उत्तराखंडः मिल गई खजाने की चाबी, इस्तेमाल की चुनौती
हरीश रावत सरकार को नियमित बजट के रूप में खजाने की चाबी तो मिल गई, लेकिन चुनावी साल में इसे खर्च करने में सरकार को चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
देहरादून, [विकास धूलिया]: उत्तराखंड की हरीश रावत सरकार को नियमित बजट के रूप में आखिरकार खजाने की चाबी तो मिल गई, मगर चुनावी साल में जिस उद्देश्य के साथ बजट तैयार किया गया था, उसे हासिल करने में सरकार को खासी मशक्कत करनी पड़ेगी।
मशक्कत इसलिए, क्योंकि सियासी अस्थिरता के कारण राष्ट्रपति शासन और विनियोग विधेयक पारित न होने पर केंद्र प्रदत्त लेखानुदान के फेर में चार महीने तो यूं ही निकल गए।
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यही नहीं, वित्तीय वर्ष के अंतिम तीन महीनों के दौरान विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू रहेगी, लिहाजा सरकार के पास बजट के रूप में अपने चुनावी एजेंडे को लागू करने के लिए महज पांच महीने का ही वक्त शेष है।
हरीश रावत सरकार द्वारा गत 11 मार्च को विधानसभा में पेश विनियोग विधेयक अंतत: गुरुवार को लगभग साढ़े चार महीने बाद नए सिरे से विधानसभा से पारित हो गया। यह चुनाव पूर्व अंतिम बजट है, तो इसमें चुनावी तैयारियों की झलक दिखना लाजिमी ही है।
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विद्यार्थियों की शिक्षा से लेकर रोजगार और महिलाओं के उत्थान से लेकर समाज के विभिन्न तबकों के कल्याण की योजनाओं से साफ हो गया कि हरीश रावत की इस चुनावी पोटली में सब के लिए कुछ न कुछ समाया हुआ है।
बजट में गांव-शहर से लेकर स्थाई राजधानी के सवाल पर गैरसैंण जैसे भावनात्मक मुद्दे और नई प्रशासनिक इकाइयों के पुनर्गठन की बात कर सरकार ने एक तरह से चुनावी शंखनाद बजट के जरिये कर दिया।
हरीश रावत सरकार की इन चुनावी तैयारियों को उनकी ही पार्टी के भीतर से झटका तब लगा, जब एक पूर्व मुख्यमंत्री और एक कैबिनेट मंत्री समेत नौ विधायकों ने बगावत कर दी।
गत 18 मार्च के इस घटनाक्रम के बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन तो लागू हुआ ही, इसी दिन विधानसभा में विनियोग विधेयक को पारित भी नहीं माना गया। नतीजतन, राष्ट्रपति ने राज्य को वित्तीय वर्ष 2016-17 के आरंभिक चार महीनों के लिए लेखानुदान दिया।
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हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गत 10 मई को विधानसभा में हुए फ्लोर टेस्ट में कामयाबी के बाद रावत सरकार की तो बहाली हो गई मगर विनियोग विधेयक पारित न होने के कारण सरकार के हाथ लेखानुदान के चलते बंध से गए।
मुख्यमंत्री ने नियमित बजट हासिल करने के लिए तमाम कोशिशें की, मगर सफलता न मिलने पर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना पड़ा।
अब विधानसभा ने विनियोग विधेयक पारित कर दिया है लेकिन बजट इस्तेमाल के लिए सरकार के पास इतना कम वक्त शेष है कि यह किसी चुनौती से कम नहीं।
दरअसल, शुरुआती चार महीने जहां लेखानुदान के कारण सरकार अपनी नई घोषणाओं को अमलीजामा नहीं पहना पाई, वहीं मौजूदा वित्तीय वर्ष के अंतिम लगभग तीन महीने राज्य में चुनाव आचार संहिता लागू रहने की संभावना है।
उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल आगामी मार्च तक है, लिहाजा इससे पहले नई विधानसभा का गठन जरूरी है। यानी, अगर फरवरी में विधानसभा चुनाव होते हैं तो दिसंबर अंत या जनवरी की शुरुआत में चुनाव आचार संहिता लागू होने की संभावना रहेगी।
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