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झीलों के संरक्षण में तोड़े घपले के रेकार्ड

By Edited By: Published: Thu, 19 Sep 2013 01:05 AM (IST)Updated: Thu, 19 Sep 2013 01:06 AM (IST)
झीलों के संरक्षण में तोड़े घपले के रेकार्ड

सुभाष भट्ट, देहरादून

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उत्तराखंड के नैनीताल जनपद को भारत के 'झील जिला' का तमगा हासिल है, मगर इसी जिले में सरकारी मशीनरी ने केंद्रीय वित्त पोषित राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना में वित्तीय अनियमितता व लेटलतीफी के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर डाले। इस परियोजना के तहत स्वीकृत धनराशि का वित्तीय नियमों को ताक पर रखकर मनमाफिक बेजा इस्तेमाल किया गया। साथ ही, निर्धारित अवधि के छह साल बाद तक भी योजना का काम पूरा नहीं हो पाया। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में इस स्याह हकीकत पर से पर्दा उठा है।

झीलों के महत्व को समझते हुए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय ने शहरी व अ‌र्द्धशहरी क्षेत्र की झीलों के संरक्षण के लिए 2001 में राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना प्रारंभ की थी। झील जिला नैनीताल में केंद्र ने इस योजना के तहत 2003 में चार झीलों भीमताल, नौकुचियाताल, सातताल व खुर्पाताल के लिए 16.85 करोड़ और नैनीताल झील के प्रबंधन व संरक्षण के लिए 47.97 करोड़ रुपये स्वीकृत किए। परियोजना पर अमल के लिए नैनीताल झील विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण को नोडल एजेंसी बनाया गया।

इस प्रोजेक्ट के तहत 64.82 करोड़ रुपये की 29 योजनाएं कार्यो को अगस्त 2006 में पूर्ण करने का लक्ष्य तय हुआ, मगर उक्त तिथि के छह साल बाद (मार्च 2012) तक भी 11 योजनाओं के काम अधूरे पड़े रहे। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में इस दौरान हुई वित्तीय अनियमितताओं पर भी तल्ख टिप्पणी की है। मसलन, झील प्राधिकरण ने केंद्र के अनुमोदन के बगैर ही अन्य चार झीलों के संरक्षण कार्यो के लिए स्वीकृत धनराशि में से भीमताल में मछलीघर बनाने पर 1.40 करोड़ रुपये खर्च कर डाले।

कुमाऊं मंडलायुक्त को इस परियोजना की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन मंडलायुक्त ने भी वित्तीय नियमों को ताक पर रखकर इस प्रोजेक्ट के 28.32 लाख रुपये अन्य दो कार्यो पर खर्च करवा डाले। हैरत की बात यह कि उक्त दो कार्यो का जिक्र न तो राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना की डीपीआर में था और न नदी संरक्षण निदेशालय से ही अनुमोदित थे। दिलचस्प पहलू यह है कि प्राधिकरण ने प्रोजेक्ट में विलंब की बात तो स्वीकार की, मगर झील क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति व वातावरण को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। हालांकि सीएजी ने प्राधिकरण के इस बहाने को इस तर्क के साथ खारिज कर दिया कि इसका ध्यान डीपीआर तैयार करते समय रखा जाना चाहिए था।

इनसेट..

फिर भी सुधरी पानी की गुणवत्ता

इसे कुदरत का करिश्मा ही कहा जाएगा कि झील संरक्षण परियोजना में हद दर्जे की अनियमितता व लापरवाही के बावजूद नैनीताल जिलों की इन झीलों में पानी की गुणवत्ता में साल-दर-साल सुधार होता गया। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010-10 में नैनीताल झील के पानी में डिजाल्व ऑक्सीजन का स्तर 2003-04 की तुलना में 4.63 मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर 9.45 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गया। जैव रासायनिक ऑसीजन की मांग में भी कमी आई। अन्य चार झीलों में भी ऐसा ही सुधार दिखा।

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