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    सद्मार्ग दिखाने वाले गुरु की पूजा का दिन है गुरु पूर्णिमा

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sun, 09 Jul 2017 03:55 PM (IST)

    जीवन में गुरु का आगमन होता है तो अपूर्णता समाप्त हो जाती है। जरूरी नहीं कि जिससे दीक्षा प्राप्त की हो, वही गुरु हो।

    सद्मार्ग दिखाने वाले गुरु की पूजा का दिन है गुरु पूर्णिमा

    देहरादून, [जेएनएन]: जीवन में गुरु का आगमन होता है तो अपूर्णता समाप्त हो जाती है। जरूरी नहीं कि जिससे दीक्षा प्राप्त की हो, वही गुरु हो। बल्कि जिससे हम थोड़ा भी कुछ सीखते हैं, वह हर व्यक्ति चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग, हमारा गुरु है। गुरु का स्थान तो परमात्मा से भी बड़ा बताया गया है, क्योंकि वही तो सद्मार्ग दिखाते हैं। गुरु की इसी महिमा को देखते हुए आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर द्रोणनगरी में विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किए गए और गुरु की पूजा-अर्चना की गई।

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    आचार्य संतोष खंडूड़ी ने बताया कि ज्ञान का भंडार और सही दिशा दिखाने वाले गुरु की विशेष पूजा-अर्चना का दिन है गुरु पूर्णिमा। 'गु' का अर्थ अंधकार, अज्ञान से है और 'रु' का अर्थ है अंधकार को दूर करने वाला। इसलिए ब्रह्मांड में गुरु की महिमा निराली है। कहते हैं कि बिना गुरु ज्ञान नहीं मिलता। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा गया है। गुरु पूर्णिमा पर गुरु अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं।

    ज्ञान की गंगा बहाएंगे गुरु

    आचार्य संतोष खंडूड़ी ने बताया कि गुरु पूर्णिमा का ऋतु से भी गहरा नाता है। शास्त्रों के अनुसार गुरु पूर्णिमा से अगले चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। खास बात ये है कि चार महीने अगस्त से नवंबर तक मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ हैं और अध्ययन के लिए अनुकूल। मसलन सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता और फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है। ऐसे ही गुरु के चरणों में साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग की शक्ति प्राप्त होती है। गुरु पूर्णिमा पर  दान और स्नान करना अक्षयफल को देने वाला होता है। 

     ऐसे करें पूजा 

    गुरु पूर्णिमा के दिन घर की सफाई, स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करें। पवित्र स्थान कर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर व्यास-पीठ बनाएं। 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से पूजा का संकल्प लें। दसों दिशाओं में चावल छोड़ने के बाद व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी का स्मरण कर पूजा शुरू करें। 

     

     

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