तंत्र न चुका सका बलिदानी सपूत की मां का कर्ज
कारगिल शहीदों के नाम की तमाम घोषणाएं फाइलों में धूल फांक रही हैं। इसे लेकर शहीद की मां को मलाल है। वहीं प्रशासन का कहना है कि जल्द शहीद के परिवार को सम्मान मिलेगा।
गरमपानी, नैनीताल [मनीष साह]: उसे अपने बलिदानी सपूत की कुर्बानी पर गर्व है। पथराई आंखें आज भी उसी रास्ते की ओर एकटक, जहां से वह कभी अपने लाल को बॉर्डर के लिए विदा करती थी। जन्म से लेकर जांबाज बनाने व शहादत तक यादें ही हैं जो उसे खड़े होने का हौसला देती हैं।
मगर तंत्र की बेरुखी उस स्वाभिमानी मां को अब तोड़ने लगी जिसने जांबाज बेटे की शहादत के बदले कुछ मांगा नहीं। बस एक ही तमन्ना थी कि सड़क, अस्पताल या विद्यालय का नामकरण बलिदानी वीर पुत्र के नाम पर हो जाए। मगर अफसोस सरकार ये सब तो न कर सकी, मां को 17 बरस बाद भी डिफेंस फंड व इलाज की सुविधा न दे सकी।
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व्यवस्था पर सवाल उठाती यह पीड़ा है नैनीताल जिले के गरमपानी क्षेत्र के सिमलखा गांव के भराड़ी तोक (बेतालघाट) निवासी 72 वर्षीय पार्वती देवी की।
19 अगस्त 1999 को कारगिल युद्ध में उसके जांबाज बेटे लांस नायक चंदन सिंह भंडारी (28) ने बलिदान दिया। शहादत से पूर्व उसने कई पाक घुसपैठिये मार गिराए। पाकिस्तानी विमानों की बमबारी के दौरान बंकर में मुस्तैद ऑर्डनरी रेजिमेंट का यह वीर सपूत शहीद हो गया।
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1986 में भारतीय सेना का अंग बने चंदन सिंह में देशभक्ति का जज्बा उसकी कृषक पिता स्व. टीका सिंह व माता पार्वती देवी ने ही भरा था। बेटे की वीरगति की गाथा को सहेजे पार्वती देवी को बलिदान पर गर्व तो है। मगर तंत्र से वह हारने लगी है।
शहीद की मां को मिलने वाला डिफेंस फंड उसे आज तक नहीं मिला। पेंशन राशि बढ़कर पांच हजार तो हो गई पर समय से नहीं मिलती। स्वाभिमान ऐसा कि कभी सरकार के आगे हाथ भी न फैलाया। हां, एक सड़क, जीआईसी या एलोपैथिक अस्पताल का नामकरण शहीद बेटे की याद में करने की गुहार जरूर लगाई जो सरकार नहीं कर सकी। यही नहीं सैन्य अस्पताल में इलाज भी नसीब नहीं है।
जिक्र छिड़ा तो छलक उठी आंखें
'दैनिक जागरण' की टीम शहीद की माता से मिलने भराड़ी तोक पहुंची। जिक्र छिड़ा तो पार्वती देवी की आंखें छलक उठी। वह छह माह से बीमार है। खेतीबाड़ी कर गुजर बसर कर रहे शहीद चंदन के बड़े भाई भूपाल सिंह, छोटा पूरन सिंह खुद के खर्च से हल्द्वानी के एक निजी चिकित्सालय में इलाज करा रहे।
उन्होंने बताया कि डिफेंस फंड के लिए रक्षा मंत्रालय कागजात बार-बार मंगाता जरूर है। पर हुआ कुछ नहीं। मझला भाई सीआरपीएफ में तैनात खीम सिंह जरूर मदद करते हैं। शहादत से पूर्व चंदन सिंह ने माता का इलाज भरतपुर मथुरा (यूपी) व महाराष्ट्र स्थित सैन्य अस्पताल में उपचार कराया था। अब उसे यह सुविधा भी नसीब नहीं। घर को जाने वाली पगडंडी भी पक्की न बन सकी है।
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नहीं लेते पेट्रोल पंप की कमाई
सरकार ने शहीद चंदन सिंह की वीरांगना धर्मपत्नी अनीता देवी के नाम पेट्रोल पंप आवंटित किया है। वह पति की शहादत के बाद से परिजनों की सहमति पर दो बेटों की परवरिश के लिए हल्द्वानी चली गई। आज उसका 22 वर्षीय पुत्र नितेश व 18 साल का निखिल वहीं कोचिंग ले रहे हैं।
शदीद के परिवार को मिलेगा सम्मान
नैनीताल के जिलाधिकारी दीपक रावत के मुताबिक शहीद परिवार को पूर्ण सम्मान के मामले को गंभीरता से लिया जायेगा। प्रस्ताव मिलते ही जीआईसी सिमलखा का शहीद चंदन सिंह भंडारी के नाम पर रखा जायेगा। इसके लिये जो भी औपचारिकताएं होंगी करेंगे। जांबाज की माता को डिफेंस फंड दिलाने के लिए रक्षा मंत्रालय से पत्राचार किया जायेगा।
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