पिता के सपनों को आकार दे रहे यह शिक्षक, फैला रहे हरियाली
शिव नगरी गोपेश्वर को रुद्राक्ष सिटी बनाने का पर्यावरण कार्यकर्ता का सपना पूरा करने में उनका शिक्षक पुत्र पूरे मनोयोग से जुटा है। उनके प्रयास से रुद्राक्ष समेत कई वृक्ष महक रहे हैं।
गोपेश्वर, [देवेंद्र रावत]: शिव नगरी गोपेश्वर को रुद्राक्ष सिटी बनाने का पर्यावरण कार्यकर्ता का सपना पूरा करने में उनका शिक्षक पुत्र पूरे मनोयोग से जुटा है। उन्हीं की मेहनत का ही नतीजा है कि आज जहां नगर में रोपे गए रुद्राक्ष के पौधे पेड़ बनकर फल देने लगे हैं, वहीं चंपा के फूलों की खुशबू पूरे नगर को महका रही है। जबकि, प्राकृतिक रूप से गोपेश्वर नगर का भूगोल रुद्राक्ष व चंपा के अनुकूल नहीं है।
वर्ष 2003 में पर्यावरण कार्यकर्ता चक्रधर तिवारी व उनके पूर्व सैनिक मित्र राजेंद्र सिंह ने सीमांत चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर को रुद्राक्ष सिटी बनाने की शुरुआत की। बिना किसी सरकारी इमदाद के उन्होंने नगर में सड़क के किनारे रुद्राक्ष व चंपा के पौधों का रोपण किया। शुरुआती दौर में अन्य लोगों का भी उन्हें सहयोग मिला, लेकिन लगातार मेहनत को देखते हुए धीरे-धीरे उन्होंने किनारा कर लिया। बावजूद इसके चक्रधर तिवारी व राजेंद्र सिंह निरपेक्ष भाव से अपने कार्य को अंजाम तक पहुंचाने में जुटे रहे।
पौधरोपण के साथ दोनों ही सुबह-शाम पौधों की देखभाल भी करते थे। उन्होंने नगर में सड़क के किनारे रुद्राक्ष व चंपा के एक हजार से अधिक पौधे रोपे। वर्ष 2013 तक यह कार्य अनवरत चलता रहा, लेकिन 2013 में पहले राजेंद्र सिंह व फिर चक्रधर तिवारी का निधन हो गया। दो माह तक देखरेख न होने से इनमें से कई पेड़ सूख गए। अब उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था।
एक दिन विद्यालय जाते हुए पेड़ों की दुर्दशा देख स्व.तिवारी के शिक्षक पुत्र मनोज तिवारी का मन उद्वेलित हो उठा। उन्होंने ठान लिया कि हर हाल में पिता के सपने को पूरा करेंगे और जुट गए पेड़ों की सुरक्षा के अभियान में।
उनकी जीवटता देख धीरे-धीरे अभियान से अन्य लोग भी जुडऩे लगे। मनोज की मेहनत का नतीजा है कि आज नगर में रुद्राक्ष के पेड़ों पर फल तो चंपा के पेड़ों पर फूलों की खुशबू बिखर रही है।
रुद्राक्ष की महत्ता
रुद्राक्ष को भगवान शिव का प्रतिरूप माना जाता है। शिव भक्त व साधु-संत रुद्राक्ष ग्रहण करने को पवित्र मानते हैं। रुद्राक्ष की पैदावार ज्यादातर नेपाल में होती है। रुद्राक्ष की पैदावार समुद्रतल से 500 से लेकर 1500 मीटर की ऊंचाई पर होती है। खास बात यह कि गोपेश्वर शहर की जलवायु रुद्राक्ष के अनुकूल न होने पर भी यहां रुद्राक्ष फूल-फल रहा है।
चंपा की महत्ता
चंपा को भी फूलों में श्रेष्ठ माना गया है। इसे देवपुष्प भी कहा जाता है। सफेद रंग का बड़ा फूल विशिष्ट आकृति व खुशबू के कारण अलग पहचान रखता है। शास्त्रों में चंपा के पुष्प को पारिजात कहा जाता है। कहते हैं कि इस फूल की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी।
रुद्राक्ष के दर्शनों को आ रहे शिव भक्त
गोपेश्वर में उत्तराखंड के दूसरे नंबर का सबसे ऊंचा गोपीनाथ मंदिर स्थित है। यहां प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शनों को आते हैं। यहां रुद्राक्ष के सैकड़ों वृक्ष देख शिव भक्तों को अलग ही अनुभूति होती है। अब तो यात्री रुद्राक्ष के पेड़ों के दीदार को भी गोपेश्वर आने लगे हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।