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    केदारनाथ पर बनी फिल्म के लिए ताक पर नियम

    By sunil negiEdited By:
    Updated: Mon, 07 Nov 2016 04:00 AM (IST)

    उत्‍तराखंड सरकार ने आनन-फानन में प्रख्यात गायक कैलास खेर से केदारनाथ पर फिल्म तो बनवा ली, लेकिन इस पूरी कवायद में कायदे-कानून ताक पर रख दिए गए।

    देहरादून, [रविंद्र बड़थ्वाल]: देवों के देव महादेव के धाम केदारनाथ में आपदा के बाद पुनर्निर्माण कार्यों को प्रचारित करने के लिए सरकार ने आनन-फानन में प्रख्यात गायक कैलास खेर से फिल्म तो बनवा ली, लेकिन इस पूरी कवायद में कायदे-कानून ताक पर रख दिए गए।
    आपदा प्रबंधन महकमे से फिल्म के लिए वित्तीय प्रबंधन हुआ और सियासी शोर मचा तो फिर इसे नियमसंगत ठहराने का बंदोबस्त किया गया। बाबा केदार पर बनी इस फिल्म के बहाने आगामी विधानसभा चुनाव में खुद को तारने की कोशिशों में जुटी सरकार ने अपने फैसले में पहले तकनीकी खामियों को नजरअंदाज किया। बाद में इन खामियों को दुरुस्त करने के लिए फैसलों पर मंत्रिमंडल की मुहर लगाई गई।

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    वर्ष 2013 में आपदा के बाद केदारनाथ में कराए गए पुनर्निर्माण को सिर्फ राज्य ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भुनाने के लिए सरकार की पहल विवादों में घिर गई है। ये विवाद केदारनाथ धाम पर बनी फिल्म बनाने को लिए गए फैसलों में तकनीकी खामियों की वजह से सामने आ रहा है। 49 मिनट के 12 एपीसोड बनाने के लिए गायक कैलास खेर की कंपनी मैसर्स कैलासा इंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड को प्रति एपीसोड 79 लाख रुपये की दर से भुगतान किया गया। इस पर 12.36 फीसद की दर से सेवाकर भी देय है। फिल्म में केदारनाथ धाम के आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक स्वरूप के साथ ही पुनर्निर्माण कार्यों को भी प्रचारित किया गया है।

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    फिल्म निर्माण को लेकर सरकार के फैसले में कई स्तर पर त्रुटियां रही हैं। बाद में मंत्रिमंडल से इन त्रुटियों को दुरुस्त करने को कार्योत्तर मंजूरी ली गई। लगभग 10 करोड़ की इस परियोजना के लिए केवल सार्वजनिक सूचना के सबसे पहले चरण में ही खामी रही। बाद में तकनीकी निविदा में भी सिर्फ दो कंपनियों ने ही भाग लिया। इसमें भी एक कंपनी तकनीकी पात्रता पूरी नहीं कर सकी।

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    लिहाजा सिर्फ एक ही कंपनी ने ही इसमें भागीदारी की। इस पूरे मामले में वित्त की पूर्व स्वीकृति को जरूरी नहीं समझा गया। प्रोक्योरमेंट नियमावली के उल्लंघन का अंदाजा इससे लग सकता है कि टर्म ऑफ रेफरेंस (टीओआर) और रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) निविदा करने से पहले तैयार नहीं किए गए थे।

    16 अप्रैल, 2015 को कैलास खेर की कंपनी के साथ किए गए अनुबंध के मुताबिक ठेकेदार को 30 फीसद अग्रिम भुगतान, 20 फीसद भुगतान फस्र्ट कट देने और 20 फीसद दूसरा कट देने पर किया जाना है। फिल्म में ङ्क्षहदी, अंग्रेजी के अलावा तीन भारतीय भाषाओं बंगाली, गुजराती व मलयालम के साथ ही जर्मन, फ्रेंच व रसियन में भी सब टाइटल देने पर भी सहमति बनी है।

    अहम बात ये भी है कि फिल्म बनने के बाद अब उसकी गुणवत्ता पर संदेह जताया जा रहा है। गुणवत्ता परीक्षण के लिए सूचना सचिव की अध्यक्षता में समिति की बैठ 28 मई, 2016 को बैठक भी हो चुकी है। अब मंत्रिमंडल कैलास खेर निर्मित फिल्म को टेलीकास्ट करने का जिम्मा उन्हीं की कंपनी को देने और इससे होने वाली आय से फिल्म लागत की प्रतिपूर्ति करने का निर्णय भी लिया है।

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