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    राजाजी पार्क से गजराज का कुनबा ‘गायब’

    By sunil negiEdited By:
    Updated: Sat, 13 Aug 2016 07:00 AM (IST)

    राजाजी नेशनल पार्क में ड्रैगन फ्लाई और जोंक हाथियों को परेशान कर रही हैं। उनसे बचने को हाथियों के समूह लघु पहाड़ियों का रुख कर रहे हैं। ...और पढ़ें

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    हरिद्वार, [राहुल गिरि]: उत्तर भारत में एशियाई हाथियों की आखिरी पनाहगाह राजाजी नेशनल पार्क और इससे सटे हरिद्वार वन प्रभाग के मैदानी इलाकों से इन दिनों गजराज के समूह गायब हैं। चौंकिये नहीं, यह सब मौसम का असर है। मानसून में मैदान इलाकों में कीचड़ के साथ ही ड्रैगन फ्लाई और जोंक से बचने को हाथियों के समूह पार्क से लगी लघु पहाड़ियों का रुख कर वहां के मौसम का लुत्फ उठा रहे हैं। अलबत्ता, मैदान में डटे गजराज ड्रैगन फ्लाई व जोंक से लोहा लेने को मजबूर हैं। उस पर विडंबना ये कि इस प्राकृतिक प्रक्रिया से पार पाने का कोई विकल्प नहीं है।

    राजाजी नेशनल पार्क में हाथियों की संख्या 313 है, लेकिन इन दिनों ये काफी कम नजर आ रहे। समूह तो मानो गायब ही हो गए हों। दरअसल, मानसून के आगमन के साथ ही पार्क के मैदानी इलाकों में हाथियों के लिए कीचड़ के साथ ही ड्रैगन फ्लाई और जोंक मुसीबत बन जाते हैं। पूरे मानसूनभर ड्रैगन फ्लाई और जोंक का प्रकोप बना रहता है।
    ड्रैगन जोरदार डंक मारती है तो जोंक पैरों में चिपक खून चूसती है। इससे पार पाने के लिए हाथियों के समूह वर्षाकाल शुरू होते ही फुटहिल्स की ओर रुख करने लगते है। ऐसे में मैदानी इलाके खाली-खाली से नजर आते हैं, जबकि श्यामपुर रेंज, चीला, धौलखंड, रानीपुर समेत अन्य लघु पहाड़ियां हाथियों की धमाचौकड़ी से गुलजार। मानसून की विदाई के बाद हाथियों की वापसी घास के मैदानों में होने लगती है।

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    पहाड़ियां से उतरना बड़ा जोखिम
    गजराज जब लघु पहाड़ियों से वापस लौटते हैं, उनका सफर दुश्वारियों भरा होता है। कई मर्तबा वे उतरते वक्त ढांग से गिरकर चोटिल होते हैं। कुछ दिन पहले श्यामपुर रेंज में एक हाथी ऐसी ही परिस्थिति में चोटिल हुआ था। पिछले वर्ष तीन हाथी चोटिल हुए थे।

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    हाथी को परेशान करते हैं जोंक और ड्रैगन फ्लाई
    राजाजी नेशनल पार्क के निदेशक सनातन ने बताया कि बरसात में जंगल में जोंक और ड्रैगन फ्लाई काफी संख्या में होती है, जो हाथी को सबसे अधिक परेशान करते हैं। इससे बचने को हाथी लघु पहाड़ियों का रुख करते हैं और बरसात खत्म होने पर वापस लौट आते हैं। यह सब प्राकृतिक प्रक्रिया है।

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