स्थायी राजधानी को कब तक तरसेगा उत्तराखंड
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून
उत्तराखंड को अपनी स्थायी राजधानी कब तक नसीब होगी, जन भावनाओं से खिलवाड़ का सिलसिला थमेगा या यूं ही चलता रहेगा, इन तमाम सवालों के जवाब सियासी नफा-नुकसान के फेर में अब तक ढेर होते रहे हैं। राज्य बने हुए 13 साल से ज्यादा वक्त गुजरने पर भी सरकारों ने इस मुद्दे से मुंह चुराने की कोशिश की है। गैरसैंण के बहाने एक बार फिर सब्जबाग दिखाए जाने से सूबाई सियासत गरमा तो गई है, लेकिन सरकार इस अहम मुद्दे पर किसी निष्कर्ष पर पहुंच नहीं पा रही है।
राज्य बनने के बाद से एक अदद राजधानी की तलाश जारी है। पर्यावरण के प्रति अति संवेदनशील इस हिमालयी राज्य में इस फैसले तक पहुंचने में लंबा वक्त जाया हो चुका है। आश्चर्यजनक यह है कि स्थायी राजधानी के मुद्दे पर सरकारें अंतिम फैसले पर पहुंचने से गुरेज करती रहीं, लेकिन इसे आधार बनाकर अनाप-शनाप खर्च में कोताही नहीं की जा रही है। अंतरिम राजधानी देहरादून में राजधानी को लेकर स्थायी प्रकृति के कई ढांचें खड़े कर अरबों रुपये खर्च किए जा चुके हैं। वहीं गैरसैंण में विधानसभा भवन के निर्माण पर करोड़ों की धनराशि खर्च की जानी है। महत्वपूर्ण यह है कि उक्त दोनों ही स्थानों में किसे स्थायी राजधानी बनाया जाएगा, इस पर अब तक किसी भी सरकार और सत्तारूढ़ दलों ने रुख साफ करने की जहमत नहीं उठाई।
जाहिर है भावनाओं से जुड़ा यह मुद्दा हकीकत और सियासत के बीच उलझकर रह गया है। पृथक उत्तराखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारी गैरसैंण को राजधानी बनाने की पैरवी करते रहे। जब राज्य अस्तित्व में आया तो सियासी दलों के ढुलमुल रवैये ने इस मुद्दे को लटका कर रख दिया। राजधानी चयन को लेकर बाकायदा आयोग का गठन भी हुआ। आयोग ने अपनी रिपोर्ट भी सौंपी। इसके बावजूद राजधानी का चयन नहीं किया जा सका। आयोग की रिपोर्ट मिलने के बाद पिछली भाजपा सरकार ने राजनीतिक चतुराई दिखाते हुए इस मामले में गेंद कांग्रेस सरकार के पाले में सरका दी। मौजूदा कांग्रेस सरकार ने राजधानी पर चुप्पी साधे रखी, लेकिन गैरसैंण में विधानसभा भवन का शिलान्यास कर ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने का मुद्दा उछाल दिया। अब मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गैरसैंण में तीन दिनी विधानसभा सत्र के बहाने इस चर्चा को गरमा दिया है। यह दीगर बात है कि मुख्यमंत्री ने सरकार का रुख स्पष्ट नहीं किया। अलबत्ता, गैरसैंण को राज्य आंदोलन का मुख्य केंद्र बताकर उन्होंने इन कयासों को हवा दे दी कि जन भावनाओं से जुड़े मुद्दे पर सियासत तारी है।
इनसेट
'गैरसैंण विधानसभा सत्र को राजनीतिक चश्मे से न देखकर जन कल्याण व जन भावना की दृष्टि से देखा जाए। राज्य आंदोलन का गैरसैंण मुख्य केंद्र रहा है।'
-हरीश रावत, मुख्यमंत्री।
'गैरसैंण पर राजनीति विपक्ष ने नहीं, कांग्रेस सरकार ने की है। जब सरकार ही एकजुट नहीं तो गैरसैंण में बार-बार सियासी नौटंकी नहीं की जानी चाहिए।'
-अजय भट्ट, नेता प्रतिपक्ष।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।