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    पौधरोपण की राह में चुनौतियों की भरमार

    By sunil negiEdited By:
    Updated: Mon, 11 Jul 2016 11:46 AM (IST)

    पौधरोपण की राह में चुनौतियों की भरमार है। कहीं, अवैध पातन तो कहीं जंगल की आग और भू-क्षरण में पेड़ों की बलि चढ़ रही है।

    देहरादून, [जेएनएन]: 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड को हरा-भरा रखने की कोशिशें अवश्य चल रही हैं, लेकिन अपेक्षित सफलता का अभी इंतजार है। गुजरे एक दशक के वक्फे को ही देखें तो इस अवधि में अकेले वन महकमे ने ही विभागीय पौधरोपण के तहत करीब सवा दो लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पौधे रोपे। इसके अलावा अन्य योजनाओं में बड़े पैमाने पर पौधे रोपे गए। हैरानी इस बात की कि पौधरोपण की बड़ी उपलब्धि के बाद भी वनावरण 46 फीसद तक ही सिमटा हुआ है।
    साफ है कि पौधरोपण की राह में चुनौतियों की भरमार है। कहीं, अवैध पातन तो कहीं जंगल की आग और भू-क्षरण में पेड़ों की बलि चढ़ रही है। साथ ही रणनीतिक अभाव, लापरवाही, बजट की कमी जैसे कारण भी कम अहम नहीं हैं। ठीक है कि चुनौतियां हैं, मगर ऐसी नहीं कि इनसे पार न पाया जा सके। जरूरत है तो बस ठोस कार्ययोजना तैयार कर इसे धरातल पर उतारने और जनसामान्य को जागरूक करने की।

    समग्र रूप से देखें तो राज्य गठन से अब तक जिस हिसाब सूबे में पौधे लगे, यदि उनमें से आधे भी जिंदा रहते तो वनावरण में उत्तराखंड कहीं आगे निकल चुका होता। कहने का आशय यह कि सिर्फ पौधे लगा देनेभर से काम नहीं चलेगा, इनकी उचित देखभाल कर इन्हें पनपाने की जिम्मेदारी ज्यादा अहम है। इसी मोर्चे पर गंभीरता से पहल की जरूरत है। अन्य चुनौतियों की बात करें तो पेड़ों पर पहले ही लगातार आरियां चल रही हैं। जंगल और विकास में सामंजस्य के अभाव में कहीं पेड़ विकास योजनाओं की भेंट चढ़ रहे तो कहीं तस्करों का निशाना बन रहे हैं।

    आपदा और जंगल की आग भी पेड़ों के साथ ही रोपित पौधों को लील रही है। नौ सालों के अंतराल में प्रदेश का 20 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र आग से प्रभावित हुआ, जिससे 27 लाख रुपये का नुकसान वन महकमे को झेलना पड़ा। सूरतेहाल में पौधरोपण के लिए ठोस कार्ययोजना बननी चाहिए, ताकि इसकी राह में आ रही चुनौतियों से निबटा जा सके। इसके लिए न सिर्फ सरकार और वन महकमा, बल्कि जनसामान्य को भी पूरी शिद्दत के साथ आगे आना होगा।
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    चुनौतियां
    -रोपित पौधों की देखभाल को ठोस रणनीति का अभाव।
    -तीन साल तक पौधे के रखरखाव के प्रावधान की अनदेखी।
    -हर साल आग, आपदा, जंगलों में लगातार चराई से रोपित पौधों को क्षति।
    समाधान
    -पौधों की देखभाल को बने पांच वर्षीय ठोस कार्ययोजना।
    -रखरखाव में लापरवाही पर हों सख्त कार्रवाई के ठोस प्रावधान।
    -आग से निबटने को ठोस उपाय व क्षति की पूर्ति के लिए भी हो पौधरोपण।
    उत्तराखंड में वन
    -कुल भौगोलिक क्षेत्र: 53483 वर्ग किमी
    -अभिलिखित वनक्षेत्र: 37999.60 वर्ग किमी
    -भौगोलिक क्षेत्र के सापेक्ष वनक्षेत्र: 71.05 प्रतिशत
    -भौगोलिक क्षेत्र के सापेक्ष वनाच्छादित क्षेत्र: 45.82 प्रतिशत

    10 साल में विभागीय पौधरोपण
    वर्ष-----------लक्ष्य----------उपलब्धि
    2005-06----27033.00---28483.00
    2006-07----28141.00---28934.47
    2007-08----24403.60---28829.24
    2008-09----21700.00---25727.50
    2009-10----20000.00---20945.00
    2010-11----10561.00---10561.00
    2011-12----13245.00---17029.00
    2012-13----13010.00---13838.09
    2013-14----16573.00---16990.79
    2014-15----16000.00----16281.00
    (पौधरोपण के आंकड़े हेक्टेयर में)

    वनभूमि पर अतिक्रमण
    कुमाऊं मंडल: 8318.3226 हेक्टेयर
    गढ़वाल मंडल: 1327.3024 हेक्टेयर

    जंगल की आग
    वर्ष प्रभावित क्षेत्र क्षति
    2006-07 1595.35 3.67
    2007-08 2369.00 2.68
    2008-09 4115.50 4.79
    2009-10 1610.82 0.05
    2010-11 231.75 0.30
    2011-12 2826.30 3.03
    2012-13 2823.89 4.28
    2013-14 348.05 4.39
    2014-15 930.33 4.30
    2015-16 4433.00 4.65
    (नोट: क्षेत्र हेक्टेयर में, क्षति लाख रुपये में)
    --------------------------

    पौधरोपण के तहत जितने भी पौधे लगें, उनकी उचित देखभाल होनी चाहिए। इसी के मद्देनजर इस मर्तबा रणनीति बनाई गई है। साथ ही दूसरे कदम भी उठाए जा रहे हैं। जनसामान्य की इसमें भागीदारी हो, इसके लिए भी गंभीरता से प्रयास किए जा रहे हैं।
    -दिनेश अग्रवाल, वनमंत्री, उत्तराखंड

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