉलीसिटर जनरल राकेश थपलियाल, निवर्तमान मुख्यमंत्री के अधिवक्ता देवदत्त कॉमथ, स्पीकर के अधिवक्ता अवतार सिंह रावत भी पैरोकारी के लिए अदालत पहुंचे थे।

    पढ़ें: सियासी बवंडर से दोराहे पर उत्तराखंड

    comedy show banner
    comedy show banner