स्कूलों में उपयोग लायक नहीं शौचालय
जागरण संवाददाता, हरिद्वार: कागजों में तो सरकारी स्कूलों में शानदार बिल्डिंग है। बालक-बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालय बने हैं। लेकिन कागजों के बाहर का सच दूसरा है, स्कूलों में शौचालय तो हैं पर उपयोग करने लायक नहीं हैं। एक बार निर्माण के बाद इनमें फिर कभी सफाई नहीं होती।
जनपद में 902 प्राइमरी स्कूल वर्तमान में संचालित हो रहे हैं। सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) शुरू होने के समय सबसे पहले स्कूलों में आधारभूत सुविधाओं को बढ़ाने पर जोर दिया गया। शुरुआती सालों में हर साल औसतन 60 करोड़ के बजट में से 50 फीसद बजट बिल्डिंग निर्माण, शौचालय बनाने पर खर्च की गई। 95 फीसद से अधिक स्कूलों में बालक-बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालय बने हैं। लेकिन अधिकांश स्कूलों में ये उपयोग के लायक ही नहीं हैं। कारण स्कूलों में सफाई कर्मचारी की नियुक्ति ही नहीं की गई है। ऐसे में ये शौचालय बदहाल हैं। कई स्कूलों में चाहरदीवारी भी टूटी हुई है। प्राइमरी स्कूल गुर्जर बस्ती में न तो शौचालय है न ही चाहरदीवारी। इससे यहां सुरक्षा का भी खतरा बना रहता है। विशनपुर कुंडी के स्कूल में हाथियों ने चाहरदीवारी को गिरा दिया था।
वहीं, खुले में शौच के लिए जाने को वाले बच्चों पर खतरा मंडराता रहता है। कई जगह तो बच्चों से सफाई की शिकायतें भी विभाग को मिलती रही हैं। भक्तनपुर आदिबपुर गांव के स्कूल में बच्चों से शौचालय साफ कराने की शिकायत भी विभाग तक पहुंच चुकी है।
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पांच हजार है बजट
शिक्षा विभाग विद्यालय विकास शुल्क के लिए हर साल पांच हजार रुपये स्कूलों को देता है। यह धन छोटे खर्चो के लिए दिया जाता है। इसमें से ही पेयजल व्यवस्था को ठीक रखना, छोटी मरम्मत, शौचालय की साफ सफाई पर खर्च करना होता है। लेकिन, यह राशि कम पड़ रही है। शौचालय की सफाई भी कम बजट के चलते नहीं हो पा रही है।
मेंटेनेंस भी समस्या
स्कूलों में मेंटेनेंस भी समस्या रही है। खासतौर से नगर क्षेत्र के स्कूलों में। नगर क्षेत्र के अधिकांश स्कूल निजी भवनों में चल रहे हैं। सालों से मरम्मत न होने के कारण ये खस्ताहाल है। भवन स्वामी भवन खाली करने को कह रहे हैं, लेकिन जगह न मिलने के कारण विभाग इसे खाली नहीं कर रहा।
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स्कूलों में शौचालय बनाए गए हैं। अगर कुछ समस्या है तो उसे दूर करने का प्रयास किया जाएगा।
जगमोहन सोनी, डीईओ (बेसिक)
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