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    पोर्टल ने दिया धोखा, उत्तराखंड की धरोहरों का संरक्षण लटका

    By BhanuEdited By:
    Updated: Wed, 13 Sep 2017 08:38 PM (IST)

    उत्तराखंड के धरोहरों के संरक्षण के प्रस्ताव से संबंधित पोर्टल के धोखा देने से इन धरोहरों का संरक्षण लटक गया। ऐसे करीब 29 प्रस्ताव हैं, जो स्वीकृत नहीं हो सके हैं।

    पोर्टल ने दिया धोखा, उत्तराखंड की धरोहरों का संरक्षण लटका

    देहरादून, [सुमन सेमवाल]: उत्तराखंड में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) संरक्षित ऐतिहासिक धरोहरों के अप्रैल के बाद भेजे गए एक भी प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं मिल पाई है। पेपरलेस व्यवस्था के तहत ऑनलाइन कामकाज के लिए बनाया गया कंजर्वेशन पोर्टल ढंग से काम नहीं कर पा रहा है। इसके चलते एएसआइ की देहरादून सर्किल के 29 प्रस्ताव अधर में लटके हैं। क्योंकि इन्हें स्वीकृति पोर्टल के माध्यम से ही मिलनी है।

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    एएसआइ की देहरादून सर्किल की अधीक्षण पुरातत्वविद् लिली धस्माना के मुताबिक मुख्यालय स्तर पर संरक्षण संबंधी सभी कामकाज ऑनलाइन माध्यम से कराने का निर्णय लिया गया है। अप्रैल माह के बाद इस व्यवस्था को अमल में लाते हुए कंजर्वेशन पोर्टल बनाया गया है। इसके तहत जुलाई, अगस्त व पांच सितंबर तक राज्य की विभिन्न धरोहरों के संरक्षण के 29 प्रस्ताव तैयार कर कंजर्वेशन पोर्टल पर अपलोड किए गए हैं। 

    हालांकि जब मुख्यालय स्तर पर पोर्टल खोला जा रहा है तो उत्तराखंड की जगह गुजरात की धरोहरों के प्रस्ताव नजर आ रहे हैं। तकनीकी खामी के चलते यह समस्या पेश आ रही है। एएसआइ मुख्यालय पोर्टल की तकनीकी खामी को दूर करने के प्रयास में लगा है। उम्मीद है कि जल्द यह समस्या दूर कर ली जाएगी।

    उत्तराखंड में यह प्रमुख प्रस्ताव हैं लंबित

    देहरादून- कलिंगा स्मारक, अशोक के शिलालेख, महासू मंदिर हनोल, शिव मंदिर लाखामंडल, जगतराम साइट।

    अल्मोड़ा- जागेश्वर मंदिर समूह, सूर्यमंदिर, मृत्युंजय मंदिर, बदरीनाथ मंदिर समूह, बनदेव मंदिर, गुज्जरदेव मंदिर, कचहरी मंदिर समूह, मनयान मंदिर, रतनदेव मंदिर, कुबेर मंदिर, पाताल भुवनेश्वर गुफा, गंगोलीहाट मंदिर।

    ऊधमसिंहनगर- सीतावनी मंदिर, गोविसना माउंड।

    चमोली- रुद्रनाथ मंदिर, आदि बदरी, पांडुकेश्वर मंदिर, मंडल के शिलालेख, चांदपुर किला।

    हरिद्वार- ब्रिटिश सेमेटरी।

    अप्रैल के प्रस्तावों पर काम

    इस वित्तीय वर्ष के शुरुआती माह अप्रैल में एएसआइ ने 54 प्रस्ताव पास करा लिया थे, नहीं तो इस साल पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकरियों को बिना काम ही रहना पड़ता। फिलहाल देहरादून सर्किल के अधिकारी इन्हीं कार्यों को पूरा कर रहे हैं। 

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